पीटर सैंडर्स – जिन्होंने अपनी फोटोग्राफी के ज़रिये विश्व में इस्लाम पहुँचाया
इस्लाम के मायने ही अमन के है। इस्लाम को हिंसा से जोडऩा गलत है। मैंने संबंधों को जोडऩे की कोशिश की। मैं ब्रिटिश नागरिक हूं। मैं लन्दन में जन्मा हूं। इस्लाम का सम्मान करता हूं। इस्लाम एक महान धर्म है। मैं कई मुस्लिमों से मिलता हूं। सबसे बेहतर वे मुस्लिम है जो अपनी जिंदगी में इस्लाम को अपनाए हुए होते हैं।
एक सुबह मैं स्टेशन पर रेल का इंतजार कर रहा था। स्टेशन खचाखच लोगों से भरा था। भीड़ के बीच एक महिला ने अचानक मेरे बगल में अपनी जाजम बिछा ली और नमाज पढऩे लगी। मेरे लिए यह घटना चौंकाने वाली थी। ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैंने एक व्यक्ति से पूछा, “यह सब क्या है ?”
उसने जवाब दिया, “यह मेरी दादी है। यह मुस्लिम है और प्रार्थना कर रही है।”
संभव है यही कारण रहा हो। अल्लाह ने वह क्षण एक तस्वीर की तरह मुझे दिया जो आज भी मेरी स्मृतियों में है। जब मैं ब्रिटेन लौटा तो मेरे कई साथी नशे के लती हो चुके थे और कुछ इस्लाम धर्म अपनाकर इससे बचे हुए थे, तब मुझे लगा कि यही मेरा रास्ता है। इसके तीन महीने बाद मेरी जिंदगी में निर्णायक मोड़ आया। मैं हज करने मक्का गया और फिर मैंने चालीस विभिन्न मुस्लिम देशों की एक अंतहीन यात्रा शुरू कर दी।
पीटर सैंडर्स ने अपना कैरियर साठ के दशक के मध्य में शुरू किया। वे अपने वक्त के संगीत के सितारों बॉब डायलन, जिमी हैंडरिक्स, द डोर्स और रोलिंग स्टोन्स की अगली पीढ़ी के नुमाइंदे थे। लेकिन संगीत से सैंडर्स के दिल की प्यास नहीं बुझ सकी।
1970 के आखिर में उन्होंने भारत की आध्यात्मिक यात्रा की। साल भर बाद जब वे ब्रिटेन लौटे तो इस्लाम धर्म ग्रहण कर चुके थे और उन्होने अपना नाम बदलकर अब्दुल अदीम रख लिया था। सैंडर्स अब प्यासे नहीं थे। इस्लाम ने उनके काम को नई ऊर्जा दे दी थी। इसी वर्ष उन्होंने मुस्लिम देशों की यात्राएं शुरू की। 1971 में उन्होंने काबा और हज यात्रियों की करीब से तस्वीरें खींची जो पहली बार पश्चिमी अखबारों – द सण्डे टाइम्स और द ऑब्जर्वर में छपीं। आज सैंडर्स या अब्दुल अदीम मुस्लिम समाज के सबसे बड़े फोटोग्राफर के रूप में जाने जाते हैं, संभव है वे इकलौते भी हों। अब्दुल अदीम एक फोटो प्रदर्शनी लगाने जकार्ता आए। रिपब्लिका में प्रकाशित इमान यूनियार्ता एफ़ द्वारा लिए गए उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं:
१९७१ में भारत की यात्रा के बाद आपने इस्लाम धर्म अपना लिया। यह कैसे हुआ ?
जब मैं बीस साल का हो रहा था, मौत के बारे में सोचता था कि क्या हम इसके बाद खत्म हो जाते हैं ?
यह सवाल मुझे आतंकित किए हुए था। आखिरकार मैंने संगीत में अपने कैरियर को छोडऩे का फैसला किया। मै भारत गया और वहां पर हिंदू, बौध्द, सिक्ख और इस्लाम धर्मों के बारें में सीखा।
आपने इस्लाम को ही क्यों चुना ?
मैं पक्का नहीं जानता। खुदा ने मेरे लिए इसे चुना। लेकिन भारत में मेरे साथ एक अद्भुत घटना घटित हुई। एक सुबह मैं स्टेशन पर रेल का इंतजार कर रहा था। स्टेशन खचाखच लोगों से भरा था। भीड़ के बीच एक महिला ने अचानक मेरे बगल में अपनी जाजम बिछा ली और नमाज पढऩे लगी। मेरे लिए यह घटना चौंकाने वाली थी। ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैंने एक व्यक्ति से पूछा, “यह सब क्या है ?” उसने जवाब दिया, “यह मेरी दादी है। यह मुस्लिम है और प्रार्थना कर रही है।”
संभव है यही कारण रहा हो। अल्लाह ने वह क्षण एक तस्वीर की तरह मुझे दिया जो आज भी मेरी स्मृतियों में है। जब मैं ब्रिटेन लौटा तो मेरे कई साथी नशे के लती हो चुके थे और कुछ इस्लाम धर्म अपनाकर इससे बचे हुए थे, तब मुझे लगा कि यही मेरा रास्ता है। इसके तीन महीने बाद मेरी जिंदगी में निर्णायक मोड़ आया। मैं हज करने मक्का गया और फिर मैंने चालीस विभिन्न मुस्लिम देशों की एक अंतहीन यात्रा शुरू कर दी।
आपको दुनिया का सबसे दिलचस्प हिस्सा कौन सा लगता है ?
यह सवाल मुझसे अक्सर पूछा जाता है। मेरा जवाब यही होता है – ब्रिटेन। हालाकि मुझे अन्य स्थान भी पसंद है। मैं चीन तीन बार गया। मैं इस बार फिर वहां जाऊंगा। पूरी दुनिया दिलचस्प है और हर देश अपने आप में विशिष्ट है।
तस्वीरें खींचने के लिए एक यात्रा में आप कितना वक्त बिताते हैं ? जब मै जवान था, एक देश में मैं छह महीने तक रह जाता था। लेकिन अब मैं दो सप्ताह से ज्यादा नहीं रुकता हूं खासकर कठिन इलाकों में।
आप विभिन्न देशों के लोगों से कैसे घुल मिल जाते हैं ?
सिर्फ मुस्कराते रहना ही काफी है,इससे मैं संबंध बना लेता हूं। आप मानें या न मानें इंसान गजब की चीज है। वह जितना गरीब होता है उतना ज्यादा उदार होता है। चीन में नब्बे साल की एक वृध्दा से मैं मिला। यह जानकर कि मैं भी एक मुस्लिम हूं, उसने मुझे अपने यहां बुलाया। उसके यहां पहुंचते ही मैंने देखा कि वहां सिर्फ एक पतला गद्दा और एक दुबली बिल्ली थी। लेकिन इस्लाम हमें मेहमानों का सत्कार करना सिखाता है। उसने मेरा अच्छा स्वागत किया और सबसे अच्छे खाने लगाए। जिस देश में मैं पैदा हुआ,वहां के लोग बहुत संकुचित सोच के हैं। वे पहली मुलाकात में आपको अपने घर आने का न्यौता नहीं देंगे। लेकिन,हम दुनिया के गरीब लोगों में उनकी बदहाली के बावजूद यह दिलचस्प उदार भाव पाते हैं। आपके द्वारा मुस्लिम समाज की ली गई तस्वीरें पश्चिम मीडिया में काफी छपी हैं। आपको उनसे क्या उम्मीद है ?
कई घटनाओं ने मुस्लिमों के खिलाफ नफरत पैदा की है। अमेरिका में 9/11 और ब्रिटेन में 7/7 की घटना। ये लोग डरे हुए हैं। लेकिन आपको जानना चाहिए कि अधिकतर मुस्लिम अमन पसंद है। इस्लाम के मायने ही अमन के है। इस्लाम को हिंसा से जोडऩा गलत है। मैंने संबंधों को जोडऩे की कोशिश की। मैं ब्रिटिश नागरिक हूं। मैं लन्दन में जन्मा हूं। इस्लाम का सम्मान करता हूं। इस्लाम एक महान धर्म है। मैं कई मुस्लिमों से मिलता हूं। सबसे बेहतर वे मुस्लिम है जो अपनी जिंदगी में इस्लाम को अपनाए हुए होते हैं।
क्या आप मुस्लिम समाज के खूबसूरत पक्ष की तस्वीरें उतारते हैं या सच्चाई बयान करने को प्राथमिकता देते हैं ?
मैंने सकारात्मक तस्वीरें बनाने और मुस्लिमों की खूबसूरती को सामने लाने की कोशिश की है। हमें इस जीवन में खूबसूरती की जरूरत है। खुदा को भी खूबसूरत चीजें पसंद हैं। मैं अक्सर गरीब मुस्लिम समुदाय के बीच रहता हूं और मेरा मानना है कि इन लोगों में अब भी खूबसूरती और रहमदिली बाकी है। तमाम यात्राओं के बाद मुस्लिम समुदाय के बारें में आपकी क्या राय है ?
इस्लाम एक ऐसी स्वच्छ नदी है जिसमें तमाम संस्कृतियां घुलमिल कर एक साथ रह सकती हैं। जब इस नदी की धारा काली चट्टानों से होकर गुजरती है तो पानी काला दिखता है और जब यही धारा पीली चट्टान पर से गुजरेगी तो पानी पीला दिखेगा। यही वजह है कि अफ्रीका में इस्लाम अफ्रीकी है,यूके में इस्लाम ब्रितानी है और चीन में चीनी इस्लाम है। आपका एक प्रोजेक्ट परंपरागत मुस्लिम समुदायों के बारे में दस्तावेजीकरण का है। क्यों ?
मैंने पैंतीस साल यात्रांए की और पाया कि इस्लाम पारंपरिक माहौल में बेहतर पनप सकता है जहां कुछ विशिष्ट समुदाय पैदा हो जाते हैं। लेकिन आधुनिक विश्व में यह चीज खत्म हो रही है। पारंपरिक इस्लाम मॉरिशेनिया जैसे स्थानों पर ही बचा है। जहां लोग एक दूसरे की रक्षा करते हैं और अध्यात्म के उच्चतम स्तर पर आपस में जुड़े हैं। यह मैंने पश्चिम में नहीं पाया। मैंने अपने बच्चों को ऐसा माहौल देने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मैं क्या करता ? मैं जबरदस्ती नहीं कर सकता। इस्लाम में जोर जबरदस्ती नहीं चलती। अपनी समझ से ही सच्चाई तक पहुंचा जा सकता है। मैंने इंडोनेशिया में देखा कि यहां आधुनिकता और परंपरागत मान्यताओं के बीच एक संतुलन है।
साभार: स्पैन, अंक: फरवरी – मार्च, पेज: 28-29