Mujhe Har Masle Ka Samadhan Islam Mein Nazar Aaya – Victoria Arington

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Mujhe Har Masle Ka Samadhan Islam Mein Nazar Aaya – Victoria Arington

मुझे हर एक मसले का समाधान इस्लाम में नजर आया – विक्टोरिया एरिंगटोन

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सिस्टर विक्टोरिया (अब आयशा) की इस्लाम अपनाने की दास्तां बड़ी दिलचस्प है। उनका पहली बार मुसलमान और इस्लाम से सामना 2002 में तब हुआ जब उन्होंने सेना की नौकरी जॉइन की और सऊदी अरब के सैनिकों के सम्पर्क में आई। और फिर उन्होंने साल 2011 में इस्लाम अपना लिया । अपनी जिंदगी में घटित एक दुखद घटना और कुरआन और हदीस (पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. की शिक्षाओं) का अध्ययन के बाद उन्हें अपनी जिंदगी का मकसद इस्लाम में ही नजर आया।

पेश है उनकी दास्तान, उन्ही की ज़ुबानी :

अस्सलामु अलैकुम व रहमत उल्लाही व बरकातुह,

मेरा नाम विक्टोरिया एरिंगटोन (अब आयशा) है। मैं जॉर्जिया में पैदा हुई और गैर धार्मिक ईसाइ परिवार में पली बढ़ी। मैंने गैर धार्मिक इसलिए कहा है क्योंकि हम अक्सर चर्च नहीं जाते थे और मेरे माता-पिता शराबी और स्मोकर थे।

मेरे माता-पिता के बीच उस वक्त तलाक हो गया था जब मैं युवा थी। तलाक के बाद मेरी मां ने चार बार विवाह किया। मेरे पिता अक्सर काम के सिलसिले में सफर पर ही रहते थे और वे घर पर कम ही रुकते थे। इन हालात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरी पारिवारिक जिंदगी सामान्य नहीं रही।

ईसाइयत से जुड़े कई सवाल अक्सर मेरे दिमाग में घूमते रहते थे। जैसा कि ईसाइ मानते हैं कि ईसा मसीह पूरे इंसानों के गुनाहों की खातिर सूली पर चढ़े हैं। मैं सवाल उठाती थी अगर हमें ईसा मसीह के सूली पर चढऩे की वजह से पहले ही अपने गुनाहों की माफी मिल गई है तो फिर हमें नेक काम करने की आखिर जरूरत क्यों है ?

मनाही के बावजूद आखिर हम सुअर का गोश्त क्यों खाते हैं ?

आखिर एक ही वक्त में ईश्वर, ईश्वर और ईसा कैसे हो सकता है ? यानी एक ईश्वर दो रूपों में वह भी एक ही वक्त में।

ऐसे कई सवाल अक्सर मेरे जहन में उठते थे। मैं इन सवालों का जवाब चाहती थी लेकिन न परिवारवालों के पास और न ही पादरियों के पास मेरे इन सवालों का जवाब था। मेरे यह सवाल अनुत्तरित ही रहे।

साल 2002 में मैंने सेना की नौकरी जॉइन की और ट्रेनिंग के दौरान मैं कई मुस्लिम सऊदी अरब के सैनिकों के सम्पर्क में आई। यह इस्लाम से मेरा पहला परिचय था। हालांकि उस वक्त धर्म को लेकर मैं संजीदा नहीं थी।

दरअसल मेरी जिंदगी में एक अहम मोड़ 2010 में आया, जब मुझे एक गंभीर पारिवारिक संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि मेरे ईसाइ पति ने मुझे तलाक दे दिया था। इसी बीच मेरी मुलाकात एक शख्स से हुई जो मुस्लिम था। मैंने उस मुुस्लिम शख्स की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं और गतिविधियों पर गौर किया। उससे इस्लाम से जुड़े कई सवाल पर सवाल किए।

उस मुस्लिम शख्स ने मुझ पर कभी भी इस्लाम नहीं थोपा बल्कि मुझसे कहा कि आप फलां-फलां किताबें पढें। उसने मुझे इस्लाम पर कई किताबें और कुरआन दी।

मैंने पूरा कुरआन पढ़ डाला और बहुत कुछ बुखारी (इसमें मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षाएं संकलित हैं।) भी।

इस्लाम पर और भी अनगिनत किताबें मैने पढ़ डाली। मैंने अपने हर एक सवाल का जवाब इस्लाम में पाया। मैंने इस्लाम में जिंदगी से जुड़े हर पहलू पर रोशनी पाई। मुझे हर एक मसले का समाधान इस्लाम में नजर आया।

अब मैं जान चुकी थी कि यही एकमात्र रास्ता है जो मुझे सिखाता है कि मुझे अपनी जिंदगी किस तरह गुजारनी चाहिए।

मुझे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे। मैं एक गाइड बुक चाहती थी जिसके मुताबिक मैं अपनी जिंदगी गुजार सकूं, और आखिर इसी के चलते मैनें दिसम्बर 2011 में इस्लाम अपना लिया।

अल्हम्दुलिल्लाह


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