“अगर हम कुरान पर अमल नहीं कर रहे हैं तो सोचना होगा कि……. ” – मुहम्मद ज़ाहिद

कल क़ुरान की एक आयत सूरह आले-इमरान आयत नंबर 103 पोस्ट की थी और लोगों से इस आयत का मतलब पूछा था और पूछते वक्त मुझे मालूम था कि इस आयत का सबसे सही तर्जुमा अपने ज्ञान से भाई Amit Shukla ही कर सकते हैं और मैं सही था, बाकी लोगों ने गुगल का सहारा लिया, ध्यान दीजिए कि अमित भाई फेक आईडी नहीं हैं बल्कि मेरे व्यक्तिगत रूप से जानने वाले हैं, और चुँकि उन्होंने खुद मुझे उनके बारे में कुछ बताने को मना किया है इसलिए अब आगे की बात।

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अमित शुक्ला भाई का किया तर्जुमा इस तरह है।

“और अल्लाह की रस्सी को मिलकर थाम लो और तफर्रूका ना करो और याद करो उस नेमत को जब तुम एक दूसरे के दुश्मन थे तो उसने तुम्हारे दिल जोड़ दिए तो उसकी नेमत से हो गए तुम भाई और तुम नरक के खिसकते दहाने पर थे तो उसने तुम्हें बचा लिया उसी तरह अल्लाह अपनी निशानीयां बयान करता है मुमकिन है तुम हिदायत पा जाओ”

कुरान की यह आयत कहती है कि “अल्लाह की रस्सी सब मिलकर थाम लो” तो अफसोस है कि बहुत से मुसलमानों को यह भी नहीं पता कि अल्लाह की रस्सी क्या है ? वह रस्सी है “क़ुरान” और “थाम लो” का मतलब है कि उस पर अमल करो।

हकीकत यह है कि कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप में आज के मुसलमान वह रस्सी किसी मौलवी मौलाना के बताए गलत सही तरीकों से पकड़ते हैं ना कि खुद अपनी समझ से और ना ही कुरान जो कहता है उसको समझ कर। मौलाना कुरान से बढ़कर हो गये जबकि उनकी समझ का भी आधार और स्तर क्या है? यह किसी को नहीं पता ,हालाँकि सभी मौलाना स्तरहीन नहीं होते, जबकि यह भी हकीकत है कि कभी कभी किसी बड़े मौलाना से खुन्नस तो कभी कभी मौलानाओं की आपसी खींचतान तो कभी चंदे का बटवारा भी उनके कुरान की समझ को स्तरहीन कर सकता है।

खुद देखिए इसी आयत का अगला हिस्सा ,”तफर्रुका पैदा ना करो” , यह कुरान कहता है कि तफर्रुका पैदा मत करो पर हकीकत यह है कि इस्लाम में तमाम तफर्रुका की जड़ यही मौलाना हैं जिनकी कुरान को लेकर समझ अलग अलग है और इन्होंने ने ही इस्लाम में “फिरका” पैदा कर दिया , अर्थात कुरान ने जो कहा उसका बिल्कुल उलट और विपरीत काम किया और आज भी लोग किए जा रहे हैं।

वास्तविक दुनिया में तो यह सब फिर भी मस्जिद और मुसल्ले तक रहा है पर सोशलमीडिया में यह “तफर्रुका” बहुत गंदी तरह से फैला है तो इसमें बहुत हद तक संघी साईबर सेल के वह कारकून हैं जो ऐसे मुस्लिम लोगों को फालो करते हैं जो “फिरकेवाराना” पोस्ट करते हैं और वहीं से कापी पेस्ट करके और फिर उसमें कुछ और ज़हर मिलाकर मुस्लिम आईडी से पोस्ट करते हैं जिससे “तफर्रुका” और फैले, पर मुसलमान इन सब साजिश से अन्जान है।

मित्र सूची में तमाम लोग हैं जो अपने फिरके का पोस्ट करके ऐलान करते हैं तो उनपर अफसोस होता है और सोचता हूँ कि ऐसा करके उनको कौन सा सवाब मिलेगा? जबकि वह कुरान के खिलाफ ही हरकत कर रहे हैं , कुरान तफर्रुका के लिए मना करता है और कुछ लोग शान से ऐसा सरेआम ऐलान करते हैं तो यदि उनको कुरान पर ही यकीन नहीं तो वह मुसलमान कैसे हुए? माफ कीजिए वह सिर्फ़ उर्दू नाम के हुए और हो सकता है कि शक्ल ओ सूरत से भी वह मुसलमान जैसे दिखें ।

ईमान एक बेहद व्यक्तिगत मामला है जो बंदे और अल्लाह के बीच का मामला है, इसमें कोई बिचौलिया नहीं, हर एक को अपने आमाल और दीन का हिसाब खुद देना होगा, ना वहाँ आपको आपके अब्बा पहचानेंगे ना अम्मा, ना बेटा बेटी और ना बीवी, तो मौलानाओं की बात मानकर तफर्रुका क्युँ फैलाना जबकि वह मौलाना भी वहाँ आपको नहीं पहचानेंगे? एक एक नेकी देने लिए एक दूसरे से गिड़गिड़ाते लोग वहाँ दिखेंगे, यही तो इस्लाम कहता है? फिर कुरान के खिलाफ काम करके हम कौन सी नेकी बटोर रहे हैं?

सीधी सी बात है कि जब आपको अपने आमाल का हिसाब आखेरत में खुद देना है तो अपनी समझ से अमल करो, मौलानाओं से राय मशविरा लीजिए पर उसे अपनी समझ और कुरान की रोशनी में तौलिये, खुद समझिए और फिर अमल कीजिए, क्युँकि मौलाना का इल्म ज़रूरी नहीं कि बिलकुल वही हो जैसा कुरान कहता है। और मौलानाओं पर आँख बंद करके यकीन करना और फिर उसी बात को मानकर आगे बढ़ना और दूसरे को गलत साबित करना और फिर गालीगलौज करना ही “फिरके” की असली वजह है जो कुरान की आयत “सूरह आले-इमरान आयत नंबर 103” के खिलाफ है और जो कुरान के खिलाफ काम करता हो उसका ईमान ही दुरुस्त नहीं।

दुनिया का तो नहीं जानता पर भारतीय उप महाद्वीप का अधिकांश मुसलमान कुरान की आयत “सूरह आले-इमरान आयत नंबर 103” के बिल्कुल खिलाफ है और सब जान कर भी इसके खिलाफ है तो समझ सकते हैं कि उसके ईमान का स्तर क्या होगा।

आज के दौर में जहाँ मुसलमान पुलिस के एक अधिकारी के आरोप लगा देने भर से आतंकवादी हो जाता है, 10 साल जेल में बंद हो जाता है , जेल से उठाकर इनकाउंटर कर दिया जाता है, और बिना किसी अदालती फैसले के सारी दुनिया उनको फिर भी आतंकवादी कह कर प्रचारित करती है और कोई सवाल भी नहीं पूछता कि बिना आरोप सिद्ध हुए वह आतंकवादी कैसे? तो वह किसी फिरके या जाति के वजह से नहीं बल्कि केवल और केवल मुसलमान होने की वजह से तो कुरान की यह आयत “सूरह आले-इमरान आयत नंबर 103” आज के दौर में और महत्वपूर्ण हो जाती है।

कुरान इसी आयत के आखिर में कहता है कि “मुमकिन है तुम हिदायत पा जाओ” मतलब कि हिदायत पाना अब भी मुमकिन है, और वह मुमकिन कैसे होगा?

कुरान के पहले शब्द से जो है “इक़रा” अर्थात “पढ़ो” और अल्लाह ने उसका उदाहरण भी दिया कि जब वह एक अनपढ़ “हुज़ूर सल्लाहुअलैवसल्लम हज़रत मुहम्मद” को ज़रिया बनाकर अपनी कुरान को ज़मीन पर उतार सकते हैं तो आज के फिरकेबाज तो फिर भी बहुत अधिक पढ़े लिखे हैं, हाँ बस उनको “सूरह आले-इमरान आयत नंबर 103” के बारे में शायद इल्म नहीं और यदि है तो यह और अफसोसनाक है कि वह ऐसा इस आयत के खिलाफ काम करते हैं।

सीधी सी बात है अपने अकीदे को अपनी समझ को “मुसल्ले” तक रहने दो और खुद अमल करो ना कि ज़बरदस्ती किसी से अमल करवाओ या जो ना करें उनसे गालीगलौज करो क्युँकि आखेरत में सबको अपने अमाल का हिसाब खुद देना है”

माफ कीजिएगा यदि हम कुरान को नहीं मान रहे हैं तो सोचना होगा कि हम मुसलमान भी हैं कि नहीं जैसे तारेक फतेह है या आइएस।

-मुहम्मद ज़ाहिद

मुहम्मद ज़ाहिद

मुहम्मद ज़ाहिद

(मुहम्मद ज़ाहिद फेसबुक यूज़र हैं। यह लेख उनकी टाइम लाइन से लिया गया है। इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं, इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी myzaviya.com स्‍वागत करता है । इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है। ब्‍लॉग पोस्‍ट के साथ अपना संक्षिप्‍त परिचय और फोटो भी myzaviya.com@gmail.com भेजें।)


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