London English Musician Cat Stevens, Now is Yusuf Islam
March 25, 2016Saudi to depend less on oil, more on Hajj
March 25, 2016लंदन के पॉप स्टार केट स्टीवन्स, अब यूसुफ इस्लाम
“… मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि इस्लाम कबूल करने से पहले मैं किसी भी मुसलमान से नहीं मिला था । मैंने पहले कुरआन पढ़ा और जाना कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है जबकि इस्लाम हर मामले में पूर्णता लिए हुए है। …”
– (केट स्टीवन्स अब – यूसुफ इस्लाम: इंग्लैण्ड के माने हुए पॉप स्टार)
मैं आधुनिक रहन सहन , सुख-सुविधाओं और एशो आराम के साथ पला बढ़ा। मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ । हम जानते हैं कि हर बच्चा कुदरती रूप से एक खास फितरत और और स्वभाव के साथ पैदा होता लेकिन उसके माता- पिता उसको इधर उधर के धर्मों की तरफ मोड़ देते हैं।
ईसाई धर्म में मुझे पढ़ाया गया कि ईश्वर से सीधा ताल्लुक नहीं जोड़ा जा सकता। ईसा मसीह के जरिए ही उस ईश्वर से जुड़ा जा सकता है। यही सत्य है कि ईसा मसीह ईश्वर तक पहुंचन का दरवाजा है।
मैंने इस बात को थोड़ा बहुत स्वीकार किया, लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं था। जब मैं मसीह की मूर्तियां देखता तो सोचता यह तो पत्थर मात्र है। इनमें कोई प्राण नहीं। लेकिन जब मैं सुनता कि यही ईश्वर है तो मैं उलझन में फंस जाता और आगे कोई सवाल भी नहीं कर पाता।
मैं कमोबेश रूप में ईसाई विचारधारा को मानता था क्योंकि यह मेरे माता-पिताा का धर्म था जिसका सम्मान मुझे करना था।
मैं धीरे-धीरे ईसाई मत से दूर होता गया और संगीत के क्षेत्र में आ गया। मैंने म्यूजिक बनाना शुरू कर दिया। मेरी ख्वाहिश एक बड़ा स्टार बनने की थी। फिल्मों और मीडिया के इर्द-गिर्द जो दुनिया मैंने देखी उसे देख मुझे लगा कि मेरा ईश्वर तो यही सबकुछ है।
अब मेरा मकसद ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना था। मेरे एक अंकल थे जिनके पास काफी पैसा था और एक शानदार गाड़ी थी। उनको देखकर भी मुझे लगा कि ये सारे ऐशो आराम ही जिन्दगी का मकसद है। अपने आसपास के लोगों को देखकर मुझे महसूस होता कि यह दुनिया ही उनके लिए ईश्वर है।
फिर मैंने भी तय कर लिया कि मेरे जीवन का मकसद भी पैसा कमाना ही है ताकि मैं ऐशो आराम की जिंदगी जी सकु।
अब मेरे आदर्श पॉप स्टार्स बन गए थे। मैं म्यूजिक बनाने लगा लेकिन मेरे दिल के एक कोने में इन्सानी हमदर्दी का भाव छिपा था।
सोचता था कि मेरे पास बहुत पैसा हुआ तो मैं जरूरतमंदों की मदद करूंगा। धीरे-धीरे मैं पॉप स्टार के रूप में मशहूर होने लगा। अभी मैं किशोर अवस्था ही में था कि फोटो सहित मेरा नाम मीडिया में छाने लगा। मीडिया ने मुझे उम्र से ज्यादा शोहरत दी। मैं जिन्दगी को भरपूर तरीके से जीना चाहता था। ऐशो आराम की जिन्दगी के चलते मैं नशे का आदी हो गया।
शानदार कामयाबी और हाई-फाई रहन सहन का अभी लगभग एक साल ही गुजरा होगा कि मैं बहुत ज्यादा बीमार हो गया। मुझे टीबी हो गई और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
अस्पताल में बीमारी के दौरान मैं फिर से चिंतन करने लगा- मेरे साथ यह क्या हुआ? क्या मैं सिर्फ शरीर मात्र हूं? इन्द्रीय वासनाओं के वशीभूत होकर जिन्दगी गुजारना ही क्या मेरी जिन्दगी का मकसद है? मैं अब महसूस करता हूं कि मेरा यह चिंतन अल्लाह की दी हुई हिदायत और रहमत थी जो मेरी आंखें खोलना चाहती थीं।
अस्पताल में मैं खुद से सवाल करता –
मैं यहां क्यों आया हूं?
मैं बिस्तर पर क्यों पड़ा हूं?
मैं इनके जवाब तलाशने लगा।
इस समय पूर्वी देशों के रहस्यवाद में कई लोगों की दिलचस्पी थी। मैं भी रुचि लेने लगा। पहली चीज जिसको लेकर मैं जागरूक हुआ, वह थी मौत। मैंने और गौर फिक्र करना शुरू कर दिया और मैं शाकाहारी बन गया।
मैं सोचता, मैं शरीर मात्र नहीं हूं। यह सारा चिंतन मैंने अस्पताल में ही किया। तबियत ठीक होने के बाद की बात है। एक दिन जब मैं टहल रहा था तो अचानक बारिश शुरू हो गई और मैं भीग गया। मै भागकर छत के नीचे खड़ा हो गया।
उस वक्त मुझे एहसास हुआ मानो मेरा बदन मुझसे कह रहा है – मैं भीग रहा हूं।
मुझे लगा मानो मेरा बदन गधे की तरह है जो मुझे जहां उसकी इच्छा हो रही है उधर खींच रहा है।
मुझे महसूस हुआ जैसे यह विचार मेरे लिए ईश्वर का उपहार है, जिसने मुझे उसकी इच्छा का अनुसरण करने का एहसास कराया।
इस बीच मेरा पूर्वी धर्मों की तरफ झुकाव हुआ। यहां मुझे धर्मों की नई परिभाषा देखने को मिली। दरअसल मैं ईसाईयत से ऊब चुका था। मैंने फिर से म्यूजिक बनाना शुरू कर दिया लेकिन इस बार मेरे संगीत में गहरा आध्यात्मिक पुट था। इस संगीत में रूहानियत थी और साथ में ईश्वर, स्वर्ग और नरक का जिक्र भी।
मैंने “द वे टू फाइंड आउट गॉड” गीत भी लिखा। अब तो मैं संगीत की दुनिया में और ज्यादा मशहूर हो गया।
दरअसल उस वक्त मैं मुश्किल दौर में था, क्योंकि मुझे पैसा और नाम मिलता जा रहा था जबकि मैं उस वक्त सच्चे ईश्वरीय रास्ते की तलाश में जुटा था।
इस बीच मैं इस फैसले पर पहुंचा कि बौध्द धर्म उच्च और सच्चा धर्म है। लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि बोध्द धर्म से जुडऩे के लिए मैं दुनियावी ऐशो आराम छोडऩे के लिए तैयार न था। दुनिया को छोड़कर संन्यासी बनना मेरे लिए मुश्किल था।
इस बीच मैंने अंक विद्या, चिंग, टेरो कार्ड और ज्योतिष को खंगाालने की कोशिश की।
मैंने फिर से बाइबल का अध्ययन किया लेकिन मेरी सच जानने की प्यास नहीं बुझी। इस वक्त तक मैं इस्लाम के बारे में कुछ भी नहीं जानता था।
इस बीच एक अच्छी घटना घटी।
मेरा भाई जब यरुशलम की मस्जिद में गया तो वहां मुसलमानों का खुदा के प्रति भरोसा, इबादत का तरीका और सुकूनभरे माहौल को देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। वह जब यरुशलम से लौटा तो मेरे लिए कुरआन का एक अंगे्रजी अनुवाद लेकर आया। हालांकि मेरा भाई मुसलमान नहीं हुआ था, लेकिन उसे इस्लाम में कुछ खास होने का एहसास हुआ और उसे लगा कि इससे मुझे कुछ अच्छा हासिल होगा।
मैंने कुरआन पढऩा शुरू किया तो मुझे एक नई राह मिली।
ऐसी राह जिसमें मुझे मेरे सारे सवालों के जवाब मिल गए। मैं कौन हूं? मेरी जिन्दगी का मकसद क्या है? सच्चा मार्ग कौनसा है? मैं कहां से आया हूं और मुझे कहां जाना है? इन सारे सवालों के जवाब मैंने कुरआन में पाए। अब मुझे एहसास हो गया कि सच्चा धर्म तो इस्लाम है। यह ऐसा नहीं है जैसा पश्चिमी देशों में धर्म को लेकर अवधारणा है,जो सिर्फ बुढ़ापे के लिए माना जाता है। पश्चिमी देशों में धर्म को जीवन में लागू करने वाले व्यक्ति को धर्मांध माना जाता है। मैं पहले शरीर और आत्मा को लेकर गलतफहमी में था। अब मैंने महसूस किया कि शरीर और आत्मा एक -दूसरे से जुड़े हुए हैं।
ईश्वर की इबादत के लिए पहाड़ों पर जाकर साधना करने की जरूरत नहीं है। हम रब की रजा हासिल करके फरिश्तों से भी ऊंचा मुकाम हासिल कर सकते हैं। यह सब कुछ जानने के बाद अब मेरी इच्छा जल्दी मुसलमान बनने की थी।
मुझे महसूस हुआ कि हर एक चीज का जुड़ाव सर्वशक्तिमान ईश्वर से है और जो शख्स गाफिल है, वह ईश्वरीय राह नहीं पा सक ता। वही तो है सब चीजों का पैदा करने वाला। अब मुझमें घमण्ड कम होने लगा क्योंकि पहले मैं इस गलतफहमी में था कि मैं जो कुछ हूं अपनी मेहनत के बलबूते पर हूं। लेकिन अब मुझे एहसास हो गया था कि मैं खुद को बनाने वाला नहीं हूं और मेरी जिन्दगी का मकसद है कि मैं अपनी इच्छा सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामने समर्पित कर दूं। ईश्वर के प्रति मेरा भरोसा मजबूत होता गया।
मुझे लगा कि जिस तरह का मेरा यकीन है,उसके मुताबिक तो मैं मुस्लिम हूं। कुरआन पढ़कर मैंने जाना कि सभी पैगम्बर एक ही मैसेज और सच्चा मार्ग लेकर आए थे। फिर क्यों ईसाई और यहूदियों ने खुद को अलग-थलग कर लिया? मैं जान गया था कि यहूदी क्यों ईसा अलैहिस्सलाम को नहीं मानते और क्यों उन्होने उनके पैगाम को बदल डाला।
ईसाई भी खुदा के कलाम को गलत समझ बैठे और उन्होने ईसा को खुदा बना डाला।
यह कुरआन ही की खूबी है कि वह इंसान को गौर और फिक्र करने की दावत देता है और चाँद और सूरज को पूजने के बजाय सबको पैदा करने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर की इबादत के लिए उभारता है।
कुरआन लोगों से सूरज,चाँद और खुदा की बनाई हुई हर चीज पर सोच-विचार करने पर जोर देता है।
बहुत से अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के पार जाकर और विशालकाय अंतरिक्ष को देखकर अधिक आस्थावान हो गए क्योंकि उन्होने अल्लाह की यह खाास निशानियां देखीं।
फिर जब मैंने कुरआन में आगे नमाज,जकात और अल्लाह के रहमो करम के बारे में पढ़ा तो मैं समझ चुका था कि कुरआन में मेरे हर एक सवाल का जवाब है और यह ईश्वर की तरफ से मेरे लिए गाइडेंस है। हालांकि मैं अभी तक मुसलमान नहीं हुआ था। मैं कुरआन की आयतों का बारीकी से अध्ययन करने लगा।
कुरआन कहता है- ए ईमान वालो, अल्लाह से बगावत करने वालों को दोस्त मत बनाओ और ईमान वाले आपस में सब भाई हैं।
यह आयत पढ़कर मैंने सोचा कि मुझे अपने मुस्लिम भाइयों से मिलना चाहिए। अब मैंने यरूशलम का सफर करने का इरादा किया। यरूशलम पहुंचकर मैं वहां की एक मस्जिद में जाकर बैठ गया। एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा-तुम यहां क्यों बैठे हो, क्या तुम्हें कोई काम है? नाम पूछने पर जब मैंने अपना नाम स्टीवन्स बताया तो वह कुछ समझ नहीं पाया। फिर मैं नमाज में शामिल हुआ हालांकि मैं सही तरीके से नमाज नहीं पढ़ पाया।
मैं लंदन लौट आया।
मैं यहां सिस्टर नफीसा से मिला और उनको बताया कि मैं इस्लाम ग्रहण करना चाहता हूं। सिस्टर नफीसा ने मुझे न्यू रिजेंट मस्जिद जाने का मशविरा दिया।
यह १९७७ की बात है और कुरआन का अध्ययन करते मुझे डेढ साल हो गया था।
मैं मन बना चुका था कि अब मुझे अपनी और शैतान की ख्वाहिशें छोड़कर सच्ची राह अपना लेनी चाहिए। मैं जुमे की नमाज के बाद मस्जिद के इमाम के पास पहुंचा। हक को मंजूर कर लिया और इस्लाम का कलिमा पढ लिया।
अब मुझे लगा मैं खुदा से सीधा जुड़ गया हूं। ईसाई और अन्य धर्मावलम्बियों की तरह किसी जरिए से नहीं बल्कि सीधा।
जैसा कि एक हिन्दू महिला ने मुझसे कहा-
तुम हिन्दुओं के बारे में नहीं जानते, हम एक ईश्वर में आस्था रखते हैं। हम तो उस ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए मूर्तियों को माध्यम बनाते हैं। मुझे लगा क्या ईश्वर तक पहुंचने के लिए ऐसे साधनों की जरूरत है? लेकिन इस्लाम तो बन्दे और खुदा के बीच के ये सारे माध्यम और परदे हटा देता है।
मैं बताना चाहूंगा कि मेरा हर अमल अल्लाह की खुशी के लिए होता है। मैं दुआ करता हूं कि मेरे अनुभवों से सबक मिले।
मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि इस्लाम कबूल करने से पहले मैं किसी भी मुसलमान से नहीं मिला था। मैंने पहले कुरआन पढ़ा और जाना कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है जबकि इस्लाम हर मामले में पूर्णता लिए हुए है।
अगर हम पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) के बताए रास्ते पर चलेंगे तो कामयाब होंगे।
अल्लाह हमें पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के बताए रास्ते पर चलने की हिदायत दें।
आमीन
यूसुफ इस्लाम पूर्व नाम केट स्टीवन्स
पता: चेयरमैन, मुस्लिम ऐड, ३ फरलॉन्ग रोड, लंदन, एन-७,(यू. के.)
Source: UmmateNabi
Courtesy :
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Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)