Kyaa Hamko Maasumon par Raham Aayega ?
April 19, 2016Jo Musalman Ho Jaye, Allah Uska Sahara Ban Jata Hai – Aamina
April 19, 2016अरब ने पश्चिमी देशों पर इस्लाम की अच्छी छाप छोड़ी है – डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स
क्या आपने भी सुना था कि खाड़ी युद्ध के दौरान तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपना लिया था। यह सच है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बदलाव के पीछे कौन हैं?
जिन लोगों ने इस्लाम की यह दावत इन अमेरिकी सैनिकों तक पहुंचाई उनमें से एक अहम शख्सियत हैं डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स।
अबू अमीना फीलिप्स जमैका में जन्मे और पढ़ाई कनाड़ा में की ।
अबू अमीना पहले ईसाई थे लेकिन 1972 में इस्लाम अपनाकर वे मुस्लिम बन गए।
“पहले खाड़ी युद्ध के दौरान मैंने नौसेना के धार्मिक विभाग में सऊदी रेगिस्तान में काम किया। अमेरिकी सैनिक इस्लाम के बारे में बहुत सी गलतफहमियां रखते थे। अमेरिका में उन्हें आदेश दिए गए थे कि वे मस्जिदों के करीब ना जाएं। हम उन्हें मस्जिदों में ले गए। मस्जिदों के अंदर की सादगी और माहौल को देखकर वे बेहद प्रभावित हुए। दरअसल जब उन्होंने पहली बार सऊदिया की जमीन पर कदम रखा था तो उन्हें यह एक अजीब जगह लगी थी जहां महिलाएं काला हिजाब पहने नजर आती थीं। लेकिन सऊदी अरब में रहने पर उन सैनिकों को एक खास अनुभव हुआ और ये उनके लिए आंखें खोल देने वाला अनेपक्षित अनुभव था। अमेरिकी सैनिक वहां के लोगों की मेहमाननवाजी देखकर आश्चर्यचकित रह गए। लोग उनके लिए ताजा खजूर और दूध लाते थे और उनका बेहद सम्मान किया जाता था। अमेरिकी सैनिकों ने ऐसी मेहमाननवाजी और आत्मीय व्यवहार कोरिया और जापान में नहीं देखा था जहां उनका बरसों तक पड़ाव रहा था।”
“मैं वापस अमेरिका लौट आया और मैंने अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट में इस्लामिक चैप्टर्स की स्थापना की। मेरे सऊदी में रहने के दौरान तकरीबन तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपनाया। शायद आप मेरी इस बात पर भरोसा ना करें कि दुनिया में सिर्फ सऊदी अरब ही ऐसा देश है जहां अमेरिकी सैनिक अपने पीछे वार बेबीज(युद्ध के कारण अनाथ हुए बालक) नहीं छोड़ के आए। ये अमेरिकी सैनिक अपने तंबुओं में इस्लामिक सिद्धांतों और व्यवहार पर खुलकर चर्चा करते थे। ये मुस्लिम सैनिक अमेरिकी सेना में इस्लाम के दूत हैं। सऊदी अरब ने पश्चिमी देशों पर इस्लाम की अच्छी छाप छोड़ी है। मैंने देखा कि सऊदी अरब अपने नागरिकों की देखभाल अमेरिकी नागरिकों से बेहद अच्छे ढ़ंग से करता है। जहां बीस लाख अमेरिकी नागरिक आज भी गलियों और फुटपाथ पर सोते हैं, वहीं सऊदी अरब का एक भी नागरिक फुटपाथ पर नहीं सोता।”
– डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स
कैसे आयें इस्लाम की आगोश में
अबू अमीना पहले ईसाई थे। उनका जन्म 1947 में जमैका में हुआ। वे अच्छे पढ़े लिखे परिवार से हैं। इनके माता-पिता दोनों टीचर थे। उनके दादा जी के भाइयों में से एक चर्च के मिनिस्टर और बाइबिल के विद्वान थे। इनका परिवार खुले विचारों वाला था। वे हर सण्डे अपनी मां के साथ चर्च जाते थे। जब वे ग्यारह साल के थे तो इनका परिवार कनाड़ा पलायन कर गया। पहले इनका नाम इनाके था। जब वे बायो केमेस्ट्री से ग्रेजुएशन कर रहे थे, उसी दौरान वे साम्यवादी विचारधारा के लोगों के सम्पर्क में आए। साम्यवाद का आकषर्ण उन्हें चीन भी ले गया।
चीन से लौटकर वे कनाड़ा की साम्यवादी पार्टी में शामिल हो गए। साम्यवादी पार्टी में रहकर उन्होंने इसमें कई तरह की कमियां और दोष देखे। उन्हें उस पार्टी के नेताओं में अनुशासन की कमी नजर आती थी। उसका जवाब उन्हें यह मिलता था कि क्रांति के बाद सब ठीक हो जाएगा। पार्टी के फंड में से गबन का मामला भी उनके सामने आया। वे शहरी गुरिल्ला लड़ाई सीखने के लिए चीन जाना चाहते थे। लेकिन जो आदमी इनका इसके लिए चयन करने आया था वह नशेड़ी था। इन सब बातों ने अबू अमीना का साम्यवाद के प्रति मोह कम कर दिया।
अमीना बिलाल कैलीफोर्निया भी गए और वहां वे काले लोगों को इंसाफ दिलाने के मकसद से ब्लैक पेंथर्स गुट में शामिल हो गए। लेकिन उन्होंने वहां देखा कि उनमें से ज्यादातर लोग ड्रग्स लेते थे। सुरक्षा कमेटियों के नाम पर वे चंदा इकट करते थे और फिर उन पैसों को ड्रग्स और पार्टियों पर खर्च कर देते थे।
अबू अमीना ने अमेरिका में मैल्कल एक्स, अलीजा मुहम्मद और उनके बेटे वरीथ दीन मुहम्मद को इस्लाम की ओर बढ़ते देखा। उन्होंने मुस्लिम बने मैल्कल एक्स की जीवनी पढ़ी। उन्होंने एलीजा मुहम्मद का कुछ साहित्य पढ़ा, पर उसका उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि एलीजा मुहम्मद के साहित्य में गोरे लोगों से जातीय घृणा जबरदस्त थी और एलीजा मुहम्मद का नेशन ऑफ इस्लाम भी इस्लाम की विचारधारा के अनुरूप नहीं था।
उनका कहना है- मैं सब गोरे लोगों को शैतान के रूप में नहीं देखना चाहता था। अमीना फिलिप्स को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली किताब सैयद कुतुब की ‘इस्लाम: द मिस अंडरस्टूड रिलीजन’ थी। इस पुस्तक में इस्लाम समाजवाद, साम्यवाद, पूंजीवाद, अर्थव्यवस्था और आध्यात्मिक पहलुओं को अच्छे अंदाज में पेश किया गया था। उन्हें यकीन हो गया था कि इस्लाम पश्चिमी समाज के आर्थिक और सामाजिक जीवन में बेहतर भूमिका अदा कर सकता है। मौलाना अबुल आला मौदूदी की किताब ‘टुवार्ड्स अंडरस्टेडिंग इस्लाम’ ने उन्हें इस्लाम के बारे में विस्तृत नजरिया दिया।
बिलाल ने इटली जैसे साम्राज्यवादी देशों से मोरक्को,लीबिया जैसे अफीक्री देशों द्वारा इस्लामिक नजरिए के साथ युद्ध जीतने का भी अध्ययन किया। वे कहते हैं- “मुझो जानने को मिला कि इस्लाम थप्पड़ के लिए दूसरा गाल पेश करने की तालीम नहीं देता यानी इसमें जुल्म बर्दाश्त करते रहने की तालीम नहीं है।” इस तरह इस्लाम का अच्छी तरह अध्ययन के बाद मैं इस्लाम का हिमायती बन गया और फिर 1972 में सोच समझाकर मैंने इस्लाम धर्म अपना लिया।’
बिलाल ने मिस्र के शख्स से अरबी और इस्लामी शरीअत सीखी। बिलाल ने विभिन्न स्रोतों से इस्लाम की जानकारी हासिल की। अबू अमीना ने इस्लामिक यूनिवर्सिटी मदीना से ग्रेजुएशन किया। बिलाल ने 1985 में रियाद यूनिवर्सिटी से इस्लाम धर्म में एमए और 1994 में इस्लाम पर ही पीएचडी की। बाद में वे इंग्लिश मीडियम के बच्चों को इस्लाम पढ़ाने लगे। उन्होंने बच्चों के लिए पांच इस्लामिक पाठ्यपुस्तकें भी लिखीं। बिलाल ने साल 2000 में ऑनलाइन इस्लामिक यूनिवर्सिटी भी गठित की। यह यूनिवर्सिटी इस्लाम में बीए और अन्य छोटे कोर्सेज कराती हैं। दुनियाभर के 160 देशों के करीब 20000 से ज्यादा स्टूडेंट इस यूनिवर्सिटी में पंजीकृत हैं।
भारत दौरा
अपनी पीएचडी के दौरान बिलाल भारत भी आए। उन्होंने उत्तर भारत के मुसलमानों की दयनीय दशा देखी। उन्होंने देखा कि उत्तर भारतीय मुसलमान अंधविश्वास में लिप्त हैं। वे केरल भी गए। यहां उनको अच्छी उम्मीद दिखाई दी।
बिलाल का मानना है कि पश्चिमी देशों में इस्लाम के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वे गरमी के मौसम में अमेरिका और कनाड़ा में इस्लाम और अरबी पढ़ाते हैं। उनका मानना है कि गैर मुस्लिम देशों के मुसलमानों को चाहिए कि वे इस्लामी समुदाय में इस्लामिक स्कूल चलाएं वरना इस्लाम को जिंदगी में लागू करने वालों की तादाद दस फीसदी से भी कम रह जाएगी।
वे कहते हैं कि मुसलमान अपनी जिंदगी इस्लामिक उसूलों के मुताबिक गुजारें। अबू अमीना बिलाल की जिंदगी का मकसद है कि समाज में इंकलाब आ जाए लेकिन यह इंकलाब तभी आएगा जब हर शख्स अपने जीवन के आचरण को इस्लामिक मूल्यों के मुताबिक संवारेगा। और बिलाल ने अपनी कोशिश इसी के लिए लगा रखी है।
डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स विश्व प्रसिद्ध इस्लामी प्रवक्ता IRF के प्रेसिडेंट डॉ. ज़ाकिर नाईक के मित्र हैं। वह उनके पीस कांफ्रेंस में हमेशा रहते हैं।
अबू अमीना भारत के डॉ. ज़ाकिर नाईक के इस्लामिक चैनल पीसी टीवी से भी जुड़े हैं और यहां आप इनको इस्लाम पर बोलते हुए देख सकते हैं।
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स्रोत:
सऊदी गजट्स बायोग्राफी
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