‘‘जिस आदमी ने किसी एक इन्सान को क़त्ल किया, बग़ैर इसके कि उससे किसी जान का बदला लेना हो, या वह ज़मीन में फ़साद फैलाने का मुजरिम हो, उसने मानो तमाम इन्सानों को क़त्ल कर दिया’’ (5:32)
‘‘किसी जान को हक़ के बग़ैर क़त्ल न करो, जिसे अल्लाह ने हराम किया है’’ (6:152)
‘‘सबसे बड़ा गुनाह अल्लाह के साथ शिर्क और किसी इन्सानी जान को क़त्ल करना है।’’
‘‘और जिसने किसी नफ़्स को बचाया उसने मानो तमाम इन्सानों को ज़िन्दगी बख़्शी’’ (5:32)
‘‘जिस ने इस्राईल की एक जान को हलाक किया, अल-किताब (Scripture) की निगाह में उसने मानो सारी दुनिया का हलाक कर दिया और जिसने इस्राईल की एक जान को बचाया अल-किताब के नज़दीक उसने मानो सारी दुनिया की हिफ़ाज़त की।’’
‘‘हमारे ऊपर उम्मियों के बारे में (यानी उनका माल मार खाने में) कोई पकड़ नहीं है’’ (3:75)
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