‘We Will Not Be Victims’: Amirah Aulaqi and Mariana Aguilera
April 1, 2016Weekly Dars-e-Qur’an (Gents) Sunday, 3rd of April 2016
April 1, 2016इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है – डॉक्टर कमला सुरैया (भूतपूर्व ‘डॉक्टर कमला दास’)
‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन है, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था है, और मैंने यह फै़सला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बड़ी गंभीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुंची हूं कि अन्य असंख्य ख़ूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और मैं इसकी बड़ी ही ज़रूरत महसूस करती थी…इसका एक अत्यंत उज्ज्वल पक्ष यह भी है कि अब मुझे अनगिनत ख़ुदाओं के बजाय एक और केवल एक ख़ुदा की उपासना करनी होगी।”
—डॉक्टर कमला सुरैया (भूतपूर्व ‘डॉक्टर कमला दास’)
“दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन है, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था है, और मैंने यह फै़सला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बड़ी गंभीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुंची हूं कि अन्य असंख्य ख़ूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और मैं इसकी बड़ी ही ज़रूरत महसूस करती थी…इसका एक अत्यंत उज्ज्वल पक्ष यह भी है कि अब मुझे अनगिनत ख़ुदाओं के बजाय एक और केवल एक ख़ुदा की उपासना करनी होगी।
यह रमज़ान का महीना है। मुसलमानों का अत्यंत पवित्र महीना और मैं ख़ुश हूं कि इस अत्यंत पवित्र महीने में अपनी आस्थाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर रही हूं तथा समझ-बूझ और होश के साथ एलान करती हूं कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्ल॰) अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। अतीत में मेरा कोई अक़ीदा नहीं था। मूर्ति पूजा से बददिल होकर मैंने नास्तिकता अपना ली थी, लेकिन अब मैं एलान करती हूं कि मैं एक अल्लाह की उपासक बनकर रहूंगी और धर्म और समुदाय के भेदभाव के बग़ैर उसके सभी बन्दों से मुहब्बत करती रहूंगी।’’
‘‘मैंने किसी दबाव में आकर इस्लाम क़बूल नहीं किया है, यह मेरा स्वतंत्र फै़सला है और मैं इस पर किसी आलोचना की कोई परवाह नहीं करती। मैंने फ़ौरी तौर पर घर से बुतों और मूर्तियों को हटा दिया है और ऐसा महसूस करती हूं जैसे मुझे नया जन्म मिला है।’’
‘‘इस्लामी शिक्षाओं में बुरके़ ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हक़ीक़त यह है कि बुरक़ा बड़ा ही ज़बरदस्त (Wonderful) लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’
‘‘आपको मेरी यह बात बड़ी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गयी हूं। मुझे औरतों के नंगे मुंह, आज़ाद चलत-फिरत तनिक भी पसन्द नहीं। मैं चाहती हूं कि कोई मर्द मेरी ओर घूर कर न देखे। इसीलिए यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि मैं पिछले चौबीस वर्षों से समय-समय पर बुरक़ा ओढ़़ रही हूं, शॉपिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहां तक कि विदेशों की यात्राओं में मैं अक्सर बुरक़ा पहन लिया करती थी और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता।’’
‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियां दे रखी हैं, बल्कि जहां तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है । इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। मां, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्ण और सम्मानीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की प्र्रतिनिधि और कार्यवाहिका है।
जहां तक पति के आज्ञापालन की बात है यह घर की व्यवस्था को ठीक रखने के लिए आवश्यक है और मैं इसको न ग़ुलामी समझती हूं और न स्वतंत्रताओं की अपेक्षाओं का उल्लंघन समझती हूं। इस प्रकार के आज्ञापालन और अनुपालन के बग़ैर तो किसी भी विभाग की व्यवस्था शेष नहीं रह सकती और इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) की सच्ची पैरवी का नाम, यही ग़ुलामी तो सच्ची आज़ादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहां चाहे, जिस खेती में चाहे मुंह मारता फिरे। अतः इस्लाम और केवल इस्लाम औरत की गरिमा, स्थान और श्रेणी का लिहाज़ करता है। हिन्दू धर्म में ऐसी कोई सुविधा दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।’’
‘‘हमें अपनी मां के फै़सले से कोई मतभेद नहीं। वह हमारी मां हैं, चाहे वे हिन्दू हों, ईसाई हों या मुसलमान, हम हर हाल में उनका साथ देंगे और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे।’’
‘‘इससे मेरे इस विश्वास को ताक़त मिली है कि इस्लाम मुहब्बत और इख़्लास का मज़हब है। मेरी इच्छा है कि मैं बहुत जल्द इस्लाम के केन्द्र पवित्रा शहर मक्का और मदीना की यात्रा करूं और वहां की पवित्र मिट्टी को चूमूं।’’
‘‘मैंने अब बाक़ायदा पर्दा अपना लिया है और ऐसा लगता है कि जैसे बुरक़ा बुलेटप्रूफ़ जैकेट है जिसमें औरत मर्दों की हवसनाक नज़रों से भी सुरक्षित रहती है और उनकी शरारतों से भी। इस्लाम ने नहीं, बल्कि सामाजिक अन्यायों ने औरतों के अधिकार छीन लिए हैं। इस्लाम तो औरतों के अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है।’’
‘‘इस्लाम मेरे लिए दुनिया की सबसे क़ीमती पूंजी है। यह मुझे जान से बढ़कर प्रिय है और इसके लिए बड़ी से बड़ी क़ुरबानी दी जा सकती है।’’
‘‘मुझे हर अच्छे मुसलमान की तरह इस्लाम की एक-एक शिक्षा से गहरी मुहब्बत है। मैंने इसे दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से अपना लिया है और धर्म के मुक़ाबले में दौलत मेरे नज़दीक बेमानी चीज़ है।’’
‘‘मैं आगे केवल ख़ुदा की तारीफ़ पर आधारित कविताएं लिखूंगी। अल्लाह ने चाहा तो ईश्वर की प्रशंसा पर आधारित कविताओं की एक किताब बहुत जल्द सामने आ जाएगी।’’
‘‘मैं इस्लाम का परिचय नई सदी के एक ज़िन्दा और सच्चे धर्म की हैसियत से कराना चाहती हूं। जिसकी बुनियादें बुद्धि, साइंस और सच्चाइयों पर आधारित हैं। मेरा इरादा है कि अब मैं शायरी को अल्लाह के गुणगान के लिए अर्पित कर दूं और क़ुरआन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल कर लूं और उन इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हो जाऊं जो दैनिक जीवन में रहनुमाई का सबब बनती हैं। मेरे नज़दीक इस्लाम की रूह यह है कि एक सच्चे मुसलमान को दूसरों की अधिक से अधिक सेवा करनी चाहिए। अल्लाह का शुक्र है कि मैं पहले से भी इस पर कार्यरत हूं और आगे भी यही तरीक़ा अपनाऊंगी। अतः इस संबंध में मैं ख़ुदा के बन्दों तक इस्लाम की बरकतें पहुंचाने का इरादा रखती हूं। मैं चाहती हूं कि इस्लाम की नेमत मिल जाने के बाद मैं ख़ुशी और इत्मीनान के जिस एहसास से परिचित हुई हूं उसे सारी दुनिया तक पहुंचा दूं।’’
‘‘सच्चाई यह है कि इस्लाम क़बूल करने के बाद मुझे जो इत्मीनान और सुकून हासिल हुआ है और ख़ुशी की जिस कैफ़ियत से मैं अवगत हुई हूं, उसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही मुझे सुरक्षा का एहसास भी प्राप्त हुआ है। मैं बड़ी उम्र की एक औरत हूं और सच्ची बात यह है कि इस्लाम क़बूल करने से पहले जीवन भर बेख़ौफ़ी का ऐसा ख़ास अंदाज़ मेरे तजुर्बे में नहीं आया। सुकून, इत्मीनान, ख़ुशी और बेख़ौफ़ी की यह नेमत धन-दौलत से हरगिज़ नहीं मिल सकती। इसीलिए दौलत मेरी नज़रों में तुच्छ हो गयी है।’’
—डॉक्टर कमला सुरैया (भूतपूर्व ‘डॉक्टर कमला दास’)
—सम्पादन कमेटी ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इण्डिया’ से संबद्ध
—अध्यक्ष ‘चिल्ड्रन फ़िल्म सोसाइटी’
—चेयरपर्सन ‘केरल फॉरेस्ट्री बोर्ड’
—लेखिका, कवियत्री, शोधकर्ता, उपन्यासकार
—केन्ट अवार्ड, एशियन पोएटरी अवार्ड, वलयार अवार्ड, केरल साहित्य अकादमी अवार्ड पुरस्कृत,
जन्म— केरल, 1934 ई॰
इस्लाम-ग्रहण—12 दि॰ 1999 ई॰
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