Islaam Mein Mahilaaon ka Asthaan
January 18, 2016Won’t We Awaken Now ?
January 19, 2016ज़रूरतमंद की मदद
इस्लाम में ज़रूरतमन्द लोगों को यह अधिकार दिया गया है कि उनकी मदद की जाए।
क़ुरआन में यह हुक्म दिया गया है कि:
‘‘और मुसलमानों के मालों में मदद माँगने वाले और महरूम रह जाने वाले का हक़ है’’ (5:19)
पहली बात तो यह कि इस हुक्म में जो शब्द आये हैं वे सबके लिए हैं, उसमें मदद करने को किसी धर्म विशेष के साथ ख़ास नहीं किया गया है, और दूसरे यह कि यह हुक्म मक्के में दिया गया था, जहाँ मुस्लिम समाज का कोई बाक़ायदा अस्तित्व ही नहीं था।
इस आयत में सिर्फ़ मदद मांगने वाले ही का हक़ मुसलमान के माल में क़रार नहीं दिया गया। बल्कि यह हुक्म भी दिया गया है कि अगर तुम्हारे इल्म में यह बात आए कि फलां आदमी अपनी ज़िन्दगी की ज़रूरतों से महरूम रह गया है तो यह देखे बग़ैर कि वह मांगे या न मांगे, तुम्हारा काम यह है कि ख़ुद उस तक पहुंचो और उसकी मदद करो। इस ग़रज़ के लिए सिर्प़$ ख़ुशदिली से अल्लाह की राह में ख़र्च करने पर बस नहीं किया गया है, बल्कि ज़कात भी फ़र्ज़ कर दी गई है।
आमतौर पर मुसलमानों का वास्ता ग़ैर-मुस्लिम आबादी ही से होता था। इसलिए क़ुरआन की उक्त आयत का साफ़ मतलब यह है कि मुसलमान के माल पर हर मदद माँगने वाले और हर तंगदस्त और महरूम रह जाने वाले इन्सान का हक़ है। यह हरगिज़ नहीं देखा जाएगा कि वह अपनी क़ौम या अपने देश का है या किसी दूसरे क़ौम, देश या नस्ल से उसका संबंध है।
आप हैसियत और सामर्थ्य रखते हों और कोई ज़रूरतमंद आप से मदद माँगे, या आपको मालूम हो जाए कि वह ज़रूरतमंद है तो आप ज़रूर उसकी मदद करें। ख़ुदा ने आप पर उसका यह हक़ क़ायम कर दिया है।
और इसकी परिभाषा यह बयान की गई है कि ‘‘वह मुसलमानों के मालदारों से ली जाती है और उनके ग़रीबों पर ख़र्च की जाती है।’’ इसके साथ इस्लामी हुकूमत की भी यह ज़िम्मेदारी क़रार दी गई है कि जिसका कोई मददगार न हो उसकी मदद वह करे।
अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) का इरशाद है कि:
‘‘बादशाह उसका सरपरस्त है जिसका कोई सरपरस्त न हो।’’
यह सरपरस्त (वली) का शब्द अपने अन्दर बहुत माने रखता है। कोई यतीम, कोई बूढ़ा, कोई अपाहिज, कोई बेरोज़गार, कोई मरीज़ अगर इस हालत में हो कि दुनिया में उसका कोई सहारा न हो, तो हुकूमत को उसके लिए सहारा बनना चाहिए।
अगर कोई मय्यत ऐसी हो जिसका कोई वली, वारिस न हो तो उसका जनाज़ा उठाना और उसके कफ़न का इन्तिज़ाम करना हुकूमत के ज़िम्मे है। अर्थात् यह अस्ल में आम विरासत है, जिसकी ज़िम्मेदारी इस्लामी हुकूमत पर आयद होती है
Courtesy :
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