Roza Budhape ko kam Karne mein Madad Deta hai – Dr. Sa’ad Assakeer
June 9, 2016Weekly Dars-e-Qur’an (Gents) Sunday, 19th of June 2016
June 12, 2016अज़ान क्या है?
एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार संसार में हर समय गूंजने वाली आवाज़ अज़ान है। इंडोनेशिया से फज्र का समय आरंभ होकर सुमात्रा तक आ जाता है। यह सिलसिला मलाया, ढ़ाका और पूरे भारत के बाद पाकिस्तान में शुरू हो जाता है। उसके बाद अफ्गानिस्तान, मस्क़त, सऊदी अरब, यमन, इराक़ में अज़ान शुरू हो जाती है।
फिर मिस्र, इंस्तांबुल, ट्राइपोलि, लीबिया, नॉर्थ अमेरिका में अज़ान का समय हो जाता है। और ऐसे ही फज्र की अज़ान 9 घंटे का सफर पूरा करती है तो इंडोनेशिया में ज़ुहर का समय हो जाता है।
इस प्रकार पाँच समय की अज़ान से संसार में एक भी ऐसा सिकण्ड नहीं जब अज़ान की आवाज़ न गूंज रही हो।
अज़ान का अर्थ क्या है?
भारत में एक बार हमने अपने गैर – मुस्लिम देशवासियों से यह प्रश्न किया कि अज़ान क्या है? अधिकांश लोगों का उत्तर था कि अज़ान में ईश्वर को पुकारा जाता है, कुछ लोगों ने कहा कि यह ईश्वर की भक्ति का एक नियम है। जबकि एक सज्जन ने कहा कि अज़ान में अकबर बादशाह को पुकारा जाता है।
अज़ान के सम्बन्ध में अपने देशवासियों के यह उत्तर सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ और दुख भी की हम सब अपने देश में शताब्दियों से एक साथ रहने के बावजूद एक दूसरे की धार्मिक संस्कृति के प्रति संदेह में पड़े हुए हैं अथवा दोष पूर्ण विचार रखते हैं।
वास्तविकता यह है कि अज़ान में न तो ईश्वर को पुकारा जाता है, न अकबर बादशाह को, और न ही यह पूजा करने का कोई तरीक़ा है। बल्कि इसके द्वारा लोगों को नमाज़ के समय की सूचना दी जाती है ताकि लोग मस्जिद में उपस्थित हो कर सामूहिक रूप में ईश्वर की भक्ति करें।
ईश्-भक्ति हेतु हर मुसलमान पुरुष एवं स्त्री पर दिन और रात में पाँच समय की नमाजेँ अनिवार्य की गई हैं। पाँच समय की यह नमाजें ऐसे समय में भी आती हैं जिसमें एक व्यक्ति सोया होता है या अपने कामों में व्यस्त होता है, अतः ऐसे माध्यम की अति आवश्यकता थी जिसके द्वारा लोगों को नमाज़ों के समय के सूचित किया जा सके। अज़ान इसी उद्देश्य के अंतर्गत दी जाती है। परन्तु इस्लाम का कोई भी आदेश केवल आदेश तक सीमित नहीं होता बल्कि उसमें मानव के लिए पाठ भी होता है। अज़ान के शब्दों पर चिंतन मनन करने से हमें यही बात समझ में आती है। इस विषय में इस्लाम के एक महान विद्वान शाह वलीउल्लाह देहलवी लिखते हैं।
ईश्वर की हिकमत का उद्देश्य भी यही था कि अज़ान केवल सूचना अथवा चेतावनी हो कर न रह जाए बल्कि धर्म का परिचय कराने में दाखिल हो जाए, और दुनिया में इसकी प्रतिष्ठा केवल चेतावनी की नहीं धर्म प्रचार की भी हो, और उसकी आज्ञापालन और उपासना का चिह्न भी समझा जाए, इस लिए अनिवार्य यह हुआ कि इसमें अल्लाह की प्रशंसा हो, अल्लाह और उसके अन्तिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम के वर्णन के साथ नमाज़ की ओर बुलावा हो ताकि इस उद्देश्य की भली-भाति पूर्ती हो सके।
आपके मन में यह प्रश्न पैदा हो रहा होगा कि अज़ान के शब्दों का क्या अनुवाद होता है तो आइए सर्वप्रथम हम अज़ान के शब्दों का अर्थ जानते हैं:
- ”अल्लाहु हु अकबर”,—- ईश्वर सब से महान है। (चार बार)
- ”अश्हदु अन ला इलाहा इल्ला अल्लाह”,—- मैं वचन देता हूं कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा उपासना के योग्य नहीं। (दो बार)
- ‘‘अशहदु अन्ना मुहम्मदन रसूल अल्लाह”,—- मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। (दो बार)
- ”हय्या ‘अल-स-सलाह”,—- आओ नमाज़ की ओर। (दो बार)
- ”हय्या ‘अल-ल-फलाह”,—- आओ सफलता की ओर। (दो बार)
- ”अल्लाहु हु अकबर”,—- ईश्वर सब से महान है। (दो बार)
- ”ला इलाहा इल्ला अल्लाह”,—- ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा उपासना के योग्य नहीं।
- ”अस-सलातु खैरुन मिनान-नवं”,—- नमाज़ सोने से उत्तम है। (दो बार) (यह मात्र सुबह की नमाज़ में कहे जाते हैं)
अब आइए अज़ान के इन शब्दों पर चिंतन मनन कर के देखते हैं कि अज़ान में क्या संदेश दिया जाता है।
- पहला शब्दः —- ईश्वर सर्वमहान है (चार बार) अज़ान देने वाला सब से पहले मनुष्यों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि ईश्वर जो सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी और पालनहार है, वह सर्वमहान है, वह अनादी और अनन्त है, निराकार और निर्दोश है, उसके पास माता – पिता नहीं, उसको किसी की आवश्कता नहीं पड़ती न वह न किसी का रुप लेकर पृथ्वी पर आता है और न उसका कोई साझीदार है। परन्तु जब मनुष्य इस महान पृथ्वी पर आकाश को देखता है, सूर्य, चंद्रमा, और
सितारों पर दृष्टि डालता है, बिजली की चमक, बादल की गरज, और किसी पीर फक़ीर के चमत्कार आदि पर गौर करता है तो इन सब की महानता उसके हृदय में बैठने लगती है तो अज़ान देने वाला यह याद दिलाता है कि यह सब चीज़ें ईश्वर की महानता के सामने बिल्कुल तुच्छ हैं क्यों कि वही इन सब चीज़ों का बनाने वाला है, वही लाभ एवं हानि का मालिक है। यह चीज़े अपनी महानता के बावजूद ईश्वरीय दया की मुहताज हैं, ईश्वर ही सब की आवश्यकतायें पूरी कर रहा है, संकटों में वही मुक्ति देता है, सब की पुकार को सुनता है, परोक्ष एवं प्रत्यक्ष का जानने वाला है, सारे पीर फक़ीर, साधु संत और दूत सब उसी के मुहताज हैं और उनको किसी को लाभ अथवा हानि पहुंचाने का कुछ भी अधिकार नहीं क्योंकि मात्र एक ईश्वर सर्वमहान है। - दूसरा शब्दः —- ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। (दो बार) पहले शब्द से जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर सर्वमहान है, सारी चीज़ें उसी की पैदा की हुई हैं तथा उसी के अधीन हैं तो अब यह पुकार लगाई जाती है कि उसी की आज्ञाकारी भी की जानी चाहिए। अतः अज़ान देने वाला कहता है कि मैं वचन देता हूं कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं। विदित है की जब सब कुछ ऊपर वाला ईश्वर ही करता है तो फिर सृष्टि की कोई प्राणी अथवा वस्तु उपास्य कैसे हो सकती है ? अतः यह पुकार लगाई जाती है कि हे मनुष्यो ! सुन लो कि ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं की जानी चाहिए। अब प्रश्न यह था कि ईश्वर की पूजा कैसे की जाएगी और ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु क्या नियम अपनाया तो इसे अज़ान के अगले शब्दों में बताया गया है ।
अगले शब्द में आप देखेंगे की मानव कल्याण तथा ईश्वरीय मार्गदर्शन हेतु अज़ान क्या संदेश देता है। तो आईए चलते हैं अज़ान के तीसरे शब्द की व्याख्या की ओरः
- तीसरा शब्दः —- मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। (दो बार) जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर को किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा उसका पृथ्वी पर मानव रूप धारण करके आना उसकी महिमा को तुच्छ सिद्ध करता था, इसीलिए उसने मानव द्वारा ही मानव-मार्गदर्शन का नियम बनाया, और हर देश तथा हर युग में मानव ही से पवित्र लोगों का चयन कर के उन्हें अपना दूत बनाया तथा आकाशीय दूतों द्वारा उन पर अपनी प्रकाशना भेजी जिनका अन्तिम क्रम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम पर समाप्त हो गया। आपको “सम्पूर्ण संसार हेतु दयालुता” बना कर भेजा गया। आपके आगमन की भविष्यवाणी प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी, आप ही के बताए हुए नियमों द्वारा ईश्वर की पूजा करने की घोषणा करते हुए अजान देने वाला कहता है कि मैं मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। अर्थात मैं ईश्वर की पूजा जैसे चाहूं वैसे नहीं करूँगा बल्कि मेरी पूजा भी अन्तिम ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वस्सल्लम के बताए हुए नियमानुसार होगी।
- चोथा शब्दः —- आओ नमाज़ की ओर (दो बार) इस वाक्य द्वारा ऐसे व्यक्ति को नमाज़ की ओर बोलाया जाता है जो मौखिक तथा हार्दिक प्रतिज्ञा दे चुके होते हैं कि, ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं तथा मुहम्मद हमारे अन्तिम संदेष्टा हैं। इसी प्रतिज्ञा को व्यवहारिक रूप देने के लिए मस्जिद में बुलाया जाता है ताकि जिस शब्द से उसने स्वयं को मुस्लिम सिद्ध किया है उसका व्यवहारिक प्रदर्शन कर सके। नमाज़ मात्र एक ईश्वर के लिए पढ़ी जाती है जिसमें स्तुति, प्रशंसा, कृतज्ञता आदि सब एकत्रित हो जाते हैं और सामूहिक रूप में अदा करने से इस्लामी समता तथा बन्धुत्व का पूर्ण प्रदर्शन होता है जहाँ धनी और निर्धन, स्वामी और सेवक, काले और गोरे, बड़े और छोटे सब एक साथ मिल कर नमाज़ अदा करते हैं।
- पाँचवा शब्दः —- आओ सफलता की ओर इस शब्द द्वारा एक व्यक्ति के मन एवं मस्तिष्क में यह बात बैठाई जाती है कि सफलता न माल एकत्र करने में है, न ऊंचे ऊंचे भवन बनाने में, बल्कि वास्तविक सफलता केवल एक ईश्वर की पूजा में है, जो महाप्रलय के दिन का भी मालिक है। और यह संसार परीक्षा-स्थल है, परिणाम स्थल नहीं, परिणाम के लिए हर व्यक्ति को अपने रब के पास पहुंचना है तथा अपने कर्मो का लेखा जोखा देना है। यदि एक ईश्वर के भक्त बने रहे तो स्वर्ग के अधिकारी होगें जो बड़ा सुखमय तथा हमेशा रहने वाला जीवन होगा, परन्तु यदि एक ईश्वर के आदेशानुसार जीवन न बिताया तो नरक में डाल दिए जाएंगे जो बड़ी दुखमय तथा पीड़ा की जगह होगी। इस प्रकार अजान देने वाला घोषणा करता है कि हे मनुष्यो आओ और नमाज़ अदा करके सफलता प्राप्त करो। वास्तविकता यही है कि ईश्वर से अनभिज्ञता मानव के लिए सब से बड़ी असफलता है, इसी लिए एक स्थान पर पवित्र कुरआन में कहा गया कि { प्रत्येक मनुष्य घाटे में हैं, सिवाए उसके ईश्वर के आज्ञाकारी बन गए, सत्य कर्म किया, दुसरो को सत्य की और बुलाया, और इस सम्बन्ध में आने वाली कठिनाइयों को सहन किया } काश कि इस बिन्दु पर हम चिंतन मनन कर सकें।
- छठवाँ शब्दः —- ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। ईश्वर की महानता को बल देते हुए अज़ान देने वाला पुनः कहता है कि हे मनुष्यो ईश्वर सर्व महान है, उसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, इस लिए अपने ईश्वर की पूजा से विमुख हो कर अन्य की पूजा कदापि न कर, मात्र एक ईश्वर की पूजा कर जो तुम्हारा तथा सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी, संरक्षक और प्रभु है।
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