मानव-जीवन को कल्याण और भलाई के मार्ग पर डालने के लिए एक आदर्श चाहिए। आदर्श वास्तव में मापदंड (Standard) का काम करता है, जिस पर नाप-तौलकर यह पता लगाया जाता है कि किसी व्यक्ति के व्यवहार का कितना भाग खरा है और कितना खोटा। मापदंड या आदर्श काल्पनिक भी होते हैं, जो क़िस्से-कहानी के रूप में उपदेशों में बयान किए जाते हैं और सुनकर लोग ख़ुश होते हैं। लेकिन उसका कोई वास्तविक लाभ व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन में नहीं होता। आदर्श होने के लिए सिर्फ़ इतना ही काफी नहीं है कि यह संभव और व्यावहारिक हो, बल्कि यह भी ज़रूरी है कि वह आदर्श किसी का जीवन बन चुका हो और उसने उस पर चलकर आदर्श का व्यावहारिक नमूना पेश किया हो। उस व्यक्ति के हृदय मंक मानव के प्रति इतना प्रेम हो कि हर कोई उसे अपना शुभ चिंतक समझने लगे। उसके प्रेम में डूबकर उसके आदर्श को अपनाने के लिए दीवाना हो जाए। इसके लिए वह केवल धन और दौलत लुटाने ही को तैयार न हो बल्कि जीवन भी बलिदान करने के लिए तत्पर हो जाए।
इतिहास में ऐसे अनगिनत महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपना सब कुछ मानवता के उत्थान और मुक्ति के लिए बलिदान किया है। मानव का सही मार्गदर्शन किया है। उन सब पर ईश्वर की अपार कृपा हो! दुनिया के किसी कोने में, इतिहास के किसी काल में और मानव-समुदाय की किसी जाति में उनका जन्म हुआ हो, हम उन्हें सलाम करते हैं और अपनी हार्दिक श्रद्धा उनको अर्पित करते हैं। वे सभी हमारे आदर्श पुरुष हैं।
लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि कालांतर में उनकी जीवनी और उनकी शिक्षाएं सुरक्षित नहीं रह सकीं। कुछ ऐसे प्रमाण अवशेष हैं जिनसे हमें मालूम होता है कि वे महान और आदर्श पुरुष थे। अफ़सोस कि उनके जीवन के आकार-प्रकार और उनकी शिक्षाओं की विस्तृत जानकारी के लिए हमारे पास कोई प्रामाणिक साधन नहीं है। यह ईश्वर की बड़ी कृपा है कि महान विभूतियों में एक महान व्यक्तित्व का पूरा जीवन इतिहास के प्रकाश में है। उसके जीवन और शिक्षाओं के बारे में हम जो कुछ जानना चाहें, सब मालूम कर सकते हैं। कहीं अटकल और अनुमान से काम लेने की ज़रूरत नहीं। निजी जीवन, सामाजिक जीवन और राजनीतिक जीवन भी, सब प्रकाश में हैं। यह प्रकाश-पुंज समस्त मानवजाति की अमूल्य धरोहर है। यह व्यक्तित्व है हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का।
हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सन् 571 ई॰ में अरब देश के ‘मक्का’ नगर में पैदा हुए। जन्म से पूर्व ही पिता का देहांत हो गया। बचपन ही में थोड़े-थोड़े अंतराल से उनकी माता और दादा का भी देहांत हो गया। चाचा ने उनका पालन-पोषण किया। बचपन ही से उनके स्वभाव में ऐसी विनम्रता थी कि पूरे परिवार और नगर के लोग उनका आदर करते थे। उनकी सच्चाई और नेकी की चारों तरफ़ चर्चा होने लगी। बचपन में बकरी-भेड़ चराने का काम किया। जवान होकर व्यापार शुरू किया। ख़दीजा (रज़ि॰) नामक एक धनवान विधवा के व्यापारिक सामानों को लादकर मंडियों में बेचा। उनकी ईमानदारी और सद्गुणों से प्रभावित होकर उस विधवा ने आप से विवाह का प्रस्ताव किया जिसे आपने स्वीकार कर लिया। आप उस समय की सामाजिक कुरीतियों और लोगों की वेदना से बहुत विकल थे। आप एक गुफा में जाकर ईश्वर का मनन और समाज को उबारने के लिए प्रार्थना करने लगे। उसी गुफा में उन्हें ईश्वर की प्रकाशना हुई। आप पर मानवजाति के मार्गदर्शन का गुरुतर भार ईश्वर की ओर से डाला गया। ईश्वर ने मानव-कल्याण के लिए उन पर ‘कु़रआन’अवतरित किया। ईश्वर के आदेश के अनुकूल वे मानव के मार्गदर्शन का काम करते रहे। समाज के स्वार्थी और सत्तावान लोगों ने उनका तीव्र विरोध किया। सज्जन और उपेक्षित लोगों ने उनकी शिक्षा को अपना लिया। आपको और आपके साथियों को मक्का के दुष्टों ने घोर यातनाएं दीं। उन्हें मक्का नगर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। दूर ‘मदीना’नगर में शरण ली। मक्का वालों ने वहां भी आक्रमण किया। कई युद्ध हुए। फिर भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का उनके साथ दयापूर्ण व्यवहार रहा। जब मक्का में अकाल पड़ा तो आपने मदीना से ऊंटों पर लादकर गल्ले भिजवाए। इस्लामी शिक्षा का प्रचार-कार्य चलता रहा। जब अरब में हर तरफ़ इस्लाम फैल गया और मक्का के भी अधिकांश लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, मक्का पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को विजय प्राप्त हो गई और अपने वतन में वापसी हुई। यह अवसर था जब विरोधियों से जी भर कर बदला लिया जाता, किंतु आपने दुष्टों और अत्याचिारयों को माफ कर दिया। इतना ही नहीं, उन्हें सम्मान और श्रेष्ठता भी प्रदान की गई। विजेता के इस व्यवहार से अत्यंत प्रभावित होकर सबने स्वीकार किया कि सत्य आपके साथ है; और उन्होंने भी सत्य की सेवा के लिए अपने को अर्पित कर दिया।
आपके जीवन में ही एक बड़े भू-भाग पर सत्य का राज्य स्थापित हो गया। इस राज्य में ग़रीबों, अनाथों और पीड़ितों एवं उपेक्षितों को पूरा सम्मान मिला। मानव-मानव के बीच के हर प्रकार के भेदभाव मिट गए। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने शिक्षा-दीक्षा का उत्तम प्रबंध किया। स्वयं अत्यंत जीवन व्यतीत करते रहे। दूसरों की सेवा का इतना ध्यान था कि स्वयं न खाते और दूसरों को खिलाते। उनके घर कई-कई दिन चूल्हा न जलता। कुछ खजूरें खाकर पानी पी लेते। चटाई पर सोते। रातों में उठकर देर तक नमाज़ पढ़ते। यह था राज्य के सर्वोच्च अधिकारी का जीवन।
अपने अनुयायियों में भी आपने ऐसे गुण पैदा किए कि वे निःस्वार्थ भाव से ईश्वर की प्रसन्नता के लिए सेवा-कार्य में रत रहते। स्वार्थ और सुख-भोग से दूर भागते। उन सब लोगों के सम्मिलित प्रयास से देखते ही देखते इस्लाम एशिया, यूरोप और अफ्ऱीक़ा के बड़े भू-भागों में फैल गया। गोरे-काले, ऊंच-नीच, निर्बल-बलवान के भेद मिट गए। अज्ञान और अंधकार मिटने लगा। बुद्धि और विज्ञान को प्रतिष्ठा मिली। इस्लाम का आदर्श संपूर्ण विश्व में फैल गया। मानवाधिकार, न्याय का राज्य, शांति-स्थापना, सहानुभूति, स्वतंत्रता और संपूर्ण मानवजाति से भ्रातृभाव इत्यादि आदर्श उन लोगों ने भी स्वीकार किया जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इस्लाम को स्वीकार नहीं किया था। इन सिद्धांतों की मौजूदगी में आज संसार में अन्याय और अराजकता फैली हुई है। इसका मूल कारण यही है कि इन शिक्षाओं को दिल से स्वीकार नहीं किया गया है। सिर्फ़ लोगों को धोखा देने के लिए दिखावटी आदर्श अपनाए जाते हैं और इसकी आड़ में अपने स्वार्थ की पूर्ति की जाती है।
हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की जीवन-व्यवस्था का सार यह है कि सत्य-मार्ग पर चलने की प्रेरक शक्ति प्रभु पर ईमान और उससे प्रेम और डर है। वह मनुष्य के कर्मों का फल न्याय के साथ देने वाला है। कोई भलाई या बुराई उससे छिपाई नहीं जा सकती। प्रभु-प्रेम में लीन होकर उसकी प्रसन्नता एवं पारितोषिक पाने की अभिलाषा मानव को सत्य-मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। उसकी कठोर यातना से बचने की चिंता बुराई से रोकती है। सच्ची बात यह है कि ईश्वर में आस्था और पारलौकिक जीवन की धारणा को अपनाए बिना मानव में स्थायी रूप से उत्तम गुणों का आविर्भाव संभव नहीं।
आज सबसे बड़ी आवश्यकता है कि फिर उन शिक्षाओं को अपनाया जाए जो जीवन को सत्य-मार्ग पर ले जा सकती हैं। इसके बिना मानवता पीड़ाओं और दुखों से मुक्त नहीं हो सकती।
(हदीस और कु़रआन से संकलित)
Courtesy :
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