News and Events

पैदाइशी मुसलमान इस्लाम की क़द्र नहीं करते जबकि इस्लाम उन्हें विरासत में मिला है। मैं इस्लाम की बहुत कद्र करता हूँ क्योंकि मैं अध्धयन करके मुस्लिम हुआ हूँ  -मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल, इंग्लैण्ड

35

मैं अध्ययन के बाद मुसलमान हुआ हूं। मेरे दिल में इस्लाम की बहुत कद्र है। मुसलमानों को इस्लाम विरासत में मिला है। इसलिए वे उसकी कद्र नहीं पहचानते। सच्चाई यह है कि मेरी जि़न्दगी में जितनी मुसीबतें आयीं, उनमें , अमन व सुकून की जगह केवल इस्लाम में ही मिली। ।

-मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल, इंग्लैण्ड

quote-in-the-eyes-of-history-religious-toleration-is-the-highest-evidence-of-culture-in-a-marmaduke-pickthall-59-0-045

मार्माडियूक पिकथॉल 17 अप्रैल 1875 ई० को इंग्लैण्ड के एक गांव में पैदा हुए। उनके पिता चाल्र्स पिकथॉल स्थानीय गिरजाघर में पादरी थे। चाल्र्स के पहली पत्नी से दस बच्चे थे। पत्नी की मृत्यु के बाद चाल्र्स ने दूसरी roman-transliteration-of-the-glorious-qur-an-paperback-mohammad-marmaduke-pickthall-translation-m-a-h-eliyasee-transliteration-5शादी की, जिससे मार्माडियूक पिकथॉल पैदा हुए। मार्माडियूक ने हिब्रो के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उनके सहपाठियों में, जिन लोगों ने आगे चलकर ब्रिटेन के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया, उनमें सर विंस्टन चर्चिल भी शामिल थे। चर्चिल से उनकी मित्रता अंतिम समय तक क़ायम रही।
स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनके सामने दो रास्ते थे। एक यह कि उच्च शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला ले लें या फिर अपने एक मित्र मिस्टर डोलिंग के साथ फि़लिस्तीन की सैर को जाए। फि़लिस्तीन पर उस जमाने में तुर्कों की हुकूमत थी। डोलिंग की वहां अंग्रेजी दूतावास में नौकरी लग गयी थी।
मार्माडियूक ने दूसरा मार्ग चुना और ऑक्सफोर्ड में दाखिला लेने के विचार को त्यागते हुए फि़लिस्तीन की ओर चल पड़े। यहीं से उनके जीवन में वह इन्कलाबी मोड़ आया, जिसने हमेशा के लिए उनके भविष्य का फै़सला कर दिया।
पिकथॉल साहब असाधारण प्रतिभा के मालिक थे। विभिन्न भाषाओं को सीखने का उन्हें बहुत शौक था। इसी के चलते उन्होंने मातृभाषा अंग्रेज़ी के अलावा फ्रांसीसी, जर्मन, इतावली और हस्पानवी भाषा में निपुणता प्राप्त कर ली। मध्य पूर्व में वे कई वर्षों तक रहे। सीरिया, मिस्त्र और इरा$क की सैर करते रहे। बैतूल मुकद्दस में उन्होंने maxresdefaultअरबी सीखी और उसमें महारत हासिल की।
उसी जमाने में वे इस्लाम से इस हद तक प्रभावित हो चुके थे कि मस्जिदे अक़्सा में शैख्ुल जामिया से अरबी पढ़ते-पढ़ते उन्होंने धर्म परिवर्तन की इच्छा जतायी। शैख् एक समझदार एवं दुनिया देखे हुए व्यक्ति थे। उन्होंने यह सोचकर कि कहीं यह इस नौजवान का भावुक फै़सला न हो, उन्हें अपने माता-पिता से सलाह लेने का सुझाव दिया।
इस संबंध में पिकथॉल स्वयं लिखते है: इस सुझाव ने मेरे दिल मे अजीब तरह का प्रभाव डाला। इसलिए कि मैं यह समझ बैठा था कि मुसलमान दूसरों को अपने धर्म में लाने के लिए बेताब रहते हैं, मगर इस बातचीत ने मेरे विचार बदल कर रख दिये। मैं यह समझने पर मजबूर हो गया कि मुसलमानों को अनावश्यक रूप से पक्षपाती कहा जाता है।
इस्लाम के बारे में पिकथॉल का अध्ययन जारी रहा और इसका प्रभाव उन पर पड़ता रहा।मिस्त्र और सीरिया के मुस्लिम समाज का भी 51VgsB7BBVL._SX331_BO1,204,203,200_उन्होंने गहरा अध्ययन किया और उन्हें करीब से देखा। इन सारी चीज़ों ने मिलकर उनके मन-मस्तिष्क पर इतना प्रभाव डाला कि उन्होंने अरबी पोशाक पहननी शुरू कर दी। इस्लाम की वास्तविकता उनकी रूह के अन्दर उतरती चली गयी।
1913 में पिकथॉल तुर्की गये, जहां उन्होंने तुर्कों के राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन किया। तुर्कों के सामाजिक एवं स्वाभाविक गुणों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। अतएव वे गाज़ी तलत बक सहित कई तुर्क नौजवानों का उल्लेख करते हुए कहते हैं: एक दिन मैंने तलत बक से कहा कि आप यूं ही बिना किसी हथियार के टहलते फिरते हैं। आपको अपने साथ हथियारबन्द रक्षक रखने चाहिए।
जवाब में उन्होंने कहा कि खुदा से बढ़कर मेरा कोई रक्षक नहीं। मुझे उसी पर भरोसा है। इस्लामी शिक्षा के अनुसार समय से पहले मौत कभी भी नहीं आ सकती।
पिकथॉल साहब गाज़ी अनवर पाशा, शौकत पाशा, गाज़ी रऊफ़ बक, और दूसरे तुर्क रहनुमाओं का उल्लेख बड़े ही अपनेपन से करते थे। उनकी सोच थी- लोग व्यर्थ ही तुर्कों पर pickthallअधर्मी होने का आरोप लगाते हैं। मैंने उन्हें हमेशा खुदा से डरने वाला मुसलमान पाया।
तुर्की में ही उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का पक्का इरादा कर लिया। उन्होंने गाज़ी तलत बक से कहा: मैं मुसलमान होना चाहता हूं।
जिसका जवाब उन्होंने यह दिया कि कुसतुन्तुनिया में आप अपने इस्लाम कबूल करने की घोषणा मत कीजिए। अन्यथा हम लोग अन्तरराष्ट्रीय कठिनाइयों में फंस जाएंगे। अच्छा है कि इसकी घोषणा लन्दन से हो। यूरोप में दावत के दृष्टिकोण से इसके ज़बरदस्त नतीजे निकलेंगे।
इसी सुझाव का नतीजा था कि पिकथॉल साहब ने लन्दन जाकर दिसम्बर 1914 मे इस्लाम कबूल करने की घोषणा की। इस घोषणा से लन्दन की इल्मी व राजनीतिक दुनिया में हलचल सी मच गयी। ईसाई कहने लगे कि जिस धर्म को पिकथॉल जैसा व्यक्ति स्वीकार कर सकता है उसमें निश्चित रूप से दिल मोह लेने वाली अच्छाइयां होंगी।
pickthall1इस्लाम कबूल करने पर पिकथॉल साहब के विचार ये थे-मैं अपने अध्ययन के बाद मुसलमान हुआ हूं। मेरे दिल में उसकी बहुत कद्र है। मुसलमानों को इस्लाम विरासत में बाप-दादा की तरफ से मिला है। इसलिए वे उसकी कद्र नहीं पहचानते। सच्चाई यह है कि मेरी जि़न्दगी में जितनी मुसीबतें और परेशानियां आयीं, उनमें अमन व सुकून की जगह केवल इस्लाम में ही मिली। इस नेमत पर अल्लाह का जितना भी शुक्र अदा करूं, कम है।
विश्व युद्ध के दौरान मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल लन्दन में इस्लाम के प्रचार-प्रसार का काम करते रहे। वे जुमा का खुतबा देते, इमामत करते, ईदैन की नमाज़ पढ़ाते और रमजाऩुल मुबारक में तरावीह के इमाम होते।
इस्लामिक रिव्यू नामक पत्रिका के संकलन एवं सम्पादन की जि़म्मेदारी भी इन्हीं के सुपुर्द थी। इस दौरान वे इदारा मालूमाते इस्लामी से भी जुड़े रहे।
पिकथॉल साहब 1920 में उमर सुब्हानी की दावत पर मुम्बई आये, जहां उन्होंने बम्बई क्रॉनिकल के सम्पादन का काम शुरू किया और 1924 तक उसके सम्पादक रहे। इस दौरान उन्होंने तुर्कों और भारतीय मुसलमानोंimages की समस्याओं का खुलकर समर्थन किया और राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय रहे।
1924 में मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल को निजा़मे दकन ने हैदराबाद बुला लिया। वहां उन्हें चादर घाट स्कूल का प्रिंसिपल और रियासत के सिविल सर्विस का प्रशिक्षक नियुक्त किया। हैदराबाद ही से उन्होने इस्लामिक कल्चर के नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका निकालनी शुरू की, जिसका उद्देश्य गैऱ-इस्लामी दुनिया को इस्लामी संस्कृति, ज्ञान व कला से अवगत कराना था। लगभग दस वर्षो तक वे इस संस्था से जुड़े रहे और बड़े ही खुलूस, लगन एवं एकाग्रता के साथ इल्मी व दावती काम करते रहे। निज़ाम हैदराबाद की सरपरस्ती में ही पिकथॉल साहब ने कुरआन मजीद के अंगे्रजी अनुवाद का काम शुरू किया।
pickthallandkkdनिज़ाम ने उन्हें दो वर्ष के लिए मिस्त्र भेज दिया, जहां जाकर अज़हर विश्वविद्यालय के आलिमों से विचार-विमर्श करके उन्होंने कुरआन मज़ीद के अंग्रेज़ी अनुवाद का काम पूरा किया। यह पहला अंगे्रज़ी अनुवाद है जिसे किसी ने इस्लाम कबूल करने के बाद दुनिया के सामने पेश किया। इस अनुवाद में माधुर्य पाया जाता है। इस अनुवाद में भाषा की सुघड़ता है, प्रांजल और प्रवाहता है। भाषा शैली की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं लोकप्रिय है।
इससे पहले पामर, रॉडवेल और सैल आदि के अनुवाद प्रचलित थे। परन्तु पिकथॉल मरहूम ने कुरआन के अनुवाद की भूमिका में स्पष्ट शब्दों में लिख दिया कि एक ऐसा व्यक्ति जो किसी ईश्वरीय ग्रन्थ के अल्लाह की ओर से होने का क़ायल न हो, वह कभी उसके साथ न्याय नहीं कर सकता।
यही कारण है कि ईसाई दुनिया इस टिप्पणी पर बहुत तिलमिलायी। बहरहाल यह बात सच है कि पिकथॉल का अनुवाद न केवल बेहतर एवं सटीक है, बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय भी है। पिछले कुछ वर्षों में केवल अमेरिका में उसकी कम से कम पांच लाख प्रतियां बिक चुकी हैं।
जनवरी 1935 में मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल हैदराबाद एजूकेशन सर्विस से त्याग-पत्र देकर लन्दन चले गये। निज़ाम ने उनको जीवन भर के लिए पेंशन मुकर्रर करtimthumb दी।
इंग्लैण्ड में वे इस्लाम के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। इस्लामिक कल्चर भी लन्दन से प्रकाशित होने लगा। इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होने एक संस्था की स्थापना भी की।
19 मई 1936 को ह्दय गति के रुक जाने के कारण उनका इन्तिकाल हो गया। वे लन्दन में दफ्ऩ हुए, हालांकि उनकी हार्दिक इच्छा थी कि उनकी मृत्यु हस्पानिया, स्पेन में हो, जहां के इस्लामी दौर से उन्हें बहुत मुहब्बत थी। पिकथॉल इस्लामी अख्लाक से मालामाल थे।
पांचों वक्त नमाज़ पाबन्दी के साथ अदा करते। रमज़ान का रोज़ा कभी भी नागा़ नहीं किया। सच्चे मुसलमानों की भांति वे खुदा पर भरोसा करते और हर काम को उसकी रजा पर छोड़ देते। कदम-कदम पर अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्ल० का ज़िक्र करते।
वे अत्यधिक शरीफ़ थे। उनसे मिलकर ईमान में ताज़गी पैदा होती थी। उन्होंने इस्लाम के प्रचार-प्रसार में प्रशंसनीय सेवाएं की हैं। कुरआन मजीद के अनुवाद के अलावा उन्होंने कई अनेक उल्लेखनीय किताबों की रचना की। कल्चरल साइड ऑफ इस्लाम उनकी एक महत्वपूर्ण कृति है।

यह उन धार्मिक अभिभाषणों का संकलन है जो उन्होंने 1927 में मद्रास में वार्षिक इस्लामी खुत्बों के सिलसिले में दिये थे। उन्होंने दस-बारह उपन्यास भी लिखे, जो साहित्य की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं।


Share to Others……


*** इस्लाम, क़ुरआन या ताज़ा समाचारों के लिए निम्नलिखित किसी भी साइट क्लिक करें। धन्यवाद।………


www.ieroworld.net
www.myzavia.com
www.taqwaislamicschool.com


Courtesy :
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)
MyZavia


April 28, 2016

Paidaishee Muslaman Islam ki Qadr Nahi Karte – Muhammad Marmaduke Pickthalle

पैदाइशी मुसलमान इस्लाम की क़द्र नहीं करते जबकि इस्लाम उन्हें विरासत में मिला है। मैं इस्लाम की बहुत कद्र करता हूँ क्योंकि मैं अध्धयन करके मुस्लिम […]
April 27, 2016

Allah ki Raza ke Liye Jo Bhi Nek Kaam Kiya Jaye Woh Bekar Nahin Jayega – Margarate Markus (Maryam Jameela)

अल्लाह की रज़ा के लिए जो भी नेक काम किया जाए वह कभी बेकार नहीं जाएगा – मार्गरेट मार्कस (मरयम जमीला) मोहतरमा मरयम जमीला न्यूयार्क (अमेरिका) […]
April 26, 2016

Britain ke Poorv Catholic Paadri, Jo Islam Qubool Kar Chuke The, Ab Hamare Beech Nahin Rahe

ब्रिटेन के पूर्व कैथोलिक पादरी इदरीस तौफ़ीक़, जो इस्लाम क़ुबूल कर चुके थे, अब हमारे बीच नहीं रहे इदरीस तौफ़ीक़, पहले एक रोमन कैथोलिक पादरी थे। […]
April 25, 2016

Former British Catholic Priest Idris Tawfiq, who accepted Islam has passed away.

Former British Catholic Priest Idris Tawfiq, who accepted Islam has passed away. Idris Tawfiq, who was formerly a Roman Catholic priest, was hospitalized recently and fell […]
April 25, 2016

Main Aashcharyachakit Rah Gayee Ki Qur’an Dil Ke Saath Shaath Dimagh ko Bhi Appeal Karta hai – Poorv American Modal Amina Jana

मैं आश्चर्यचकित रह गयी कि कुरआन दिल के साथ-साथ दिमाग को भी अपील करता है – पूर्व अमेरिकी मॉडल अमीना जनां मैं आश्चर्यचकित रह गयी कि […]
April 25, 2016

Malcolm X – Ek Afro American Nav Muslim Jiski Hatya Kar Di Gayee

मेलकॉम एक्स – एक अफ्रो अमेरिकन नव मुस्लिम, जिनकी रंग-भेद की समस्या का समाधान “इस्लामी क्रांति” से घबरा कर साजिश से उनकी हत्या कर दी गयी  मेलकॉम […]