Weekly Dars-e-Qur’an (Ladies) Friday, 20th May March 2016
May 17, 2016Paighamber Muhammad (saw) ki Sikshayen
May 19, 2016दरूद का मतलब
“अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते हैं| ऐ ईमानवालो तुम भी उन पर दरूद व सलाम भेजो|”
क़ुरआन (सूरह अहज़ाब 33/56)
अल्लाह का नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद भेजेने का मतलब रहमत नाज़िल करना हैं और फ़रिश्ते या मुसल्मानो का आप पर दरूद भेजने का मतलब रहमत की दुआ करना हैं|
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं की नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया-
“तुममे से कोई शख्स जब तक अपनी नमाज़ की जगह पर जहा उसने नमाज़ पढ़ी हैं बैठा रहे और उसका वुज़ु न टूटे तब तक फ़रिश्ते उस पर दरूद भेजते रहते हैं और यूं कहते हैं – ऐ अल्लाह इसे बख्श दे इस पर रहम फ़रमा|”
(अबू दाऊद)
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“सफ़ के दाई और के लोगो पर अल्लाह रहमत नाज़िल करता हैं और फ़रिश्ते उसके लिये रहमत की दुआ करते हैं|”
(अबू दाऊद)
तमाम नबियो पर दरूद भेजने का हुक्म :
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 कहते हैं के नबी के अलावा किसी पर दरूद न भेजो अलबत्ता मुसल्मान मर्दो और औरतो के लिये इस्तिगफ़ार करो|(इसे काज़ी ईस्माईल ने फ़ज़लुस्सलात अलन्नबिय्यि मे रिवायत किया हैं|)
दरूद की फ़ज़ीलत:
हज़रत अनस रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जिसने मुझ पर एक बार दरूद भेजा अल्लाह उस पर 10 बार रहमते नाज़िल करेगा, उसके 10 गुनाह माफ़ करेगा और 10 दर्जे बुलन्द करेगा|”
(निसाई)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जो मुझ पर कसरत से दरूद भेजता हैं कयामत के दिन वो मेरे सबसे करीब होगा|”
(तिर्मिज़ी)
हज़रत अबी बिन काअब रज़ि0 से रिवायत हैं के मैने नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम से कहा –
“ऐ अल्लाह के रसूल मै आप पर कसरत से दरूद भेजता हूं मै अपनी दुआ मे से कितना वक्त दरूद के लिये छोड़ू? आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे| मैने कहा एक चौथाई सही हैं, आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे लेकिन अगर इससे ज़्यादा करे तो तेरे लिये अच्छा हैं| मैने कहा कि आधा वक्त अगर छोड़ू, आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे लेकिन अगर इससे ज़्यादा करे तो तेरे लिये अच्छा हैं| मैने कहा कि तो तिहाई वक्त अगर छोड़ू, आपने फ़रमाया – जितना तू चाहे लेकिन अगर इससे ज़्यादा करे तो तेरे लिये अच्छा हैं| मैने कहा मै अपना सारा दुआ का वक्त दरूद के लिये रख छोड़ता हूं, इस पर आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – ये तेरे सारे दुखो और मुसिबतो के लिये काफ़ी होगा और तेरे गुनाह की माफ़ी का सबब होगा|”
(तिर्मिज़ी)
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ि0 फ़रमाते हैं –
“मै नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ही की तरफ़ देख रहा था की आपने सर उठाया और फ़रमाया क्या बात हैं? मैने बात बतायी तो आपने इरशाद फ़रमाया – कि जिब्रील अलै0 ने मुझसे कहा – ऐ मुहम्मद! क्या मै आपको एक बशारत(शुभ सूचना) न दूं? अल्लाह फ़रमाता हैं जो शख्स आप पर दरूद भेजेगा मै भी उस पर रहमत नाज़िल करुंगा और जो आप पर सलाम भेजेगा भी उस पर सलाम भेजूगां|”
(अहमद)
हज़रत अबू दर्दा रज़ि0 से रिवायत हैं कि नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जिसने 10 बार सुबह, 10 बार शाम को मुझ पर दरूद भेजा उसे कयामत के दिन मेरी सिफ़ारिश हासिल होगी|”
(तबरानी)
“हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ि0 फ़रमाते हैं कि मै नमाज़ पढ़ रहा था| नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम के साथ हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर भी मौजूद थे| मै (दुआ के लिये) बैठा तो पहले अल्लाह की हम्दो सना ब्यान की फ़िर नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद भेजा फ़िर अपने लिये दुआ की तो नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – (इस तरह) अल्लाह से मांगो बेशक अल्लाह तुम्हे अता करेगा| (फ़िर फ़रमाया) अल्लाह से मांगो अल्लाह तुम्हे अता करेगा|”
(तिर्मिज़ी)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जिसने मुझ पर एक बार दरूद भेजा अल्लाह उस पर 10 रहमते नाज़िल करेगा|”
(मुस्लिम)
“हज़रत अबू तलहा रज़ि0 से रिवायत हैं के एक दिन नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम तशरीफ़ लाये आपका चेहरा खुशी से तमतमा रहा था| हमने कहा – आज हम आपके चेहरे पर खुशी देख रहे हैं| आपने फ़रमाया – मेरे पास जिब्रिल अलै0 तशरीफ़ लाये और बशारत(शुभ सूचना) दी के अल्लाह फ़रमाता हैं के क्या आपके लिये ये खुशी की बात नही के आपका जो उम्मती एक बार दरूद भेजे मै उस पर 10 रहमते नाज़िल करुं और जो उम्मती एक बार सलाम कहे मैं उसको 10 बार सलाम कहूं|”
(निसाई)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जिसने मुझ पर एक बार दरूद भेजा उसके नामे आमाल(कर्म पत्र) मे 10 नेकिया लिखी जायेगी| |”
(इसे काज़ी ईस्माईल ने फ़ज़लुस्सलात अलन्नबिय्यि मे रिवायत किया हैं|)
हज़रत आमिर बिन रबिआ रज़ि0 अपने बाप से रिवायात करते हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया–
“जब तक कोई मुसलमान मुझ पर दरूद भेजता रहता हैं उस समय तक फ़रिश्ते उसके लिये रहमत की दुआ करते रहते हैं लिहाज़ा जो चाहे कम पढ़े जो चाहे ज़्यादा पढ़े|”
(इब्ने माजा)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं की नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जब कोई आदमी मुझ पर सलाम कहता हैं तो अल्लाह मेरी रूह वापस लौटाता हैं और मै जवाब देता हूं|”
(अबू दाऊद)
मुख्तलिफ़ हदीसो मे दरूद पढ़ने की अलग-अलग तरह की फ़ज़िलते ब्यान की गयी हैं जो पढ़ने वाले के ईमान, नियत और तकवे पर हैं के उसके अल्लाह इसका कैसा बदला देगा|
दरूद की अहमियत:
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“रुसवा हो वो शख्स जिसके सामने मेरा नाम लिया जाये और वो दरूद न पढ़े| रुसवा हो वो शख्स जिसने रमज़ान का पूरा महीना पाया और वह अपने गुनाह न बख्शवा सके| रुसवा हो वो शख्स जिसके सामने उसके मां-बाप बुढ़ापे की उम्र को पहुंचे और वो उनकी खिदमत करके जन्नत मे दाखिल न हुआ|”
(तिर्मिज़ी)
“हज़रत काअब बिन उजैरह रज़ि0 से रिवायत हैं के एक दिन नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने मिम्बर लाने का हुक्म दिया और जब आप पहली सीढ़ी चढ़े तो फ़रमाया आमीन, फ़िर दूसरी सीढ़ी चढ़े तो फ़रमाया आमीन, फ़िर तीसरी पर चढ़े तो फ़रमाया आमीन| खुत्बे के बाद जब नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम मिम्बर से निचे तशरीफ़ लाये तो सहाबा ने कहा – आज हमने एक ऐसी बात सुनी हैं जो इससे पहले नही सुनी थी| नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – जिब्रील अलै0 तशरीफ़ लाये और कहा – हलाकत हैं उस आदमी के लिये जिसने रमज़ान का महीना पाया लेकिन अपने गुनाह न बख्शवाये| मैने जवाब मे कहा आमीन| फ़िर जब मैं दूसरी सीढ़ी पर चढ़ा तो जिब्रील अलै0 ने कहा – हलाकत हो उस आदमी के लिये जिसके सामने आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम का नाम लिया जाये लेकिन वह आप पर दरूद ने भेजे| मैने जवाब मे कहा आमीन| जब मै तीसरी सीढ़ी चढ़ा तो जिब्रील अलै0 ने कहा – हलाकत हो उस आदमी के लिये जिसने अपने मां-बाप या दोनो मे से किसी एक को बुढ़ापे की उम्र मे पाया लेकिन उनकी खिदमत करके जन्नत हासिल न की| मैने जवाब मे कहा आमीन|”
(हाकिम)
हज़रत अली रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जिसके सामने मेरा नाम लिया जाये और वो दरूद न पढ़े वो कंजूस हैं|”
(तिर्मिज़ी)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जो मुझ पर दरूद पढ़ना भूल गया उसने जन्नत का रास्ता खो दिया|”
(इब्ने माजा)
हज़रत अनस रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“जब तक नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद न भेजा जाये कोई दुआ कबूल नही की जाती|”
(तबरानी)
मसनून दरूद
हज़रत अबू हामिद साअदी रज़ि0 से रिवायत हैं के सहाबा इकराम रज़ि0 ने अर्ज़ किया –
“ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलैहे वसल्लम! हम आप पर किस तरह दरूद भेजे? आपने फ़रमाया – यूं कहो ऐ अल्लाह मुहम्मद सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर, आपकी पाक बीवीयो पर, और आपकी औलादो पर इसी तरह रहमत भेज जिस तरह तूने इब्राहिम अलै0 की आल पर रहमत भेजी| ऐ अल्लाह! मुहम्मद सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर आपकी बीवीयो पर और आपकी औलादो पर इसी तरह बरकते नाज़िल फ़रमा जिस तरह तूने आले इब्राहिम पर बरकत नाज़िल फ़रमायी| तू बेशक बुज़ुर्ग और ज़ात मे आप महमूद हैं|”
(बुखारी)
“हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अबू लैली रज़ि0 कहते हैं कि मुझे काअब बिन उजैरह रज़ि0 मिले और कहने लगे क्या मैं तुम्हे वह चीज़ हदया न दूं जो मैने नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम से सुनी हैं? मैने कहा क्यो नही ज़रूर दो| काअब बिन उजैराह रज़ि0 कहने लगे – सहाबा इकराम रज़ि0 ने नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम से अर्ज़ किया – ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलैहे वसल्लम! अल्लाह ने हमे आप पर सलाम भेजने का तरीका तो बता दिया हैं हम आप पर और अहले बैत पर दरूद कैसे भेजे? नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया – इन अल्फ़ाज़ो मे दरूद भेजा करो – ऐ अल्लाह मुहम्मद पर और मुहम्मद की आल पर इसी तरह रहमत भेज जिस तरह तूने इब्राहिम और इब्राहिम की आल पर रहमत भेजी हैं| तारीफ़ और बुज़ुर्गी तेरे ही लिये हैं| ऐ अल्लाह मुहम्मद और मुहम्मद कि आल पर इसी तरह बरकत भेज जिस तरह तुने इब्राहिम और इब्राहिम की आल पर बरकत भेजी हैं| तू बुज़ुर्ग हैं और अपनी ज़ात मे आप महमूद हैं|”
(बुखारी)
हज़रत उअकबा बिन अम्र रज़ि0 कहते हैं कि एक आदमी नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की खिदमत मे हाज़िर हुआ और आपके सामने बैठ गया और कहने लगा –
“ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलैहे वसल्लम आप पर सलाम भेजने का तरिका मालूम हैं अलबत्ता दरूद भेजने का तरीका हमे बताइये| नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम खामोश हो गये यहा तक के हमने ये ख्वाहिश कि के यह आदमी ऐसा सवाल न करता तो अच्छा था| फ़िर कुछ देर खामोश रहने के बाद आपने इरशाद फ़रमाया – जब तुम मुझ पर दरूद भेजो तो कहो – ऐ अल्लाह उम्मी नबी मुहम्मद पर और मुहम्मद की आल पर इसी तरह रहमत नाज़िल कर जिस तरह तूने इब्राहिम और इब्राहिम की आल पर रहमत भेजी हैं उम्मी नबी मुहम्मद और मुहम्मद कि आल पर इसी तरह बरकत नाज़िल कर जिस तरह तुने इब्राहिम और इब्राहिम की आल पर बरकत भेजी| तू यकीनन ही अपनी ज़ात मे आप महमूद और बुज़ुर्ग हैं|”
(इसे काज़ी ईस्माईल ने फ़ज़लुस्सलात अलन्नबिय्यि मे रिवायत किया हैं|)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ि0 कहते हैं कि नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने हमारी तरफ़ ध्यान दिया और फ़रमाया –
“अल्लाह ही सलामत हैं जब तुम नमाज़ पढ़ोतो कहो – तमाम जवानी और जिस्मानी इबादते अल्लाह ही के लिये हैं| ऐ नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम आप पर अल्लाह का सलाम और उसकी रहमते और बरकते हो हम पर भी और अल्लाह के नेक बन्दो पर भी| जब तुम ये कहोगे तो ये अल्फ़ाज़ अल्लाह के तमाम नेक बन्दो तक पहुंचेगे चाहे वो आसमान मे हो औ र्मै गवाही देता हूं की मुहम्मद सल्लललाहो अलैहे वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल है|”
(बुखारी)
नोट – दरूद तन्ज़ीना, दरूद मुकद्दस, दरूद ताज, दरूद लखी, दरूद अकबर(चारो हिस्से) ये तमाम गैर मसनून हैं और सुन्नत से साबित नही हैं|
दरूद शरीफ़ कब पढ़े:
“हज़रत फ़ुज़ाला बिन उबैदुल्लाह रज़ि0 कहते हैं कि नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने एक आदमी को नमाज़ मे दरूद के बिना दुआ मांगते हुए सुना तो आपने फ़रमाया – इसने जल्दी की| फ़िर आपने उसे अपने पास बुलाया और उसे या किसी दूसरे शख्स को मुखातब करके फ़रमाया – जब कोई नमाज़ पढ़े तो अल्लाह की तारिफ़ व हम्दो सना से शुरु करे फ़िर (तशाहुद मे) अल्लाह के नबी पर दरूद भेजे और उसके बाद जो दुआ चाहे मांगे|”
(तिर्मिज़ी)
“हज़रत अबू उमामा बिन सहल रज़ि0 नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम के एक सहाबी से रिवायत करते हैं कि नमाज़े जनाज़ा मे इमाम का पहली तकबीर के बाद खामोशी से सूरह फ़ातिहा पढ़ना(फ़िर दूसरी तकबीर के बाद) नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर दरुद भेजना फ़िर (तीसरी तकबीर के बाद) ने नियती से मय्यत के लिये दुआ करना और तकबीर मे किरअत न करना(चौथी तकबीर के बाद) आहिस्ता से सलाम फ़ेरना सुन्नत हैं|”
(इमाम शाफ़ाई)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि0 कहते हैं कि मैने नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम को फ़रमाते हुए हैं–
“जब मुअज़्ज़िन की आवाज़(अज़ान) सुनो तो वही कुछ कहो जो मुअज़्ज़िन कहता हैं फ़िर मुझ पर दरूद पढ़ो क्योकि मुझ पर दरुद पढ़ने वाले पर अल्लाह दस रहमते भेजता हैं| इसके बाद मेरे लिये अल्लाह से वसीला मांगो| वसीला जन्नत मे एक जगह हैं जो जन्नतियो मे से किसी एक को दिया जायेगा| मुझे उम्मीद हैं की वह जन्नती मै ही हूंगा लिहाज़ा जो आदमी मेरे लिये अल्लाह से वसीला की दुआ करेगा उसके लिये मेरी शफ़ाअत वाजिब हो जायेगी|”
(मुस्लिम)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“मेरी कब्र को मेला न बनाओ और न ही घरो को कब्रस्तान बनाओ| तुम जहां कही भी हो मुझ पर दरूद भेजते रहो| तुम्हारा दरूद मुझे पहुचा दिया जाता हैं|”
(अहमद)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“अल्लाह ने मेरी उम्मत के लोगो का सलाम मुझे पहुंचाने के लिये फ़रिश्तो को ज़मीन पर लगा रखा हैं जो ज़मीन पर गश्त कर रहे हैं|”
(निसाई)
हज़रत ओस बिन ओस रज़ि से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“सब दिनो मे जुमा का दिन अफ़ज़ल हैं इसी दिन आदम अलै0 पैदा किये गये, इसी दिन उनकी रूह निकाली गयी, इसी दिन सूर फ़ूंका जायेगा, इसी दिन उठने का हुक्म होगा| लिहाज़ा इस दिन मुझ पर कसरत से दरूद भेजा करो| तुम्हारा दरूद मेरे सामने पेश किया जाता है| सहाबा इकराम रज़ि0 ने अर्ज़ किया – ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलैहे वसल्लम! आपकी वफ़ात के बाद आपकी हडडिया बोसी हो चुकी होगी या यू कहा कि आपका जिस्म मुबारक मिट्टी मे मिल चुका होगा तो फ़िर हमारा दरूद आपके सामने कैसे पेश किया जायेगा? आपने इरशाद फ़रमाया – अल्लाह ने नबियो के जिस्म ज़मीन पर हराम कर दिये हैं|”
(अबू दाऊद)
नोट – अज़ान से पहले दरूद पढ़ना सुन्नत से साबित नही, किसी भी फ़र्ज़ नमाज़ के बाद और नमाज़ जुमा के बाद ऊंची आवाज़ से इज्तिमाई दरूद पढ़ना सुन्नत से साबित नही|
नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की बरज़खी ज़िन्दगी और सलाम का जवाब:
सही हदीस से ये बात साबित हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम अपनी कब्र मुबारक मे सलाम कहने वालो को जवाब देते हैं| कब्र मुबारक मे आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम का सुनना और जवाब देना कैसा हैं? इस बारे मे ये बात ध्यान रहे के दुनयावी ज़िन्दगी मे नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर मौत वाके हो चुकी हैं|
जैसा अल्लाह ने क़ुरआन मे फ़रमाया-
“बेशक आप भी मरना हैं और इन्हे भी मरना हैं|”
क़ुरआन (सूरह ज़ुमर 39/30)
“मुहम्मद तो बस एक रसूल हैं और उनसे पहले भी बहुत से रसूल गुज़र चुके हैं तो फ़िर अगर वो मर जाये या कत्ल कर दिये जाये तो तुम लोग उल्टे पांव फ़िर जाओगे?”क़ुरआन (सूरह अल इमरान 3/144)
“ऐ मुहम्मद सल्लललाहो अलैहे वसल्लम! हमेशा की ज़िन्दगी हमने तुमसे पहले किसी भी इन्सान को नही बख्शी अगर तुम गये तो क्या ये (काफ़िर और मुश्रिक) हमेशा ज़िन्दा रहेगे|”
क़ुरआन (सूरह अंबिया 21/34)
“नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की वफ़ात के बाद हज़रत अबू बक्र रज़ि0 के खुत्बे के ये अल्फ़ाज़…तुम मे से जो कोई मुहम्मद सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की इबादत करता था उसे मालूम होना चाहिये के मुहम्मद को मौत आ चुकी हैं|”
(बुखारी)
लिहाज़ा आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की वफ़ात के बाद आपके पाक जिस्म को गुस्ल दिया गया, कफ़न पहनाया गया, नमाज़ जनाज़ा अदा की गयी और मनो मिट्टी के नीचे कब्र मे दफ़न कर दिया गया| लिहाज़ा यह बात बिना किसी शक व शुभे से परे हैं| लिहाज़ा दुनियावी ज़िन्दगी के ऐतबार से नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम दूसरे इन्सानो की तरह इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं अलबत्ता आपकी बरज़खी ज़िन्दगी अंबिया, औलिया और शोहदा और नेक लोगो के मुकाबले ज़्यादा कामिल हैं| बरज़खी ज़िन्दगी के बारे मे ये बात याद रहनी चाहिये कि ये ज़िन्दगी न तो मौत से पहले वाली दुनयावी ज़िन्दगी की तरह हैं और न ही कयामत कायम होने के बाद की ज़िन्दगी जैसी हैं बल्कि इसकी हकीकत सिर्फ़ अल्लाह जानता हैं और ये बात भी अल्लाह ने क़ुरआन मे साफ़ अल्फ़ाज़ो मे ब्यान कर दी-
“और जो लोग अल्लाह की राह मे मारे जाये उन्हे मुर्दा न कहो वो ज़िन्दा हैं लेकिन तुम शऊर नही रखते|”
क़ुरआन (सूरह अल बकरा 2/154)
लिहाज़ा जब अल्लाह ने बरज़खी ज़िन्दगी के बारे मे पूरी सच्चाई के साथ यह बात बता दी कि उस ज़िन्दगी के बारे मे हम ज़िन्दा लोग जो अभी इस दुनिया मे मौजूद हैं हमे इसका शऊर नही तो इस बार मे अक्ल व गुमान के घोड़े दौड़ने से कोई फ़ायदा नही न ही इस बारे मे कोई अटकल लगाना चाहिये जैसे आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम अगर सलाम सुनते हैं और उसका जवाब देते हैं तो उनकी बरज़खी ज़िन्दगी अलग क्यो, या नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम अपनी कब्र मे ज़िन्दा हैं, या आप सलाम सुनते हैं बाकि बाते क्यो नही सुनते वगैराह बल्कि हमारे ईमान का तकाज़ा ये होना चाहिये के अल्लाह और उसके रसूल ने जैसा बताया उसे बस वैसा ही खामोशी के साथ मान ले और जिसके बारे मे अल्लाह और उसके रसूल ने नही बताया और खामोशी इख्तयार करी उसमे इख्तयार करे| न के खोज लगाने मे लगे रहे|
एक गलत अकीदा:
“मुखतलिफ़ हदीसो मे अलग-अलग अल्फ़ाज़ो मे नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने ये बात इर्शाद फ़रमायी के अल्लाह ने कुछ फ़रिश्तो को इस ज़िम्मेदारी पर लगा रखा हैं कि वे ज़मीन मे गश्त करते रहे और जो भी आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम पर दरूद और सलाम भेजे उसे आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम तक पहुंचाते रहे|”
(अहमद, निसाई, दारमी)
इसका साफ़ और सीधा मतलब यह हैं की नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम हर वक्त अपनि कब्र मुबारक मे मौजूद रहते हैं और हर जगह हाज़िर और मौजूद नही हैं| अगर नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम हर जगह हाज़िर और मौजूद होते तो फ़रोश्तो को आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम तक दरूद सलाम पहुंचाने की क्या ज़रुरत थी?
कुह हदीसो से ये भी साबित हैं के फ़रिश्ते आप सल्लललाहो अलैहे वसल्लम को ये भी बतलाते हैं कि फ़ला बिन फ़ला ने दरूद व सलाम भेजा हैं| इससे ये बात पूरी तौर पर साबित हो जाती हैं के नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम को इल्म गैब नही वरना फ़रिश्तो को ये बताने की क्या ज़रूरत कि फ़ला ने सलाम भेजा हैं|
गैर मसनून दरूद और सलाम:
दीन मे लगातार ईजाद होने वाली बिदअत की कसरत के सबब आज उम्मते मुस्लिमा असल मसनून तरिके से दूर और दूर होती जा रही हैं खास तौर से बिदअती दुआ और वज़ाइफ़ के ताल्लुक से| इसी तरह दरूद और सलाम भी आज उम्मत मे कसरत के साथ गढ़े हुए मौजूद हैं और ये इतनी ज़्यादा मकबूलियत और शोहरत हासिल कर चुके हैं अमूमन लोग इन्हे सच और सही समझते है और सही बात की तरफ़ तवज्जो भी नही देते न ही तहकीक करने की कोशीश करते हैं जिसका नतायज ये के दुश्मने इस्लाम अपने मकसद मे कामयाब हो रहे हैं और उम्मत सही बात से दूर होती जा रही हैं|
दरूद के नाम पर आज दरूदे ताज, दरूदे लखी, दरूदे मुकद्दस, दरूदे अकबर, दरूद माही, दरूद तन्ज़ीना वगैराह लोगो मे आम हैं जिसका वजूद नबी और सहाबा से साबित नही बल्कि इनको फ़ैलाने वालो ने लोगो को इस सच्चाई के साथ इसका यकीन भी दिलाया के इनको फ़ला फ़ला वक्तो मे पढ़ना चाहिये जिससे अलग अलग तरह के फ़ायदे होते हैं| इन दरूदो मे से ऐसा कोई भी दरूद नहि जो नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की एक भी हदीस से साबित हो|
लिहाज़ा दरूद को पढ़े मगर उन दरूद को, उन वक्तो मे जिनके बारे मे नबी सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने हुक्म दिया और जो सही हदीस से साबित हैं|
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