रमज़ान में इशा की नमाज़ को विलंब करना !

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हमारी मस्जिद का इमाम रमज़ान के महीने में इशा की नमाज़ को लगभग एक घण्टा विलंब कर देता है। क्या ऐसा करना जायज़ है?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

इशा की नमाज़ का समय सूर्यास्त के बाद आसमान में उदय होने वाले लाल शफक़ के गायब होने से लेकर आधी रात तक रहता है।

इशा की नमाज़ के बारे में सर्वश्रेष्ठ यह है कि उसे विलंब किया जाए जबकि वह लोगों पर कठिन और कष्टदायक न हो। क्योंकि अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

”यदि मुझे अपनी उम्मत के कष्ट में पड़ने का डर न होता तो मैं उन्हें आदेश देता कि वे इशा की नमाज़ को तिहाई रात, या आधी रात तक विलंब करें।’’

इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 167) ने रिवायत किया है।

इस हदीस से इशा की नमाज़ को विलंब करने के मुसतहब होने का पता चलता है बशर्तें कि वह मुसलमानों पर कष्ट का कारण न हो। यदि वह उनके लिए कष्टदायक है तो उसे पढ़ने में जल्दी की जायेगी।

आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा :

एक रात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इशा की नमाज़ में इतना विलंब कर दिया कि रात का सामान्य भाग बीत गया यहाँ तक कि मस्जिद वाले सो गए, फिर आप बाहर निकले तो नमाज़ पढ़ाई, फिर फरमाया :

“यही उसका समय है यदि मुझे अपनी उम्मत पर कष्ट का डर न होता।”

इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 638) ने उल्लेख किया है।

जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ के समय का वर्णन करते हुए फरमाया :

”कभी कभी आप इशा की नमाज़ को विलंब कर देते थे और कभी जल्दी पढ़ते थे, जब आप उन्हें एकत्रित देखते तो जल्दी करते, और जब उन्हें देखते कि आने में देर कर रहें है तो उसे विलंब से पढ़ते थे।”

इसे बुखारी (1/141) और मुस्लिम (हदीस संख्या:  646) ने रिवायत किया है।

देखिए : मारिफतो औक़ातिल इबादात, लेखक: डाक्टर खादिल अल-मुशैक़िह 1/291.

कुछ देशों में लोगों की रमज़ान के महीने में इशा की नमाज़ को उसके प्राथमिक समय से आधा घण्टा या उसके लगभग विलंब करने की आदत बनी हुई है, ताकि लोग आराम से इफतारी कर सकें और इशा व तरावीह की नमाज़ के लिए तैयारी कर सकें।

ऐसा करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, इस शर्त के साथ कि इमाम नमाज़ को इस हद तक विलंब न करे कि मुसलमानों पर कष्ट का कारण बन जाए, जैसा कि उल्लेख किया जा चुका।

इस विषय में बेहतर यह है कि मस्जिद वालों से परामर्श किया जाए और उनके साथ नमाज़ के समय पर सहमति बना लिया जाए, क्योंकि वे इस बात को सबसे अधिक जानते हैं कि उनके लिए उचित समय क्या है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।


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