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पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षाएं : समाज-सेवा, भाई-चारा और अधिकार

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समाज-सेवा:

‘‘सारी दुनिया अल्लाह का परिवार है। अल्लाह को सबसे अधिक प्रिय वह (व्यक्ति) है जो उसके बन्दों से अच्छा व्यवहार करता है।“  (मिश्कात)
‘‘अल्लाह (अपने बन्दों पर) मेहरबान (दयालु) है और वह मेहरबानी (दयालुता) को पसन्द करता है।“ ( बुख़ारी)
‘‘दया करनेवालों पर रहमान (दयावान प्रभु) रहम करेगा। धरतीवालों पर दया करो, आसमान वाला तुमपर दया करेगा।“  (तिरमिज़ी)
अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) इस बात में शर्मिन्दगी नहीं महसूस करते थे कि ग़रीब, विधवा और मिसकीन (दरिद्र) के साथ चलकर जाएँ और उसकी आवश्यकता पूरी करें। (नसाई)
‘‘अल्लाह के बन्दों को कष्ट न दो।“  (अबू–दाऊद)
‘‘अपने भाई की सहायता करो, चाहे वह ज़ालिम हो या मज़लूम। एक आदमी ने पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर, मज़लूम की सहायता तो मैं करता हूँ! मगर ज़ालिम की सहायता कैसे करूँ?’’  पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘उसको ज़ुल्म से रोक दो, यही उसकी सहायता है।“ (बुख़ारी, मुस्लिम)

बराबरी, भाई-चारा:

‘‘ऐ लोगो, तुम सब का रब एक है और तुम सबका बाप एक है। किसी अरबी (अरबवासी) को किसी अजमी (अरब के बाहर के निवासी) पर कोई बरतरी (श्रेष्ठता) नहीं है, न किसी अजमी को किसी अरबी पर, न किसी गोरे को किसी काले पर, न किसी काले को किसी गोरे पर, सिवाय परहेज़गारी (ईशपरायणता) के, अल्लाह के निकट सबसे प्रतिष्ठित वह है जो तुममें ज्ञ्चयादा परहेज़गार (ईशपरायण) है।“  (बैहक़ी)
‘‘अल्लाह ने तुमसे दूर कर दिया अज्ञानकाल के घमण्ड को और अपने बाप–दादा के नाम पर एक–दूसरे से बड़ा बनने को। अब दो ही प्रकार के लोग हैं, मोमिन, अल्लाह से डरनेवाला और दुष्कर्मी, दुर्भाग्य का मारा हुआ। सारे मनुष्य आदम की सन्तान है और आदम मिट्टी से बने हैं।  (तिरमिज़ी)
‘‘अल्लाह उस इनसान पर दया नहीं करता जो स्वयं दूसरे इनसानों पर दया नहीं करता। (बुख़ारी, मुस्लिम)
‘‘तुम में से जो इसकी सामर्थ्य रखता हो कि अपने (इनसानी) भाई की सहायता कर सके तो उसे यह काम अवश्य करना चाहिए।“  (मुस्लिम)
‘‘बदगुमानी से बचो, क्योंकि बदगुमानी सबसे बुरा झूठ है। लोगों के दोष न खोजो, न टोह में लगो, एक–दूसरे से ईर्ष्या न करो और न आपस में कपट रखो, बल्कि ऐ अल्लाह के बन्दो! (आपस में) भाई–भाई बन जाओ।“  (मुस्लिम)

ग़ैर-मुस्लिमों के अधिकार:

यूँ तो बयान की गई बातें मुस्लिम और गै़र–मुस्लिम सभी के लिए हैं,  मगर वे लोग जो इस्लाम में नहीं हैं, उनके कुछ ख़ास अधिकार भी रखे गए हैं:
हज़रत असमा (रज़ि॰) कहती हैं कि हुदैबिया के समझौते के ज़माने में मेरी गै़र–मुस्लिम माँ मेरे पास आर्इं, मैंने हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से पूछा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! मेरी माँ मेरे पास आई हैं, जबकि वे इस्लाम में दाख़िल नहीं हुई हैं, क्या मैं उनकी सेवा कर सकती हूँ ?’’ अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘हाँ, उनके साथ अच्छा व्यवहार करो।“   (बुख़ारी)
हज़रत जाबिर (रज़ि॰) कहते हैं कि हमारे सामने से एक जनाज़ा (अर्थी) गुज़रा तो अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) उसके सम्मान में खड़े हो गए। उनके साथ हम भी खड़े हो गए। हमने कहा, ‘‘ऐ अल्लाह के पैग़म्बर! यह तो एक यहूदी का जनाज़ा है। पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘क्या वह इनसान नहीं था ?’’ (बुख़ारी)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) से कहा गया कि मूर्ति–पूजा करनेवालों (बहुदेववादियों) के विरुद्ध अल्लाह से दुआ करें तो पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘मैं बद्दुआ देने के लिए नहीं, दया करने के लिए पैदा किया गया हूँ।“ (मुस्लिम)
‘‘ख़बरदार, जो आदमी किसी ग़ैर–मुस्लिम पर जिसके साथ समझौता हुआ हो जु़ल्म करेगा या उसके हक़ में किसी तरह की कमी करेगा या उसकी ताक़त से ज़्यादा उसपर भार डालेगा या उसकी मर्ज़ी के बिना कोई चीज़ उससे छीन लेगा उसके विरुद्ध क़ियामत (प्रलय) के दिन मैं ख़ुद अल्लाह के सामने (ग़ैर–मुस्लिम की तरफ़ से) दावा पेश करूँगा।  (अबू–दाऊद)
‘‘जिसने किसी ज़िम्मी (इस्लामी राज्य के अधीन रहनेवाला ग़ैर–मुस्लिम) को क़त्ल किया तो अल्लाह ने जन्नत उस (क़त्ल करनेवाले) पर हराम कर दी। (नसाई)
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माँ-बाप के अधिकार:

‘‘अल्लाह की ख़ुशी बाप की ख़ुशी में है और अल्लाह की नाख़ुशी बाप की नाख़ुशी में है।  (तिरमिज़ी)
‘‘तुम्हारे माँ–बाप तुम्हारा स्वर्ग भी हैं और नरक भी (यानी माँ–बाप की सेवा करके स्वर्ग में जा सकते हो और उनकी नाफ़रमानी (अवज्ञा) करके  या उन्हें दुख देकर नरक में अपना ठिकाना बना सकते हो)। (इब्ने–माजा)
‘‘किसी का अपने माँ–बाप को गाली देना बहुत बड़ा गुनाह (पाप) है। आपके साथियों ने कहा, ‘‘कोई अपने माँ–बाप को गाली कैसे दे सकता है!  पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘जब कोई दूसरे के माँ–बाप को गाली देता है तो दूसरा भी उसके माँ–बाप को गाली देता है।   (बुख़ारी)
अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) से एक सहाबी (रज़ि॰) ने कहा, ‘‘मेरी सेवा और अच्छे व्यवहार का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है ?’’ पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, ‘‘तुम्हारी माँ।  सहाबी के पूछने पर उन्होंने तीन बार माँ का हक़ बताया । उसके बाद फ़रमाया कि तुम्हारा बाप (तुम्हारे अच्छे व्यवहार का हक़दार है)।  (बुख़ारी, मुस्लिम)
हज़रत मुआविया (रज़ि॰) कहते हैं कि उनके बाप जाहिमा अल्लाह के पैग़म्बर (सल्ल॰) की सेवा में हाज़िर हुए और कहा, ‘‘मैं जिहाद में जाना चाहता हूँ। आपसे सलाह चाहता हूँ। पैग़म्बर (सल्ल॰) ने पूछा, “क्या तुम्हारी माँ (ज़िन्दा) है ?’’  उन्होंने कहा, ‘‘हाँ।“  पैग़म्बर (सल्ल॰) ने फ़रमाया, “तुम उनकी सेवा करो! स्वर्ग माँ के पैरों के  नीचे है (यही तुम्हारे लिए जिहाद है)। (अहमद, नसाई)
‘‘लोगो, अपने माँ–बाप का आज्ञापालन करो! तुम्हारी सन्तान तुम्हारा आज्ञापालन करेगी। पवित्र जीवन गुज़ारो! तुम्हारी औरतें अच्छे चरित्र–आचरणवाली होंगी।“ (तबरानी)

संतान के अधिकार:

‘‘तुम अपनी औलाद की इज़्ज़त करो और उन्हें अच्छी तहज़ीब (संस्कार) सिखाओ!’’ (इब्ने-माजा)
‘‘अल्लाह जिसको सन्तान दे उसे चाहिए कि उसका अच्छा नाम रखे, उसको अच्छी शिक्षा दे, अच्छी आदतें और ढंग सिखाए। फिर जब वह बालिग़  (व्यस्क) हो जाए तो उसकी शादी करे। अगर उसने सही समय पर शादी नहीं की और सन्तान ने कोई पाप कर लिया तो वह (बाप) उस पाप में हिस्सेदार माना जाएगा। (बैहक़ी)
‘‘जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें अच्छा अदब सिखाया (अर्थात् अच्छे संस्कार दिए), उनकी शादी की और उनके साथ अच्छा व्यवहार किया, वह स्वर्ग में जाएगा।“  (अबू–दाऊद)
‘‘किसी बाप ने अपनी सन्तान को अच्छे अदब (शिष्टाचार, अच्छी आदतें और अच्छे संस्कार) से बेहतर कोई तोहफ़ा नहीं दिया।  (तिरमिज़ी)
‘‘जिस किसी को भी बच्चियों के द्वारा परीक्षा में डाला गया और उसने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो ये बच्चियाँ (प्रलय के दिन) उसके लिए नरक से बचने का साधन बन जाएँगी।  (बुख़ारी, मुस्लिम)
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पति-पत्नी के अधिकार:

‘‘ईमानवालों में सबसे बढ़कर ईमानवाला वह है जिसका अख़लाक़ (आचरण) अच्छा हो। तुममें बेहतरीन (श्रेष्ठ) लोग वे हैं जो अपनी पत्नियों से अच्छा व्यवहार करते हैं।  (तिरमिज़ी)
‘‘मोमिन (ईमानवाले) पति के लिए उचित नहीं कि वह (अपनी) पत्नी से घृणा करे। अगर उसे उसकी कोई आदत पसन्द नहीं है तो उसकी किसी दूसरी आदत को पसन्द भी तो करता है।   (मुस्लिम)
‘‘तुम अपनी पत्नियों को वह खिलाओ जो ख़ुद खाते हो और उन्हें वह पहनाओ जो तुम पहनते हो, उनकी पिटाई न करो और उन्हें बुरा न कहो!’’   (अबू–दाऊद)
‘‘दुनिया ‘मताअ’ (पूँजी) है और इसकी (दुनिया की) सर्वोत्तम पूँजी नेक पत्नी है।  (मुस्लिम)
‘‘लोगो, अपनी पत्नियों के बारे में अल्लाह से डरो! तुमने उनको अल्लाह की अमानत के तौर पर अपनाया है। अल्लाह के आदेश से वे तुमपर हलाल (वैध) हुई हैं। पत्नियों पर तुम्हारा यह हक़ है कि वे तुम्हारे बिस्तर पर ऐसे व्यक्ति को न आने दें जिसको तुम पसन्द नहीं करते। अगर वे (पत्नियाँ) ऐसी ग़लती करें तो तुम उनको हल्की सज़ा दे सकते हो। तुम्हारे ऊपर उनका अधिकार यह है कि तुम उचित ढंग से उनके लिए खाने–कपड़े का प्रबन्ध करो। (मुस्लिम)
‘‘तुममें सबसे अच्छा आदमी वह है जो अपनी बीवी की निगाह में अच्छा हो।  (मिशकात)
‘‘अगर किसी आदमी के पास दो पत्नियाँ हों और वह उनके बीच न्याय और समानता का मामला न करे तो वह क़ियामत (प्रलय) के दिन इस हालत में आएगा कि उसका आधा धड़ गिर गया होगा।  (तिरमिज़ी)
‘‘जिस औरत की मौत इस हाल में हुई कि उसका पति उससे ख़ुश था तो वह स्वर्ग में जाएगी।  (तिरमिज़ी)
“अच्छी पत्नी वह है जिसको उसका पति देखे तो ख़ुश हो जाए, कोई आदेश दे तो उसे माने, अपने और अपने माल के सम्बन्ध में कोई ऐसा काम न करे जो पति को पसन्द न हो।  (नसाई)
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