Qur’an Mein Striyon se Sambandhit Shikshayen (Part 5)

Prayer: a port in every storm
February 8, 2016
Good Friendships and Relations
February 9, 2016

Qur’an Mein Striyon se Sambandhit Shikshayen (Part 5)

कु़रआन में स्त्रियों से संबंधित शिक्षाएं

Quran part 5कु़रआन (2:187)

तुम्हारे लिए रोज़ों में रातों में अपनी स्त्रियों (पत्नियों) के पास जाना जायज़ (वैध) कर दिया गया। वे तुम्हारा लिबास हैं और तुम उनका लिबास……।

कु़रआन (2:223)

तुम्हारी स्त्रियां (पत्नियां) तुम्हारी खेती1 हैं। अतः जिस प्रकार चाहो अपनी खेती में जाओ और अपने लिए आगे भेजो (अर्थात् अपनी नस्ल को आगे बढ़ाओ) और अल्लाह की अप्रसन्नता से बचो, भली-भांति जान लो कि तुम्हें (मृत्यु पश्चात्) उससे मिलना है। और (ऐ नबी!) ईमान ले आने वालों को (सफलता की) शुभ सूचना दे दो।

(पति और पत्नी का रिश्ता किसान और खेती जैसा है। किसान अपनी खेती से अति प्रेम करता, बहुत लगाव रखता, उसकी रक्षा करता, उसे किसी के क़ब्ज़ा व अतिक्रमण आदि से बचाता है। उसमें झाड़-झंखाड़ नहीं उगने देता, उसमें खाद डालता, बीज डालता है, फसल उगाता, सींचता, लू और पाला आदि से बचाता, बरबाद या क्षतिग्रस्त होने से रक्षा करता है। उसके इस व्यवहार, निष्ठा और परिश्रम से उसकी खेती, उसके और मानवजाति के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। इसी लिए इस आयत में पति और पत्नी के बीच संबंध को किसान और खेती के बीच संबंध के रूप में बयान किया गया है।)

कु़रआन (2:222)

मासिक धर्म (Menstruation) के दिनों में स्त्रियों (अपनी पत्नियों) से अलग रहो और उनके पास न जाओ जब तक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएं। फिर जब वे अच्छी तरह पवित्र व स्वच्छ (पाक-साफ़) हो जाएं तो जिस तरह अल्लाह ने तुम्हें बताया है, उनके पास जाओ……।

कु़रआन (2:226,227)

जो लोग अपनी स्त्रियों (पत्नियों) से अलग रहने की क़सम खा बैठें, उनके लिए चार महीने की प्रतीक्षा है फिर यदि वे पलट जाएं तो अल्लाह अत्यंत क्षमाशील दयावान है। और यदि वे तलाक़ ही की ठान लें तो अल्लाह भी सुनने वाला, भली-भांति जानने वाला है।

कु़रआन (2:228-233, 236,137)

तलाक़ के बारे में और स्त्रियों से संबंधित आदेश।

कु़रआन (2:234)

और तुम में से जो लोग मर जाएं और अपने पीछे पत्नियां छोड़ जाएं, तो वे पत्नियां अपने आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) पूरी कर चुकें तो सामान्य नियम (मअरुफ़) के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें (यानी पुनर्विवाह करें, अथवा न करें), तुम पर इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।

कु़रआन (3:14)

मनुष्य को चाहत की चीज़ों से प्रेम शोभायमान प्रतीत होता है कि वे स्त्रियां, बेटे, सोने-चांदी के ढेर और निशान लगे (चुने हुए) घोड़े (यानी सवारी आदि के व्यक्तिगत साधन) हैं और चैपाए और खेती। यह सब सांसारिक जीवन की (अस्थाई, नश्वर) सामग्री है और अच्छा (व चिरस्थाई सामग्रियों वाला) ठिकाना तो अल्लाह के पास है (जो परलोक जीवन में सत्कर्मियों को मिलने वाला है)।

कु़रआन (4:4)

और (विवाह हो जाने पर) स्त्रियों (पत्नियों) को उनके मह्र (स्त्री-धन) ख़ुशी से अदा कर दो। हां अगर वे अपनी ख़ुशी से उसमें से तुम्हारे लिए छोड़ दें तो तुम उस (धन) को अच्छा और पाक (जायज़) समझ कर खा सकते हो।

कु़रआन (4:7)

पुरुषों का उस माल में से एक हिस्सा है जो मां-बाप और नातेदारों ने (मृत्यु-पश्चात्) छोड़ा हो और स्त्रियों का भी उस माल (व जायदाद) में एक हिस्सा है जो मां-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो। चाहे वह थोड़ा हो या ज़्यादा-यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है।

कु़रआन (4:11,12)

मां-बाप और नातेदारों के (मृत्योपरांत) छोड़े हुए माल-जायदाद में स्त्रियों के हिस्से (क़ानूनी हक़) का विवरण।

कु़रआन (4:19)

ऐ ईमान लाने वालो! तुम्हारे लिए जायज़ (वैध) नहीं है कि स्त्रियों के माल के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो, न यह वैध है कि उन्हें तंग करके उनके मह्र का, या जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उसका कुछ हिस्सा उड़ा लो। हां, अगर वे खुली बदचलनी व अशिष्ट कर्म कर बैठें तो (माल उड़ाने की नीतय से नहीं, बल्कि सज़ा के तौर पर) तुम्हें, तंग करने का हक़ है। और उनके साथ भले तरीके़ से रहो-बसो। अगर वे तुम्हें नापसन्द हों तो संभव है कि एक चीज़ तुम्हें नापसन्द हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे।

कु़रआन (4:20,21)

और अगर तुम एक पत्नी की जगह दूसरी पत्नी लाने का इरादा कर ही लो तो चाहे तुमने उस (पहली पत्नी को) ढेरों माल दिया हो, उसमें से कुछ भी वापस मत लेना। क्या तुम उस पर कोई झूठा आरोप लगाकर और स्पष्ट बुराई करके वह माल उससे वापस ले लोगे? आखि़र तुम उसे किस तरह ले सकते हो जबकि तुम एक-दूसरे से ‘मिल चुके’ हो और वे तुम से दृढ़ प्रतिज्ञा भी ले चुकी हैं।

कु़रआन (4:22)

और उन स्त्रियों से विवाह न करो जिनसे तुम्हारे बाप विवाह कर चुके हों (अर्थात् अपनी, विधवा सौतेली मां से)। मगर पहले जो हो चुका सो हो चुका (अर्थात् इस्लाम स्वीकार करने से पहले के अज्ञान काल में)1। बेशक यह एक अश्लील और बहुत ही नापसन्दीदा काम है।

(इसका मतलब यह नहीं है कि इस्लाम लाने से पहले ऐसे जो विवाह हुए थे उनके अंतर्गत पुरुष-स्त्री में पति-पत्नी का ताल्लुक़, इस्लाम में आ जाने के बाद भी बाक़ी और जारी रहेगा। बल्कि इसका मतलब यह है कि इस्लामी शरीअत के अनुसार इस तरह के विवाह से जो औलाद पैदा हुई, यह हुक्म आ जाने के बाद वह ‘हरामी’ नहीं मानी जाएगी और न अपने बाप व मां के माल-जायदाद में से ऐसी संतान का विरासत का अधिकार ख़त्म होगा।)

कु़रआन (4:23)

विवाह करने के लिए ये स्त्रियों तुम पर अवैध (हराम) हैं: माएं, बेटियां, बहनें, फूफियां, मौसियां, भतीजियां, भांजियां, वे स्त्रियां जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो (रज़ाई माएं), (सगी/सौतेली न भी हो तो) दूध-शरीक बहनें, तुम्हारी पत्नियों की बेटियां जो (उनके पूर्व-पतियों से हों और) तुम्हारी गोद में पली हों।, तुम्हारी उन (तलाक़शुदा) स्त्रियों (पत्नियों) की, जिनसे तुम संभोग कर चुके हो (दूसरे पति से होने वाली) बेटियां, और यदि सिर्फ़ निकाह ही हुआ, संभोग से पहले ही तलाक़ हो गई तो उनकी बेटियों से विवाह करने में कोई गुनाह नहीं। और उन बेटों की (तलाक़शुदा या विधवा) पत्नियां जो बेटे तुम से पैदा हुए हों, और दो बहनों को एक साथ पत्नी बनाना; हां (इस्लाम लाने से पहले) जो हो चुका सो हो चुका। (यदि किसी ने इस्लाम लाने से पहले दो बहनों को एक साथ पत्नी बना रखा हो, इस्लाम में आने के बाद किसी एक को अवश्यतः छोड़ना होगा)। यक़ीनन अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, दयावान है।

कु़रआन (4:24)

और किसी पुरुष के विवाह में रह रही स्त्रियां भी वर्जित हैं…।

कु़रआन (4:32)

और उस चीज़ की दुष्कामना (ईर्श्या) न करो, जिसे अल्लाह ने तुममें से किसी को किसी से ज़्यादा दिया है। पुरुषों ने जो कुछ हासिल किया है उसके अनुसार उनका हिस्सा है और स्त्रियों ने जो कुछ हासिल किया है उसके अनुसार उनका हिस्सा है (अर्थात् इस बारे में पुरुष-अधिकार और नारी-अधिकार बराबर हैं)। अल्लाह से उसकी अनुकम्पा और उदार दान चाहो (न कि दूसरों से ईर्श्या करो), निस्संदेह अल्लाह हर चीज़ का ज्ञान रखता है (कि किसे कितनी और कैसी जीवनयापन सामग्री दी जानी उचित है)।

कु़रआन (4:15)

और तुम्हारी स्त्रियों में से जो व्यभिचार कर बैठे उस पर अपने (समाज) में से चार आदमियों की गवाही लो। यदि वे गवाही दे दें तो उन्हें घरों में बन्द कर दो यहां तक कि उन्हें मौत आ जाए1 या अल्लाह उनके लिए कोई दूसरा रास्ता निकाल दे।

(यह व्यभिचार से संबंधित आरंभिक आदेश था, बाद में सूरः ‘नूर’ की वह आयत अवतरित हुई जिसमें पुरुष और स्त्री दोनों के लिए एक ही आदेश दिया गया कि उन्हें सौ-सौ कोड़े लगाए जाएं (24: ) साथ ही इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल॰, (इस्लामी शरीअत अर्थात् विधान के प्रथम स्रोत ‘कु़रआन’ के बाद जिनका आदर्श और हुक्म, शरीअत का ‘द्वितीय’ स्रोत है) ने क़ानून दिया कि यदि व्यभिचार में लिप्त पुरुष व स्त्री में से कोई एक या दोनों, विवाहित/विवाहिता हों तो उसे/उन्हें पत्थर मार-मारकर हलाक (‘रज्म’) कर दिया जाए और यह जनसामान्य के सामने हो ताकि ऐसी कठोर सज़ा दूसरों के लिए व्यभिचार में अवरोधक (Deterrent) बने, समाज इस महापाप (गुनाहे कबीरा) और जघन्य अपराध से स्वच्छ व पवित्र रहे।)

कु़रआन (4:127)

और (ऐ नबी!) लोग तुम से स्त्रियों के बारे में पूछते हैं। कहो: अल्लाह उनके बारे में आदेश देता है कि जो आयतें तुम्हें इस किताब (कु़रआन) में पढ़कर सुनाई जाती है वे उन अनाथ लड़कियों के विषय में भी है जिनके हक़ तुम अदा नहीं करते और जिनका विवाह तुम नहीं करते (या लालच के कारण तुम स्वयं उनसे विवाह कर लेना चाहते हो)…।

कु़रआन (4:128)

और जिस स्त्री को अपने पति की ओर से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का ख़तरा हो तो इसमें कोई हरज नहीं कि पति-पत्नी (अधिकारों की कुछ कमी-बेशी पर) आपस में सुलह करके मेल-मिलाप से रहने की कोई राह निकाल लें। (अधिकारों के बलात् हनन या बिल्कुल ही संबंध-विच्छेद कर लेने की तुलना में) सुलह और मेल-मिलाप अच्छी चीज़ है। मन तो लोभ और तंगदिली के लिए उद्यत रहता है लेकिन अगर तुम लोग सद्व्यवहार से पेश आओ और (ग़लतअमल से) बचो तो अल्लाह निश्चय ही तुम्हारे इस अमल से बाख़बर होगा।

कु़रआन (4:129)

(एक से अधिक) पत्नियों के बीच पूर्ण रूप से न्याय करना तुम्हारे सामर्थ्य में नहीं है, चाहे तुम कितना ही चाहो1। अतः ईश्वरीय नियम का मंशा पूरा करने के लिए इतना तो अवश्य ही करो कि) एक ही पत्नी की ओर इतना अधिक न झुक जाओ कि दूसरी को अधर लटकता छोड़ दो जैसे उसका पति खो गया हो। अगर तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और (ग़लत व्यवहार करने से) बचते रहो तो बेशक अल्लाह भी बड़ा क्षमाशील दयावान है।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षा, स्वयं आप (सल्ल॰) के आदर्श और मानव-प्रवृति तथा मनुष्य के स्वभाव की प्राकृतिक कमज़ोरियों के अनुसार चूंकि यह बात सामान्यतः असंभव-सी है कि ‘प्रेम-भाव’ में भी सभी पत्नियों में बिल्कुल (नाप-तौलकर बराबरी (यानी न्याय) स्थापित की जा सके। कु़रआन में यहां यही बात कही गई है। हां, यह बात बिल्कुल संभव है कि भौतिक रूप से पदार्थों, चीज़ों आदि के देने और समस्त जीवन-सामग्री (खाना, रिहाइश, लिबास, आभूषण आदि) देने में तथा दाम्पत्य संबंधों के लिए समय देने में सभी पत्नियों के बीच पूरी बराबरी की जाए, पूरा न्याय किया जाए। पैग़म्बर (सल्ल॰) का आचरण ठीक ऐसा ही था और इस्लाम के अनुयायियों के लिए भी, यही शिक्षा भी है और आदेश तथा क़ानून भी।)

कु़रआन (4:176)

लोग तुम से आदेश मालूम करना चाहते हैं। कह दो: ‘‘अल्लाह तुम्हें ऐसे व्यक्ति के बारे में, (मृत्योपरांत) जिसका कोई वारिस (Inheritor) न हो (जैसे पत्नी, औलाद, माता-पिता), आदेश देता है कि यदि उसकी एक बहन हो तो जो कुछ उसने (धन-संपत्ति) छोड़ा है उसका आधा हिस्सा उस बहन का होगा। और यदि बहन की कोई संतान (और पति जीवित) न हो तो भाई उसका वारिस होगा। और यदि वारिस दो बहनें हों तो जो कुछ उस (भाई) ने छोड़ा है उसमें से दोनों बहनों का (मिलाकर) दो-तिहाई हिस्सा होगा। और यदि कई भाई-बहन (वारिस) हों तो एक पुरुष का हिस्सा दो स्त्रियों को बराबर होगा (विरासत के बंटवारे में पुरुष का हिस्सा स्त्री से दुगुना रखने में इस्लामी शरीअत की हिकमत (तत्वदर्शिता) यह है कि स्त्री पर स्वयं अपने और परिवार के अन्य सदस्यों के भरण-पोषण, जीवन-यापन आदि का आर्थिक बोझ नहीं डाला गया है। इसका पूरा बोझ पुरुष पर डाला गया है।)। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों को स्पष्ट करता है ताकि तुम भटको और उलझो न और अल्लाह को हर चीज़ (के औचित्य) का पूरा ज्ञान है।

कु़रआन (24:31)

(ऐ नबी!) ईमान वाले पुरुषों से कह दो कि वे अपनी निगाहें बचाकर रखें (पराई औरतों को देखने से) और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यही उनके लिए अच्छा है…(24:30)। और ईमान वाली औरतों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें (पराए मर्दों को देखने से) बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की, (दुरुपयोग से) रक्षा करें। और अपने शृंगार (शरीर अंग) प्रकट न करें सिवाय उसके जो (छिपाने के पूरे साधन व प्रयत्न के बाद भी) ज़ाहिर हो जाए। और अपने वक्षस्थल (सीनों) पर अपनी ओढ़नियां, चादरें डाले रहें। और अपना शृंगार किसी पुरुष पर ज़ाहिर न होने दें सिवाय अपने पतियों, अपने बापों या अपने पतियों के बापों या अपने बेटों या अपने पतियों के (दूसरी पत्नियों से पैदा) बेटों, या अपने भाइयों या अपने भतीजों या अपने भांजों या अपने मेल-जोल की औरतों या अपने अधीनस्थ पुरुषों (जैसे दास आदि) के या अपने उन अधीनस्थ पुरुषों (नौकर आदि) के जो उस उम्र को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत पड़ती है या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों को जानते ही न हो। और स्त्रियां अपने पांव धरती पर मारकर (इठला कर) न चले जिससे उनका गुप्त शृंगार (शारीरिक अंग और आभूषण) ज़ाहिर हो जाए। ऐ ईमान वालो, तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो ताकि तुम्हें (इहलोकीय व परलोकीय जीवन में) सफलता प्राप्त हो।

कु़रआन (26:60)

जो स्त्रियां जवानी की उम्र से गुज़र चुकी हों, जिन्हें विवाह की उम्मीद न रह गई हो (अर्थात ‘बूढ़ी’ औरतें) अगर अपनी चादरें उतार दें (यानी परदा के भरपूर इस्लामी लिबास आदि की सख़्त पाबन्दी, जो जवान औरतों पर अनिवार्य है, न करें) तो उन पर कोई गुनाह नहीं, बशर्ते कि वे अपने शरीर-शृंगार का प्रदर्शन न करें फिर भी अगर वे इससे बचें और हयादारी बरतें तो उनके लिए ज़्यादा अच्छा यही है। और अल्लाह पूरी तरह जानने वाला है (अर्थात् वह अमल और इरादा व नीयत, सब कुछ को जानता है)।

कु़रआन (33:30)

ऐ नबी की स्त्रियो (पत्नियो)! तुम में से जो कोई प्रत्यक्ष अश्लील कर्म करे1 उसे दोहरी यातना दी जाएगी, अल्लाह के लिए यह बहुत आसान है।

(इसका तात्पर्य यह नहीं है कि नबी (सल्ल॰) की पत्नियों से किसी अश्लील कर्म की आशंका थी बल्कि यह एहसास दिलाना अभीष्ट था कि पूरे मुस्लिम समाज और भविष्य के समस्त मुस्लिम समुदाय में तुम्हारा स्थान अत्यंत महान, अनुकरणीय और प्रतिष्ठित है इसलिए अपने इस विशेष पद से गिरा हुआ कोई आचरण, तुम्हारा न होना चाहिए। तुम्हारा यह पद वर्तमान और भविष्य की सारी मुस्लिम स्त्रियों के लिए ‘आदर्श’ स्वरूप है। इस आदर्श के गौरव व महत्ता को बरक़रार रखना)

कु़रआन (33:32)

ऐ नबी की स्त्रियो (पत्नियो)! तुम साधारण स्त्रियों की तरह नहीं हो। अगर तुम अल्लाह का डर रखती हो तो (अवसर व आवश्यकता आने पर किसी पराये व्यक्ति से बात करनी पड़ जाए, उस स्थिति में) दबी ज़बान (अर्थात् लोचदार शैली) में बात न करना, कि अगर किसी व्यक्ति के दिल में कुछ ख़राबी हो तो वह लोभ (और ग़लतफ़हमी) में पड़ जाए, बल्कि सामान्य शैली में बात करना।

कु़रआन (33:33)

(ऐ नबी की पत्नियो!) अपने घरों में टिकी हो और (बाहर निकल-निकलकर) विगत अज्ञानकाल (जाहिलियत) की (औरतों जैसी) सजधज न दिखती फिरना।……अल्लाह तो बस यही चाहता है कि ऐ नबी की घरवालियो, तुम से गंदगी को दूर रखे और तुम्हें (नैतिक स्तर पर) बिल्कुल ही पाक-साफ़ रखे।

कु़रआन (33:35)

मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्रियां, ईमान लाने वाले पुरुष और ईमान लाने वाली स्त्रियां, सत्यवादी पुरुष और सत्यवादी स्त्रियां, धैर्यवान पुरुष और धैर्यवान स्त्रियां, विनम्रता अपनाने वाले पुरुष और विनम्रता अपनाने वाली स्त्रियां, सदक़ा (दान) देने वाले पुरुष और सदक़ा देने वाली स्त्रियां, रोज़ा (व्रत) रखने वाले पुरुष और रोज़ेदार स्त्रियां, अपने यौनांगों (गुप्तांगों) की रक्षा (अर्थात् ग़लत उपयोग न) करने वाले पुरुष और अपने गुप्तांगों (शील) की रक्षा करने वाली स्त्रियां, और अल्लाह को ख़ूब याद रखने, याद करने वाले पुरुष और याद करने, याद रखने वाली स्त्रियां–इनके लिए अल्लाह ने क्षमा और बड़ा प्रतिदान तैयार कर रखा है।

कु़रआन (33:49)

ऐ ईमान लाने वालो, जब तुम ईमान वाली स्त्रियों से विवाह करो और (किसी उचित कारणवश) उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो तुम्हारी ओर से उन पर कोई इद्दत नहीं जिसकी तुम गिनती करो। अतः उन्हें कुछ माल या सामग्री आदि दे दो और भली रीति से विदा कर दो।

कु़रआन (33:59)

(ऐ नबी!) अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और ईमान वाली स्त्रियों से कह दो कि अपने (चेहरों के) ऊपर अपनी चादरों का कुछ हिस्सा लटका लिया करें (जैसे घूंघट)। इससे इस बात की अधिक संभावना है कि वे पहचान ली जाएं और सताई न जाएं।1 अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दयावान है।

(अर्थात् जब वे घर से बाहर निकलें तो उनकी पहचान (Identitification) सुशील, शरीफ़ और शीलवान आरतों की हो और ग़लत कि़स्म के सामाजिक तत्वों की घूरती नज़रों, दुर्भावनाग्रस्त निगाहों, ग़लत व गन्दे इरादों, छेड़छाड़, शारीरिक छेड़खानी तथा अन्य प्रकार के यौन-अतिक्रमणों आदि से सुरक्षित रहें (सताई न जाएं), क्योंकि ‘खुला चेहरा’ ही सामान्यतया, तथा अधिकतर, हर प्रकार के सताए जाने का ‘आरंभ-बिन्दु’ होता है।)

कु़रआन (33:58)

और जो लोग ईमान वाले पुरुषों और ईमान वाली स्त्रियों को बिना इसके कि उन्होंने कुछ (बुरा, अश्लील, अनैतिक काम) किया हो (आरोप लगाकर) दुख पहुंचाएं उन्होंने ने तो बड़े मिथ्यारोपण और प्रत्यक्ष पाप का बोझ अपने ऊपर लाद लिया।

कु़रआन (49:1)

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, न पुरुष दूसरे पुरुषों की हंसी उड़ाएं, न स्त्रियां, स्त्रियों की हंसी उड़ाएं, संभव है वे उनसे अच्छी हों। और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो। ईमान लाने के बाद अवज्ञाकारी का नाम जुड़ जाना बहुत ही बुरा है। और जो व्यक्ति बाज़ न आए तो ऐसे ही व्यक्ति ज़ालिम हैं।

कु़रआन (65:1)

ऐ नबी! जब तुम (अर्थात् मुस्लिम लोग) अपनी स्त्रियों (बीवियों) को तलाक़ दे तो उन्हें तलाक़ उनकी इद्दत के हिसाब से दो। और इद्दत की गिनती करो (इद्दत=तलाक़ दिए जाने के दिन से 4 महीने दस दिन की अवधि) और अल्लाह तुम्हारे रब की नाफ़रमानी से बचो। उन्हें उनके घर से निकालो मत और न वे स्वयं निकलें। सिवाय इसके कि वे कोई स्पष्ट बुराई कर गुज़रें। यह अल्लाह की नियत की हुई सीमाएं हैं। और जो व्यक्ति अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो उसने स्वयं अपने आप पर जु़ल्म किया–तुम नहीं जानते, शायद इस (तलाक़) के बाद अल्लाह कोई दूसरी स्थिति बना दे (अर्थात् मेल-मिलाप की कोई और सूरत पैदा कर दे।

कु़रआन (65:2)

फिर जब वे (तलाक़शुदा स्त्रियां) नियत अवधि (इद्दत) को पहुंच जाएं तो या तो उन्हें भली रीति से (अपने वैवाहिक संबंध में) रोक रखो या भली रीति से अलग-अलग हो जाओ (यानी संबंध-विच्छेद कर लो)। और अपने में से दो न्यायप्रिय आदमियों का इस पर गवाह बना लो, और अल्लाह की ख़ातिर गवाही को दुरुस्त रखो…।

कु़रआन (65:4)

और तुम्हारी स्त्रियों में से जो मासिक धर्म से निराश हो चुकी हों इसलिए यदि उनकी इद्दत के बारे में कोई भ्रम है तो उनकी इद्दत तीन मास है और इसी प्रकार उन (स्त्रियों) की भी जो अभी रजस्वला (मासिक धर्म वाली) नहीं हुई हैं। और जो स्त्रियां (तलाक़ के समय) गर्भवती हों उनकी इद्दत शिशु-प्रसव तक है…।

कु़रआन (65:6)

अपनी हैसियत के अनुसार, जहां तुम रहते हो उन्हें भी (यानी तलाक़शुदा पत्नियों को, इद्दत की अवधि में) उसी जगह रखो। और उन्हें तंग करने के लिए उन्हें हानि न पहुंचाओ। और यदि वे गर्भवती हों तो उन (की सारी ज़रूरतों) पर ख़र्च करते रहो जब तक उनका शिशु-प्रसव न हो जाए। फिर यदि वे तुम्हारे लिए (शिशु को) दूध पिलाएं तो तुम उन्हें इसका मुआवज़ा दो और आपस में भली रीति से बातचीत द्वारा कोई बात तय कर लो। और यदि तुम दोनों में कोई कठिनाई हो तो फिर कोई दूसरी स्त्री उसके लिए दूध पिला दे।

कु़रआन (4:34)

पुरुष (अर्थात् पति) स्त्रियों (अर्थात् पत्नियों) के संरक्षक व निगरां हैं क्योंकि अल्लाह ने उनमें किसी को (किसी मुआमले में) किसी से (कुछ मुआमलों में) आगे रखा है। और इसलिए भी कि पतियों ने अपने माल ख़र्च किए हैं (विवाह के समय पत्नियों पर, स्त्री-धन के रूप में भी, और सामान्य दाम्पत्य जीवन में, पत्नियों की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति का कर्तव्य-भार उठा कर भी), तो नेक पत्नियां तो (पतियों) का आज्ञापालन करने वाली होती हैं और पुरुषों के पीछे अल्लाह की हिफ़ाज़त व निगरानी में उनके अधिकारों (और मान-मर्यादा) की हिफ़ाज़त करती हैं। और जो स्त्रियां (पत्नियां) ऐसी हों जिनकी सरकशी व उद्दंडता का तुम्हें अन्देशा हो (और जो ऐसा करें, तो परिवार-हित में उनके सुधार के लिए आवश्यकतानुसार) उन्हें समझाओ, उन्हें अपने बिस्तरों से अलग कर दो (अर्थात् यौन-संबंधित रोक दो) और (अति आवश्यक हो तो) उन्हें मारो भी। फिर वे अगर सुधर जाएं तो उन पर ज़्यादती करने के लिए बहाने न तलाश करो। यक़ीन रखो, (तुम्हारे पूरे व्यवहार व आचरण की निगरानी करने वाला) अल्लाह बहुत उच्च, बहुत महान है।

कु़रआन (4:35)

और यदि तुम्हें पति व पत्नी के बीच बिगाड़ की आशंका हो तो पुरुष (पति) के लोगों में से एक फ़ैसला करने वाला, और एक फ़ैसला करने वाला, स्त्री (पत्नी) के लोगों में से नियुक्त करो। यदि वे दोनों (पति-पत्नी भी, और दोनों के वे दोनों नियुक्त प्रतिनिधि भी) सुधार करना चाहेंगे तो अल्लाह उनके बीच अनुकूलता (Harmony) पैदा कर देगा। निस्सन्देह अल्लाह सब कुछ जानने वाला (हर वर्तमान व भविष्य की बातों की) ख़बर रखने वाला है।


Courtesy :
www.ieroworld.net
www.taqwaislamicschool.com
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization ( IERO )

Leave a Reply