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ईमान (भाग-5) – ईशदूतों पर ईमान

ishdoot(5) ईश्वर के रसूलों (ईशदूतों) पर ईमान

ग्रंथों के पश्चात् हमको ईश्वर के समस्त रसूलों (पैग़म्बरों) पर भी ‘ईमान’ लाने का आदेश दिया गया है।

यह बात इससे पहले लिखी जा चुकी है कि ईश्वर के रसूल संसार की सभी जातियों के पास आए थे और उन सबने उसी इस्लाम की शिक्षा दी थी जिसकी शिक्षा देने के लिए अन्त में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) आए। इस दृष्टि से ईश्वर के सब रसूल एक ही गिरोह के लोग थे। यदि कोई व्यक्ति उनमें से किसी एक को भी झूठा ठहराए तो मानो उसने सबको झुठला दिया और किसी एक की भी पुष्टि करे तो आप-से-आप उसके लिए आवश्यक हो जाता है कि सबकी पुष्टि करे। मान लीजिए दस व्यक्ति एक ही बात कहते हैं, जब आपने एक को सच्चा मान लिया तो ख़ुद-ब-ख़ुद आपने शेष नौ को भी सच्चा मान लिया। यदि आप एक को झूठा कहेंगे तो इसका अर्थ है कि आपने उस बात को ही झूठ माना है जिसे वह बयान कर रहा है और इससे दसों का झूठा सिद्ध होना साबित होगा। यही कारण है कि इस्लाम में सभी रसूलों पर ‘ईमान’ लाना आवश्यक है, जो व्यक्ति किसी रसूल (पैग़म्बर) पर ‘ईमान’ न लाएगा वह ‘काफ़िर’ (अविश्वासी) होगा भले ही वह अन्य सभी ‘रसूलों’ को मानता हो।

कुछ उल्लेखों के अनुसार संसार की विभिन्न जातियों में जो नबी (पैग़म्बर) भेजे गए हैं उनकी संख्या लगभग एक लाख चैबीस हज़ार है। यदि आप विचार करें कि दुनिया कब से आबाद है और उसमें कितनी जातियाँ गुज़र चुकी हैं तो यह संख्या कुछ भी ज़्यादा मालूम न होगी। इन सवा लाख नबियों (पैग़म्बरों) में से जिनके नाम हमको क़ुरआन में बताए गए हैं उनपर तो निश्चयपूर्वक ईमान लाना आवश्यक है, बाक़ी सभी के बारे में हमें केवल यह विश्वास रखने की शिक्षा दी गई है कि जो लोग भी ईश्वर की ओर से उसके बन्दों के मार्गदर्शन के लिए भेजे गए थे वे सब सच्चे थे। भारत, चीन, ईरान, मिस्र, अफ़्रीक़ा, यूरोप और संसार के दूसरे देशों में जो सन्देष्टा (पैग़म्बर) आए होंगे हम उन सब पर ईमान लाते हैं, परन्तु हम किसी विशेष व्यक्ति के बारे में यह नहीं कह सकते कि वह नबी था और न यह कह सकते हैं कि वह नबी न था, इसलिए कि हमें उसके बारे में कुछ बताया नहीं गया, हाँ, विभिन्न धर्मों के अनुयायी जिन लोगों को अपना पेशवा मानते हैं उनके विरुद्ध कुछ कहना हमारे लिए जायज़ नहीं, बहुत संभव है कि वास्तव में वे नबी (पैग़म्बर) हों और बाद में उनके अनुयायियों ने उनके धर्म को बिगाड़ दिया हो जिस तरह हज़रत मूसा (अलैहि॰) और हज़रत ईसा (अलैहि॰) के अनुयायियों ने बिगाड़ा। अतएव हम जो कुछ भी सम्मति प्रकट करेंगे उनके मतों और प्रथाओं के बारे में प्रकट करेंगे, परन्तु पेशवाओं के बारे में चुप रहेंगे ताकि अनजाने में हमसे किसी रसूल (पैग़म्बर) के साथ गुस्ताख़ी न हो जाए।

पिछले रसूलों में औैर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) में इस दृष्टि से तो कोई अन्तर नहीं कि आपकी तरह वे सब भी सच्चे थे, ईश्वर के भेजे हुए थे, इस्लाम का सीधा मार्ग बतानेवाले थे और हमें सब पर ईमान लाने का हुक्म दिया गया है, परन्तु इन सब पहलुओं से समानता होने पर भी आप में और दूसरे पैग़म्बरों में तीन बातों का अन्तर भी है:

एक यह कि पिछले सन्देष्टा विशेष जातियों में विशेष समयों के लिए आए थे और हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) सम्पूर्ण संसार के लिए और सदा के लिए नबी बनाकर भेजे गए हैं, जैसा कि पिछली पंक्तियों में विस्तार से बयान कर चुके हैं।

दूसरी बात यह कि पिछले ईश-सन्देष्टाओं (पैग़म्बरों) की शिक्षाएँ या तो संसार से बिल्कुल ग़ायब हो चुकी हैं या कुछ शेष भी रह गई हैं, तो अपने विशुद्ध रूप से सुरक्षित नहीं रही हैं। इसी प्रकार उनके ठीक-ठीक जीवन वृत्तांत भी आज संसार में कहीं नहीं मिलते, बल्कि उनपर बहुत-सी काल्पनिक कहानियों के रद्दे चढ़ गए हैं। इसलिए यदि कोई उनका अनुवर्तन करना चाहे भी, तो नहीं कर सकता। इसके विपरीत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षा, आपका पवित्रा जीवन-चरित्र आप (सल्ल॰) के मौखिक आदेश, आपके व्यावहारिक तरीके़, आपका शील, स्वभाव, प्रवृ$ति, तात्पर्य यह कि हर चीज़ संसार में बिल्कुल सुरक्षित है। इसलिए वास्तव में समस्त पैग़म्बरों में केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ही एक ऐसे पैग़म्बर हैं कि केवल आप (सल्ल॰) ही का अनुसरण करना संभव है।

तीसरा यह कि पिछले सन्देष्टाओं के द्वारा इस्लाम की जो शिक्षा दी गई थी वह पूर्ण नहीं थी। हर नबी के बाद दूसरा नबी आकर उसके उपदेश और क़ानून और शिक्षाओं में ईशादशानुसार परिवर्तन एवं वृद्धि करता रहा और परिवर्तन व प्रगति का क्रम निरन्तर चलता रहा। यही कारण है कि उन सन्देष्टाओं (पैग़म्बरों) की शिक्षाओं को उनका समय बीत जाने के पश्चात् ईश्वर ने सुरक्षित नहीं रखा, क्योंकि किसी पूर्ण शिक्षा के पश्चात् पिछली अपूर्ण शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं रहती। अन्त में हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के द्वारा इस्लाम की ऐसी शिक्षा दी गई जो हर हैसियत से पूर्ण थी। इसके पश्चात् समस्त सन्देष्टाओं के धर्म-विधान या शरीअतें (Code) आप-से-आप निरस्त (मन्सूख़) हो गईं, क्योंकि पूर्ण को छोड़कर अपूर्ण का अनुपालन करना बुद्धि के ख़िलाफ़ है। जो व्यक्ति हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का अनुपालन करेगा उसने मानो समस्त नबियों का अनुपालन किया, क्योंकि समस्त नबियों की शिक्षाओं में जो कुछ भलाई थी वह सब हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं में मौजूद है। और जो व्यक्ति आपका आज्ञापालन छोड़कर किसी पिछले नबी का आज्ञापालन करेगा वह बहुत-सी भलाइयों से वंचित रह जाएगा, इसलिए कि जो भलाइयाँ (कल्याणकारी बातें) बाद में आई हैं वे उस पुरानी शिक्षा में न थीं।

इन कारणों से सम्पूर्ण संसार के मनुष्यों के लिए अनिवार्य हो गया है कि वे केवल हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का आज्ञापालन करें। मुसलमान होने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) पर तीन हैसियतों से ‘ईमान’ लाए।

एक यह कि आप अल्लाह के सच्चे पैग़म्बर हैं।

दूसरे यह कि आपका मार्गदर्शन और शिक्षा बिल्कुल पूर्ण है, उसमें कोई अपूर्णता नहीं और वह हर क़िस्म की भूल से रहित है।

तीसरे यह कि आप ईश्वर के अन्तिम पैग़म्बर हैं। आपके बाद महाप्रलय (क़ियामत) तक ‘नबी’ किसी भी क़ौम में आनेवाला नहीं है, न कोई व्यक्ति ऐसा आनेवाला है जिसपर ईमान लाना मुस्लिम होने के लिए शर्त हो, जिसको न मानने से कोई व्यक्ति काफ़िर हो जाए।


Courtesy :
www.ieroworld.net
www.taqwaislamicschool.com
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

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