Islami Qanoon Mein Balatkaar Ki Sazaa, Kyaa Nirdayata Hai?
May 16, 2016Weekly Dars-e-Qur’an (Gents) Sunday, 22nd of May 2016
May 17, 2016निकाह कौन करे:
निकाह के तल्लुक से अकसर ये देखा जाता हैं और लोगो मे भी ये आम बात हैं के जब तक कोई बेहतर कमाऊ लड़का न मिल जाये लड़की का निकाह नही किया जाता और उसे बैठाले रखा जाता हैं, अगर किसी लड़के या लड़की की बड़े भाई या बड़ी बहन या छोटे भाई या छोटी बहन की शादी ना हुई हो तो दूसरे भाई बहन के आने वाले रिश्तो को भी मना कर दिया जाता हैं या मामला एक मुद्दत तक के लिये तय कर रोक दिया जाता हैं के जब दूसरे की होगी तभी साथ मे निकाह किया जायेगा| दूसरे हमारे मुल्क के कानून के तहत लड़के की शादी 21 साल से पहले और लड़की की शादी 18 साल से पहले करना कानूनन जुर्म समझा जाता हैं|
जबकि शरियत इस्लामिया इसके बारे मे क्या कहती हैं आईये ज़रा गौर करे-
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“ऐ नौजवानो की जमात तुम मे से जो शख्स निकाह की ताकत रखता हैं इसे चाहिए के निकाह कर ले| इसकी वजह से निगाह नीची रहती हैं और जिस्म बदकारी से महफ़ूज़ रहता हैं और जिसे निकाह की ताकत न हो उसे चाहिए के रोज़े रखा करे क्योकि रोज़ा ख्वाहिशो को कुचल देता हैं|”
(बुखारी, मुस्लिम, अबू दाऊद, निसाई, तिर्मिज़ी)
हदीस नबवी से पता चलता हैं के निकाह खालिस जिस्म को बदकारी से बचाने और नफ़्स की ज़रुरियात को जायज़ तरिके से पूरा करने का नाम हैं जिसके सबब इन्सान गुनाह से तो बचता ही हैं और नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इस अहम सुन्नत को अदा कर नेकी का भी हकदार बनता हैं यही वजह के के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने नौजवानो को निकाह की तरगीब दिलाई| दूसरी सूरत मे निकाह की ताकत(यानि कूवते मर्द न होने या कमज़ोर होने की सूरत मे या बीवी के जायज़ अखराजात पूरा ना कर पाने) न रख पाने वाले शख्स को रोज़े की तरगीब दिलाई ताकी इन्सान गुनाह से बच सके क्योकि रोज़ा इन्सान के शहवत के असर को कुचल देता हैं|
इसी तरह से बुखारी की एक दूसरी हदीस से साबित हैं-
हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया –
“हम नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के ज़माने मे नौजवान थे| हमे कोई चीज़ मयस्सर न थी| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया – नौजवानो की जमात तुम मे से जिसे भी निकाह करने की माली ताकत हो इसे निकाह कर लेना चाहिए क्योकि ये नज़रो को नीची रखने वाला और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करने वाला अमल हैं और जो कोई निकाह करने की ताकत न रकह्ता हो इसे चाहिये के रोज़े रखे क्योकि रोज़ा इसकी ख्वाहिशात नफ़सानी को तोड़ देगा|”
(बुखारी)
इस हदीस मे सिर्फ़ इतना ज़्यादा हैं की हमे कोई चीज़ मयस्सर न थी जिससे मुराद जो कम से कम दो लोगो के लिये काफ़ी हो जैसे क्घर, कपड़े, बर्तन वगैराह| यहा ये बात गौर करने वाली हैं के इस्लाम का इब्तेदाई दौर बहुत ही गुरबत भरा दे जिसके सबब अकसर सहाबा कई-कई फ़ांका करते थे न के आजकल की तरह के हर चीज़ मयस्सर होने के बावजूद निकाह मे ताखिर् की जाती हैं जिसके भयानक नतायज आज देखने को मिलते हैं के कमसिनी की ही उम्र मे लड़का-लड़की का इश्क करना या घर से भाग जाना वगैराह|
हज़रत सहल बिन साद रज़ि0 से रिवायत हैं-
“एक औरत नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम के पास आई और अर्ज़ किया के मैं इसलिये हाज़िर हूं के अपनी ज़ात आपको हिबा कर दूं| फ़िर नज़र की नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इसकी तरफ़ और खूब नीचे से ऊपर तक निगाह की इसकी तरफ़ और फ़िर अपना सर मुबारक झुका लिया और जब औरत ने देखा के आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने इसे कोई हुक्म नही दिया तो बैठ गयी और एक सहाबी रज़ि0 उठे और अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अगर आप को इसकी हाजत नही तो मुझसे इसका अकद कर दीजिये|
आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया तेरे पास कुछ हैं| इसने अर्ज़ किया कुछ नही अल्लाह की कसम ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया तो अपने घरवालो के पास जा और देख शायद कुछ पाये|
फ़िर वो गये और लौट आये और अर्ज़ किया के अल्लाह की कसम मैने कुछ नही पाया| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़िर फ़रमाया के जा देख अगरचे लोहे का छल्ला हो वो फ़िर गया और लौट आया और अर्ज़ कि अल्लाह की कसम ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम एक लोहे का छ्ल्ला भी नही है मगर ये मेरी तहबन्द हैं| सहल रज़ि0 ने कहा के इस गरीब के पास चादर भी न थी| सो इसमे से आधी इस औरत की हैं| नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया तुम्हारी तहबन्द से तुम्हारा क्या काम निकलेगा के अगर तुमने इसे पहना तो इस पर इसमे से कुछ न होगा और इसने पहना तो तुझ पर कुछ न होगा|
फ़िर वो शख्स बैठ गया (यानि मायूस होकर) यहा तक के जब देर तक बैठा रहा तो खड़ा हुआ और जनाब रसूल अल्लाह सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने जब इसको देखा के पीठ मोड़ कर चला, सो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने हुक्म दिया वो फ़िर बुलाया गया| जब आया तो आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया के तुझे कुछ कुरान याद हैं| इसने अर्ज़ किया के मुझे फ़ला सूरत याद हैं और इसने सूरतो को गिना और आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया के कुरान को अपनी याद से पढ़ सकता हैं| इसने अर्ज़ किया के हां| आप सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से फ़रमाया के जा मैने तेरा ममलूक कर दिया (यानि निकाह कर दिया) औज़ मे इस कुरान के जो तुझे याद हैं (यानि ये सूरते इसे याद दिला देना यही इसका मेहर हैं)|”
(बुखारी, मुस्लिम, तिर्मिज़ि, दार्मी)
अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की इस हदीस से निकाह के लिये जो बाते निकल कर सामने आती हैं वो ये हैं-
- निकाह से पहले लड़की देखना
- औरत अपना रिश्ता खुद दे सकती हैं|
- निकाह के लिये माली हालत लाज़मी नही हैं बस मुसलमान होना और दीनदार होना काफ़ी हैं|
- मेहर मे बीवी को देने के लिये कम से कम लोहे का छ्ल्ला होना लाज़िमी हैं|
- और अगर माल के ऐतबार से लोहे का छ्ल्ला भी न हो तो कम से कम कुरान का कुछ हिस्सा ज़रूर याद होना चाहिये जो के मेहर के बदले मुकरर्र किया जा सके|
हमारे मौजूदा मआशरे मे आजकल शायद ही कोई ऐसा हो जिसके मेहर मे देने के लिये लोहे का छ्ल्ला भी न हो| जबकि शरियत इस्लाम ने निकाह को इतना सस्ता कर दिया बावजूद लोगो ने निकाह को महगां कर ज़िना को आज सस्ता कर दिया जिसके सबब लोग गुनाह करने से भी नही डरते|
अकसरियत का ये गुमान हैं के जब तक निकाह मे अच्छी खासी रकम न खर्च न की जाये निकाह नही हो सकता| जबकि जिस फ़ितरी तकाज़े के तहत शरियत ने निकाह को सस्ता किया उस पर कोई गौर फ़िक्र नही करता|
मुसलमान कतई इस बात को न भूले के अपनी नफ़्स पर ज़ुल्म करना भी गुनाह हैं और निकाह मे ताखिर से सिर्फ़ गुनाह के इमकान बढ़ते हैं| कुछ लोगो का ये माना हैं के कम उम्र मे निकाह कर देने से सेहत पर फ़र्क पड़ता हैं जबकि मेडिकल सांइस से ये साबित हैं के कम उम्र मे बच्चा जनने वाली औरत के जिस्मानी कूवत मे इज़ाफ़ा और फ़ुर्तीलापन बढ़ता हैं और जिस्म के अलग-अलग हिस्सो की तरक्की होती हैं|
आम तौर से पढ़ने वाले लड़को की ये सोच होती हैं के जब तक पढ़ाई मुकम्मल न हो जाये और इसके बाद कोई बेहतर नौकरी या कारोबार न जम जाये शादी न करेगे क्योकि शादी के बाद बीवी-बच्चो के अखराजात कहा से पूरा करेगे| जबकि अल्लाह का ये दावा हैं के कोई किसी को नही खिलाता हर कोई अल्लाह के हुक्म से रोज़ी पाता हैं|
इरशाद बारी तालाह हैं-
“तुम मे से जो मर्द और औरत बेनिकाह हो उनका निकाह कर दो और अपने गुलाम और लौंडियो का भी| अगर वो मुफ़लिस भी होगे तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से गनी बना देगा| अल्लाह तालाह कुशादगी वाला और इल्म वाला हैं|”
क़ुरआन (सूरह नूर सूरह नं 24 आयत नं 32)
“इसमे शक नही के तुम्हारा रब जिसके लिये चाहता हैं रोज़ी बढ़ा देता हैं और जिसके लिये चाहता हैं तंग कर देता हैं और इसमे शक नही कि वह अपने बन्दो से बहुत बाखबर और देखभाल रखने वाला हैं|” क़ुरआन (सूरह बनी इसराईल सूरह नं 17 आयत नं 30)
हदीस नबवी हैं, हज़रत अबू हातिम मज़नी रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने फ़रमाया–
“जब तुम्हारे पास ऐसा शख्स आये जिसके दीन और इख्लाक को तुम पसन्द करते हो तो इस से निकाह कर दो| अगर ऐसा नही करोगे तो ज़मीन मे फ़ित्ना और फ़साद होगा| सहाबा रज़ि0 ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम अगरचे वो मुफ़लिस ही क्यो न हो| फ़रमाया – अगर दीनदारी और इख्लाक को तुम पसन्द करते हो तो इस से निकाह कर दो| यही अल्फ़ाज़ तीन मरतबा फ़रमाये|”
(तिर्मिज़ि)
हदीस और क़ुरआन की ये आयत और इस जैसी बहुत सी आयत जिसमे अल्लाह ने इस बात का दावा किया के रोज़ी का मालिक सिर्फ़ अल्लाह हैं और वो ही जिसे चाहता हैं माल-दौलत देता हैं जिसे चाहता हैं मुफ़्लिस कर ले लेता हैं तो जिन लोगो का ये ख्याल हैं के वो पहले माल जमा कर ले फ़िर निकाह करे तो ये सिर्फ़ एक किस्म की बेवकूफ़ी होगी और क़ुरआन की इन सूरतो का इन्कार| लिहाज़ा हर किसी को चाहिए के अल्लाह ही से सारी तवक्को रखे और उसी से मदद मांगे और दीन के जो अरकान जिस वक्त पूरा करने का हुक्म दिया उसे उसी वक्त मे पूरा करे|
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