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क्या घर में तरावीह की नमाज़ पढ़ना जायज़ है?

और

क्या पत्नी के साथ जायज़ है और इमाम पति हो?

 

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

तरावीह की नमाज़ सुन्नत मुअक्कदा है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस पर अपने इस कथन के द्वारा उभारा और बल दिया है:

‘‘जिसने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की आशा रखते हुए रमज़ान का क़ियाम किया (अर्थात् तरावीह की नमाज़ पढ़ी) तो उसके पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जाएँ गे।’’ 

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 37) और मुस्लिम( हदीस संख्या : 759) ने रिवायत किया है।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा को कई रातें तरावीह की नमाज़ पढ़ाई, फिर आप को उसके उनके ऊपर फर्ज़ कर दिए जाने का डर हुआ तो आप उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए नहीं निकले। फिर उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें एक इमाम पर एकत्रित कर दिया। चुनाँचे वह आज के दिन तक जमाअत के साथ पढ़ी जाती है।

तथा इसमाईल बिन ज़ैद से वर्णित है कि उन्हों ने कहा :

“अली रज़ियल्लाहु अन्हु का मस्जिदों से गुज़र हुआ, जिनमें रमज़ान के महीने में लालटेनें रोशन थीं। तो उन्हों ने कहा कि अल्लाह तआला उमर की क़ब्र को प्रकाश से भर दे, जिस तरह कि उन्हों ने हमारी मस्जिदों को रोशन किया।”

इसे असरम ने रिवायत किया है। और इब्ने क़ुदामा ने इसे अल-मुगनी (1/457) में वर्णन किया है।

तथा ‘‘दक़ाइक़ ऊलिन्नुहा’’ (1/2245) में बहूती फरमाते हैं कि :

‘‘मस्जिद में तरावीह पढ़ना घर में पढ़ने से अफज़ल है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लोगों को लगातार तीन रातों तक जमाअत के साथ तरावीह की नमाज़ पढ़ाई, जैसा कि आयशा रज़ि. ने इसे रिवायत किया है . . .  तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘जिसने इमाम के साथ क़ियाम किया (यानी नमाज़ पढ़ी) यहाँ तक कि वह फारिग हो गया तो उसके लिए एक रात का क़ियाम लिखा जायेगा।’’

अल्लामा शौकानी ने ‘‘नैलुल अवतार’’ (3/62) में फरमाया :

नववी ने कहा : विद्वानों की उसके मुसतहब होने पर सर्वसहमति है। वह कहते हैं : तथा उन्हों ने इस बारे में मतभेद किया है कि क्या उसका अपने घर में अकेले तरावीह पढ़ना बेहतर है या कि जमाअत के साथ मस्जिद में पढ़ना बेहतर है। शाफेइ और उनके जमहूर अनुयायियों, तथा अबू हनीफा, अहमद और कुछ मालिकिया और इनके अलावा का कहना है कि : उसे जमाअत के साथ पढ़ना बेहतर है, जैसाकि उमर बिन खत्ताब और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने किया, और उसी पर मुसलमानों का अमल स्थापित हो गया, क्योंकि वह प्रत्यक्ष प्रतीकों में से है।’’

अतः उसे मस्जिद की जमाअत के साथ पढ़ना अफज़ल है, लेकिन यदि आदमी अपने घर में अकेले नमाज़ पढ़े या अपने घर वालों के साथ जमाअत से पढ़े तो वह भी जायज़ है।

नववी ने ‘‘अल-मजूअ’’ (3/526) में फरमाया:

विद्वानों की सर्वसहमति के साथ तरावीह की नमाज़ सुन्नत है . . . तथा वह अकेले और जमाअत के साथ दोनों जायज़ है, और उन दोनों में कौन बेहतर है? इस बारे में दो प्रसिद्ध रूप हैं . . . असहाब की सर्वसहमति के साथ जमाअत के साथ तरावीह की नमाज़ बेहतर है।’’

Courtesy :
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)
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