“एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या अपने लोगों से मुहब्बत करना पक्षपात है ? पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘नहीं, यह पक्षपात नहीं है। पक्षपात और सांप्रदायिकता तो यह है कि आदमी अपने लोगों के अन्यायपूर्ण कामों में उनकी मदद करे।“
(मिशकात)
‘‘जो कोई ग़लत और अनुचित कामों में अपने क़बीले (कुटुम्ब, परिवार और वंश) का साथ देता है, उसकी मिसाल उस ऊँट की–सी है जो कुँए में गिर पड़े फिर उसे उसकी दुम पकड़ कर खींचा जाए।“
(अबू–दाऊद)
‘‘पक्षपात यह है कि तुम अन्याय के मामले में अपनी क़ौम की मदद करो।”
(अबू–दाऊद)
‘‘तुम्हारी जाहिलियत का घमण्ड और अपने बाप–दादा पर गर्व करने का तरीक़ा अल्लाह ने मिटा दिया है। आदमी या तो अल्लाह से डरनेवाला मुत्तक़ी (परहेज़गार) होता है या अभागा नाफ़रमान। तमाम इनसान अल्लाह का कुटुम्ब हैं और आदम मिट्टी से पैदा किए गए थे।“
(तिरमिज़ी)
‘‘जो तुम्हारे पास अमानत रखे उसे उसकी अमानत अदा कर दो और जो तुमसे ख़ियानत (चोरी) करे तो तुम उससे ख़ियानत (विश्वासघात) न करो!’’
(तिरमिज़ी)
‘‘धागा और सूई (भी) अदा करो, और ख़ियानत से बचो, इसलिए कि यह ख़ियानत क़ियामत (प्रलय) के दिन पछतावे का सबब होगी।“
(मिशकात)
‘‘चार चीज़ें तुम्हें प्राप्त हों तो दुनिया की किसी चीज़ से वंचित होना तुम्हारे लिए नुक़सानदेह नहीं है:
(1) अमानत की सुरक्षा
(2) सच बोलना
(3) अच्छा आचरण
(4) हलाल और पवित्र रोज़ी (आजीविका)।”
(मिशकात)
‘‘जिस किसी को हम किसी सरकारी काम पर नियुक्त कर दें और उस काम की तनख़ाह दें, वह अगर उस तनख़ाह के बाद और कुछ (अधिक) वुसूल करे तो यह ख़ियानत (बेईमानी) है।”
(अबू–दाऊद)
‘‘लोगो, जो कोई हमारी हुकूमत में किसी काम पर लगाया गया और उसने एक धागा या उससे भी मामूली चीज़ छिपाकर इस्तेमाल की तो यह ख़ियानत (चोरी) है, जिसका बोझ उठाए हुए वह क़ियामत (प्रलय) के दिन अल्लाह के सामने उपस्थित होगा।”
(अबू–दाऊद)
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‘‘जिस व्यापारी ने जमाख़ोरी (माल जमा करना) की वह पापी है।“
(मिशकात)
‘‘कितना बुरा है ज़रूरत की चीज़ों को रोककर रखनेवाला आदमी! अगर चीज़ों का भाव गिरता है तो उसे दुख होता है और अगर महँगाई बढ़ती है तो ख़ुश होता है।“
(मिशकात)
‘‘जमाख़ोरी (माल महँगा होने के लिए) तो सिर्फ़ गुनाहगार ही करता है।“
(मुस्लिम)
‘‘जिसने महँगाई के ख़याल से अनाज को चालीस दिनों तक रोके रखा, वह अल्लाह से बेताल्लुक़ हुआ और अल्लाह उससे बेताल्लुक़ हुआ।“
(हदीस)
‘‘जिस किसी ने (महँगा होने के इरादे से) अनाज को चालीस दिन तक रोके रखा फिर वह उसे ख़ैरात (अल्लाह की राह में दान) भी कर दे तो वह उसके लिए कफ्–फ़ारा (प्रायश्चित) नहीं होगा।“
(हदीस)
‘‘जो व्यापारी ज़रूरत की चीज़ों को नहीं रोकता, बल्कि समय रहते (अपने माल को) बाज़ार में लाता है, वह अल्लाह की रहमत (दयालुता) का हक़दार है। अल्लाह उसे रोज़ी देगा। आम ज़रूरतों की चीज़ों को रोकनेवाले पर अल्लाह की फटकार है।“
(इब्ने–माजा)
‘‘बाज़ार में माल लानेवाले को रोज़ी मिलती है और जमा करनेवाले पर फटकार है।“
(इब्ने–माजा)
‘‘जो कोई खाने–पीने की चीज़ों की जमाख़ोरी करेगा, अल्लाह उसे कोढ़ और ग़रीबी में गिरफ्तार कर देगा।“
(इब्ने–माजा)
“ग़ीबत यह है कि तुम अपने भाई की चर्चा ऐसे ढंग से करो जिसे वह नापसन्द करे।“ लोगों ने पूछा, ‘‘अगर हमारे भाई में वह बात हो जो मैं कह रहा हूँ तब भी वह ग़ीबत है?’’ अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘अगर वह उसके अन्दर हो तो यह ग़ीबत हुई और अगर वह बात उसके अन्दर नहीं पाई जाती तो यह बुहतान (मिथ्यारोपण, झूठा आरोप) है।“
(मिशकात)
एक आदमी ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से पूछा कि ग़ीबत क्या चीज़ है ? पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू किसी व्यक्ति की चर्चा इस प्रकार करे कि अगर वह सुने तो उसे बुरा लगे।“ उसने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! चाहे वह बात सही हो ?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘अगर तू ग़लत कहे तो यह मिथ्यारोपण (झूठा आरोप) है।“
(मालिक)
‘‘मरे हुए लोगों को बुरा न कहो (यानी उनकी ग़ीबत न करो)। इसलिए कि वे अपने कर्मों के साथ अपने रब के पास जा चुके हैं।“
(बुख़ारी)
‘‘पीठ–पीछे बुराई व्यभिचार से ज़्यादा बड़ा जुर्म है।“ सहाबा (रज़ि॰) ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! पीठ–पीछे बुराई किस प्रकार व्यभिचार से बढ़कर सख़त जुर्म है?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘एक आदमी व्यभिचार करने के बाद जब तौबा (प्रायश्चित) करता है तो उसकी मग़फ़िरत हो जाती है (यानी वह अल्लाह की तरफ़ से माफ़ कर दिया जाता है) मगर ग़ीबत करनेवाले की मग़फ़िरत उस वक़्त तक नहीं होती जब तक कि वह व्यक्ति उसको माफ़ न कर दे जिसकी उसने ग़ीबत की है।“
(मिशकात)
‘‘चुग़लख़ोरी करनेवाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।“
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘मेरे साथियों में से किसी के बारे में मुझे (बुराई की) कोई बात न पहुँचाएँ। इसलिए कि मैं चाहता हूँ कि मेरी मुलाक़ात तुम लोगों से इस हाल में हो कि मेरा सीना हर एक से साफ़ हो (यानी किसी की तरफ़ से मेरे दिल में कोई मैल या नाराज़ी मौजूद न हो)।“
(तिरमिज़ी)
‘‘रिशवत देनेवाले और रिशवत लेनेवाले पर अल्लाह की फटकार और लानत है।“
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘जब किसी क़ौम में बदकारी (व्यभिचार) आम हो जाती है तो अवश्य ही वह (क़ौम) अकालग्रस्त कर दी जाती है। और जब किसी क़ौम में रिश्वत की बीमारी फैल जाती है तो अवश्य ही उसपर डर और दहशत छा जाती है।“
(मिशकात)
‘‘सरकारी नौकरी में कर्मचारी (लोगों से) जो हदिया (गिफ्ट, भेंट) वुसूल करते हैं, वह ख़ियानत (बेईमानी) है।“
(मुसनद अहमद)
‘‘जिस आदमी को हम किसी सरकारी काम पर नियुक्त कर दें और उस काम का वेतन उस आदमी को दें वह अगर उस वेतन के बाद और (कुछ) वुसूल करे तो यह ख़ियानत (बेईमानी) है।“
(अबू–दाऊद)
‘‘लोगो! जो कोई हमारी हुकूमत में किसी काम पर लगाया गया और उसने एक धागा या उससे भी मामूली चीज़ छिपाकर इस्तेमाल की तो यह ख़ियानत (चोरी) है, जिसका बोझ उठाए हुए वह क़ियामत (प्रलय) कळ दिन अल्लाह के सामने हाज़िर होगा।“
(अबू–दाऊद)
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‘‘लानत है सूद (ब्याज) खानेवाले पर, सूद खिलानेवाले पर, सूदी लेन–देन के गवाहों पर और सूदी लेन–देन की दस्तावेज़ लिखनेवाले पर!’’
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘सूद (से हासिल किया हुआ माल) चाहे कितना ही अधिक हो जाए, मगर उसका नतीजा अभाव और कमी है।“
(मुसनद अहमद, इब्ने–माजा)
‘‘सूदख़ोरी के सत्तर हिस्से हैं, उनमें सबसे कम और हल्का हिस्सा ऐसा है जैसे कोई अपनी माँ के साथ व्यभिचार करे।“
(इब्ने–माजा)
‘‘सूद का एक दिरहम (सिक्का) भी जिसको आदमी जान–बूझकर खाए छत्तीस बार ज़िना (व्यभिचार) करने से बढ़कर जघन्य अपराध है।“
(अहमद)
‘‘जब तुममें से कोई व्यक्ति किसी को क़र्ज़ दे तो अगर वह क़र्ज़ लेनेवाला उसे कोई हदिया (गिफ्ट, भेंट) दे या उसे सवारी के लिए अपना जानवर पेश करे तो न वह उसपर सवार हो और न उस हदिये (तोहफ़े) को क़बूल करे, सिवाय इसके कि दोनों के बीच पहले से इस तरह का मामला होता रहा हो (यानी तोहफ़ों का लेन–देन चलता रहा हो)।“
(इब्ने–माजा)
‘‘जिसने किसी के लिए सिफ़ारिश की फिर (सिफ़ारिश करानेवाले ने) उसे हदिया (तोहफ़ा) दिया और उसने उसको क़बूल कर लिया तो यक़ीनन वह सूद (ब्याज) के दरवाज़ों में से एक बड़े दरवाज़े में दाख़िल हो गया।“
(अबू–दाऊद)
‘‘अल्लाह ने लानत की है शराब पर और उसके पीनेवाले पर और पिलानेवाले पर, बेचनेवाले पर और ख़रीदनेवाले पर, निचोड़ने वाले (तैयार करनेवाले) पर और तैयार करानेवाले पर और ढोकर ले जानेवाले पर और उस व्यक्ति पर जिसके लिए वह ढोई गई हो।“
(अबू–दाऊद)
‘‘जो अल्लाह पर ईमान और आख़िरत पर विश्वास रखता है वह उस दस्तरख़ान पर न बैठे जिसपर शराब पी जा रही हो।“
(बुख़ारी)
अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने उस दस्तरख़ान पर खाना खाने से मना किया है जिसपर शराब पी जा रही हो।
(दारमी)
‘‘हर नशीली चीज़ शराब है और हर नशा हराम है।“
(अहमद)
‘‘शराब दवा नहीं है बल्कि वह तो ख़ुद बीमारी है।“
(मुस्लिम)
‘‘जिस (चीज़) की अधिक मात्रा नशा लाती हो उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम (अवैध) है।“
(अबू–दाऊद)
‘‘क़ुरैश के जवानों, तुम अपनी शर्मगाहों (गुप्ताँगों) की हिफ़ाज़त करना, व्यभिचार मत कर बैठना! जो लोग पाकदामनी (पवित्रता) के साथ जीवन व्यतीत करेंगे वे स्वर्ग के हक़दार होंगे।“
(अल–मुंज़िरी)
‘‘जिस क़ौम में ज़िना (व्यभिचार) बहुत फैल जाता है वह (क़ौम) अकालग्रस्त हो जाती है और जिस क़ौम में रिश्वतों की महामारी फैल जाती है उसपर रोब (डर) हावी कर दिया जाता है।“
(अहमद)
एक व्यक्ति ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से पूछा, “कौन–सा गुनाह ज़्यादा बड़ा है ?” उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू किसी को अल्लाह का समकक्ष ठहराए जब कि तुझे अल्लाह ने पैदा किया है।“ उसने कहा, ‘‘फिर कौन–सा गुनाह बड़ा है?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘तू अपनी सन्तान को क़त्ल करे इस डर से कि वह तेरे साथ खाएगी। “ उसने फिर पूछा, ‘‘(इसके बाद) कौन–सा गुनाह ज़्यादा बड़ा है?’’ उन्होंने फ़रमाया, ‘‘यह कि तू अपने पड़ोसी की पत्नी से ज़िना (व्यभिचार) करे।“
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘इस्लाम में (औरतों की) इज़्ज़त के ख़रीदने–बेचने का कारोबार वैध नहीं है।“
(अबू–दाऊद)
‘‘आँखों का ज़िना (व्यभिचार) देखना है, कानों का ज़िना (ज़िना की बातें) सुनना है, और ज़बान का ज़िना (ज़िना की) बात करना है, और हाथ का ज़िना (शर्मगाह से) छेड़छाड़ करना है और पैरों का ज़िना (ज़िना की तरफ़) चलकर जाना है । दिल (दुष्कर्म की) इच्छा करता है, उसके बाद गुप्तांग उस योजना को व्यावहारिक रूप देते हैं या छोड– देते हैं।“
(मुस्लिम)
‘‘हर बुरी आँख चाहे वह मर्द की हो या औरत की ज़िना करनेवाली (व्यभिचारी) है।“
(तिरमिज़ी)
‘‘जिस व्यक्ति के यहाँ बेटी पैदा हो और वह उसे जीवित दफ़न न करे और उसका अपमान न करे और अपने बेटे को उससे बढ़कर न समझे, तो अल्लाह उसे स्वर्ग में दाख़िल करेगा।“
(अबू–दाऊद)
‘‘जिसने तीन बेटियों का पालन–पोषण किया, उन्हें अच्छे संस्कार सिखाए, उनकी शादी की और उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह स्वर्ग में जाएगा।“
(अबू–दाऊद)
‘‘जिसने दो लड़कियों का भार उठाया यहाँ तक कि वे बालिग़ (व्यस्क) हो गर्इं, तो क़ियामत (प्रलय) के दिन मैं और वे इस तरह आएँगे। यह कहकर अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने अपनी दो उँगलियाँ एक साथ कर लीं।”
(मुस्लिम)
‘‘जिसने तीन बेटियों या बहनों का पालन–पोषण किया, उनको अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) सिखाए और उनपर मेहरबानी की, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें बेनियाज़ (निस्पृह) कर दे, अल्लाह ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग वाजिब (अनिवार्य) कर देगा।“ एक आदमी ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर दो के साथ अच्छा बरताव करने पर क्या यही बदला है?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘हाँ।“ इस हदीस को बयान करनेवाले हज़रत इब्ने–अब्बास (रज़ि॰) कहते हैं कि अगर एक लड़की के साथ अच्छा बरताव करने के बारे में सवाल करते तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) यही फ़रमाते कि वह भी इसी इनाम का हक़दार है।”
(मिशकात)
‘‘जब किसी के यहाँ लड़की पैदा होती है तो अल्लाह उसके यहाँ फ़रिश्ते भेजता है जो कहते हैं: ‘ऐ घरवालो, तुमपर सलामती हो।‘ वे लड़की को अपने परों की छाया में ले लेते हैं और उसके सिरपर हाथ फेरते हुए कहते हैं कि यह एक कमज़ोर जान है जो एक कमज़ोर जान से पैदा हुई है। जो इस बच्ची की परवरिश करेगा, क़ियामत तक अल्लाह की मदद उसके साथ रहेगी।“
(तबरानी)
‘‘जो कोई इन लड़कियों के बारे में आज़माया जाए (यानी उसके यहाँ लड़कियाँ पैदा हों) और फिर वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे तो ये लड़कियाँ उसको जहन्नम की आग से बचाएँगी।“
(बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘रिश्तों को तोड़ने वाला स्वर्ग में नहीं जाएगा।“
(मुस्लिम)
‘‘उस क़ौम पर अल्लाह की रहमत (कृपा) नहीं होती जिस (क़ौम) में रिश्ते–नाते तोड़ने वाला मौजूद हो।“
(बैहक़ी)
‘‘जो कोई चाहता है कि उसकी रोज़ी (आजीविका) में बढ़ोत्तरी पैदा हो और उसकी उम्र लम्बी हो, वह रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक करे।“
(बुख़ारी)
‘‘तीन तरह के लोग स्वर्ग में नहीं जा सक़गे।
(1) हमेशा शराब पीने वाला
(2) रिश्ते–नाते तोड़ने वाला
(3) जादू पर यक़ीन करने वाला।”
(अहमद)
‘‘जु़ल्म (अत्याचार) और रिश्ते–नाते तोड़ने के सिवा कोई गुनाह ऐसा नहीं है जिसके करनेवाले को अल्लाह दुनिया में जल्द सज़ा दे, ऐसा करनेवाले के लिए क़ियामत के दिन भी (उसके लिए) सज़ा तैयार रखी है।“
(अबू–दाऊद)
‘‘एक दूसरे के साथ कपट न रखो और न हसद (ईर्ष्या), न एक दूसरे के साथ दुश्मनी करो और न रिश्तों को तोड़ो! और ऐ अल्लाह के बन्दों, आपस में भाई–भाई बन जाओ!’’
(बुख़ारी, मुस्लिम)
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