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नोरा जेसमीन – मुझे दुख है कि हिजाब पहनने में देरी क्यों कर दी ?

मैं अपने पति के साथ पहली बार मस्जिद गई। मैं नर्वस थी क्योंकि मैं नहीं जानती थी कि मस्जिद में किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए और मस्जिद में किस तरह के दिशा-निर्देशों का पालन जरूरी है।  पति के कुछ बातें समझाने के बावजूद मैं असहज थी।  अल्लाह का शुक्र है कि मैंने वहां मगरिब की नमाज अदा की और वहां मैंने सुकून महसूस किया।  फिर मैं अगले कुछ हफ्ते और मस्जिद गई तो मुझे महसूस हुआ कि मस्जिद में आने वाली अन्य औरतों की तरह मुझे भी यहां हिजाब पहनकर आना चाहिए।  मुझे दिल में इस बात का मलाल हुआ कि आखिर मैंने पर्दा करने में साल भर की देरी क्यों कर दी। मेरे पति मेरे बहुत मददगार थे और उन्होंने मुझे इजाजत दे रखी थी कि इस्लाम के मामले में मुझे दिली इत्मीनान हो जाने पर ही मैं इन सब पर अमल करूं।

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इस्लाम अपनाने वाली नोरा जेसमीन की जुबानी………….!

     मेरा नाम नोरा जेसमीन है। मैं सिंगापुर से हूं और मैंने चीनी कल्चर छोड़कर इस्लाम अपनाया है। अपने कुछ करीबी दोस्त, मेरे पति, उनका परिवार, मेरा परिवार खासतौर पर मेरी मां की मदद से मैंने 11 मई 2013 को इस्लाम अपनाया। मेरी मां ने इस बात को माना कि मुझे भी इस्लाम अपना लेना चाहिए हालांकि वह खुद कठिन समय का सामना कर रही थी। मैं अपनी मां की बेहद अहसानमंद हूं कि उसने मेरी जिंदगी के इस अहम बदलाव की घड़ी में मेरा साथ दिया। अल्लाह का लाख-लाख शुक्रं है कि उसने इस्लाम की तरफ आने के मेरे सफर को आसान बनाया।
     जब से मुसलमान हुई तब से आज तक हिजाब न पहनने की बात मेरे दिमाग में कभी नहीं आई। हालांकि कुछ कारणों जैसे – “कुछ वक्त इंतजार  करो जब तक हमारे बच्चे नहीं हो जाते” या  “मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूं।” के चलते इस्लाम अपनाने के साल भर बाद तक मैंने हिजाब नहीं पहना। हालांकि बहु-नस्लीय मुल्क सिंगापुर में रहने के कारण मेरे दिमाग में डर भी था कि मेरे इर्द-गिर्द वाले लोग मेरे पर्दे करने को स्वीकार नहीं कर पाएंगे। जब कभी मैं पर्दा करने की सोचती तो  निराश हो जाती और मेरे दिल की धड़कन बढऩे लगती।
     एक दिन एक अप्रेल 2014  को मैं अपने पति के साथ पहली बार मस्जिद गई। मैं नर्वस थी क्योंकि मैं नहीं जानती थी कि मस्जिद में किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए और मस्जिद में किस तरह के दिशा-निर्देशों का पालन जरूरी है। पति के कुछ बातें समझाने के बावजूद मैं असहज थी। अल्लाह का शुक्र है कि मैंने वहां मगरिब की नमाज अदा की और वहां मैंने सुकून महसूस किया। फिर मैं अगले कुछ हफ्ते और मस्जिद गई तो मुझे महसूस हुआ कि मस्जिद में आने वाली अन्य औरतों की तरह मुझे भी यहां हिजाब पहनकर आना चाहिए।  मुझे दिल में इस बात का मलाल हुआ कि आखिर मैंने पर्दा करने में साल भर की देरी क्यों कर दी। मेरे पति मेरे बहुत मददगार थे और उन्होंने मुझे इजाजत दे रखी थी कि इस्लाम के मामले में मुझे दिली इत्मीनान हो जाने पर ही मैं इन सब पर अमल करूं।
     एक दिन मैंने वल्र्ड हिजाब डे फेसबुक पेज पर “30 दिनों के लिए हिजाब की चुनौती” कैम्पेन में हिस्सा लेने का इरादा किया और सोचा कि रमजान महीने के दौरान इस कैम्पेन में हिस्सा लेकर हिजाब पहनना दिलचस्प और उत्साहवद्र्धक रहेगा।  मैंने अपनी मां, पति और अपने दोस्तों को बताया कि मैं अब हिजाब पहनना शुरू कर रही हूं। अल्लाह का शुक्र है कि पहले रोजे को पूरे दिन मैंने हिजाब पहने रखा। अल्लाह का बेहद अहसान है कि वह मुझे फिर से अपने करीब लाया।  मैं पर्दे में खुद को पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित महसूस करती हूं और पर्दे में मेरी ज्यादा इज्जत की जाती है।  
     मुझे मुस्लिम होने पर गर्व है।  मेरे पति को बेहद आश्चर्य हुआ कि इस्लाम अपनाने के एक साल बाद ही मैंने पर्दा करना शुरू कर दिया। मुझे बेहद खुशी है कि मैंने अपनी इच्छा से इस्लाम का रास्ता अपनाया उस अल्लाह के लिए, उस एक पालनहार के लिए।

     मैं अपनी बहनों से कहना चाहूंगी कि अगर आप भी मेरे शुरू के एक साल की तरह दुविधा में है तो अल्लाह से मदद मांगे, दुआ करें, अल्लाह आपका रास्ता आसान फरमाएगा।  अल्लाह हमें परेशानी में अकेला कभी नहीं छोड़ता बल्कि हमारी राह आसान करता है।


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Courtesy :
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World Hijab Day
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